ETV Bharat / bharat

भीमा कोरेगांव मामले में वर्नोन गोंसाल्वेस व अरुण फरेरा को जमानत, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- 'केवल साहित्य रखना अपराध नहीं'

author img

By

Published : Jul 28, 2023, 10:52 PM IST

Updated : Jul 29, 2023, 7:18 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 2018 भीमा कोरेगांव मामले में कहा कि केवल साहित्य का कब्ज़ा, भले ही वहां की सामग्री हिंसा को प्रेरित या प्रचारित करती हो, अपने आप में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम, 1967 के अध्याय IV और VI के तहत किसी भी अपराध का गठन नहीं कर सकती है. इस मामले में वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा को जमानत दे दी गई है.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में कार्यकर्ता वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा को शुक्रवार को जमानत दे दी और इस तथ्य पर गौर किया कि वे पांच वर्ष से हिरासत में हैं. न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस तथा न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने निर्देश दिया कि गोंजाल्विस तथा फरेरा महाराष्ट्र से बाहर नहीं जाएंगे और पुलिस के समक्ष अपना पासपोर्ट जमा कराएंगे. उच्चतम न्यायालय से जमानत मिलने के बाद दोनों आरोपियों के अगले सप्ताह जेल से बाहर आने की संभावना है. क्योंकि उनकी रिहाई से पहले कुछ औपचारिकताएं पूरी की जानी हैं. बचाव पक्ष के वकीलों ने यह जानकारी दी.

इससे पहले सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि लगभग पांच साल बीत चुके हैं, हम संतुष्ट हैं कि जमानत का मामला बनता है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि आरोप गंभीर हैं, लेकिन केवल इसी कारण से उन्हें जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता. न्यायालय ने कहा कि दोनों कार्यकर्ता एक-एक मोबाइल का इस्तेमाल करेंगे और मामले की जांच कर रहे राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) को अपना पता बताएंगे.

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वे अपने मोबाइल फोन की लोकेशन स्थिति को 24 घंटे सक्रिय रखेंगे और उनका फोन एनआईए के जांच अधिकारी के संपर्क में रहेगा, ताकि वह किसी भी समय उनके सटीक स्थान की पहचान कर सकें. इसके साथ ही वे सप्ताह में एक बार जांच अधिकारी को भी रिपोर्ट करेंगे. वहीं दूसरी ओर पीठ ने एनआईए को जमानत शर्तों का उल्लंघन होने पर कार्यकर्ताओं की जमानत रद्द करने की मांग करने की भी स्वतंत्रता दी.

न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि अपीलकर्ताओं के मामले में, जिन पत्रों के माध्यम से अपीलकर्ताओं को फंसाने की मांग की गई है, वे सह-अभियुक्तों से बरामद किए गए अफवाह साक्ष्य की प्रकृति में हैं. इसके अलावा, इन पत्रों में, या इन दो अपीलों के रिकॉर्ड का हिस्सा बनने वाली किसी भी अन्य सामग्री में अपीलकर्ताओं को किसी गुप्त या प्रत्यक्ष आतंकवादी कृत्य के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है.

पीठ ने कहा कि आरोपियों की गतिविधियों का संदर्भ वैचारिक प्रचार और भर्ती के आरोपों की प्रकृति में है. इसमें कहा गया है कि जिन लोगों पर अपीलकर्ताओं से प्रेरित होकर भर्ती होने या इस संघर्ष में शामिल होने का आरोप है, उनमें से किसी का भी कोई सबूत हमारे सामने नहीं लाया गया है. पीठ ने कहा कि इस प्रकार, हम एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) के इस तर्क को स्वीकार करने में असमर्थ हैं कि अपीलकर्ताओं ने एक आतंकवादी संगठन को समर्थन देने से संबंधित अपराध किया है.

कार्यकर्ताओं ने जमानत याचिका खारिज करने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख किया था. गोंजाल्विस और फरेरा को मामले में उनकी कथित भूमिका के लिए अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया गया था. तब से वे न्यायिक हिरासत में हैं. इस मामले में कम से कम 16 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें ज्यादातर कार्यकर्ता और शिक्षाविद शामिल हैं. आरोपियों में से तीन फिलहाल जमानत पर बाहर हैं.

यह मामला पुणे में 31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद के एक कार्यक्रम से जुड़ा है. पुणे पुलिस का कहना है कि इसके लिए धन माओवादियों ने दिया था. पुलिस ने आरोप लगाया था कि कार्यक्रम के दौरान दिए गए भड़काऊ भाषणों के कारण अगले दिन कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक क्षेत्र में हिंसा भड़की थी. बाद में, यह मामला राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) को सौंप दिया गया था.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में कार्यकर्ता वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा को शुक्रवार को जमानत दे दी और इस तथ्य पर गौर किया कि वे पांच वर्ष से हिरासत में हैं. न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस तथा न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने निर्देश दिया कि गोंजाल्विस तथा फरेरा महाराष्ट्र से बाहर नहीं जाएंगे और पुलिस के समक्ष अपना पासपोर्ट जमा कराएंगे. उच्चतम न्यायालय से जमानत मिलने के बाद दोनों आरोपियों के अगले सप्ताह जेल से बाहर आने की संभावना है. क्योंकि उनकी रिहाई से पहले कुछ औपचारिकताएं पूरी की जानी हैं. बचाव पक्ष के वकीलों ने यह जानकारी दी.

इससे पहले सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि लगभग पांच साल बीत चुके हैं, हम संतुष्ट हैं कि जमानत का मामला बनता है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि आरोप गंभीर हैं, लेकिन केवल इसी कारण से उन्हें जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता. न्यायालय ने कहा कि दोनों कार्यकर्ता एक-एक मोबाइल का इस्तेमाल करेंगे और मामले की जांच कर रहे राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) को अपना पता बताएंगे.

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वे अपने मोबाइल फोन की लोकेशन स्थिति को 24 घंटे सक्रिय रखेंगे और उनका फोन एनआईए के जांच अधिकारी के संपर्क में रहेगा, ताकि वह किसी भी समय उनके सटीक स्थान की पहचान कर सकें. इसके साथ ही वे सप्ताह में एक बार जांच अधिकारी को भी रिपोर्ट करेंगे. वहीं दूसरी ओर पीठ ने एनआईए को जमानत शर्तों का उल्लंघन होने पर कार्यकर्ताओं की जमानत रद्द करने की मांग करने की भी स्वतंत्रता दी.

न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि अपीलकर्ताओं के मामले में, जिन पत्रों के माध्यम से अपीलकर्ताओं को फंसाने की मांग की गई है, वे सह-अभियुक्तों से बरामद किए गए अफवाह साक्ष्य की प्रकृति में हैं. इसके अलावा, इन पत्रों में, या इन दो अपीलों के रिकॉर्ड का हिस्सा बनने वाली किसी भी अन्य सामग्री में अपीलकर्ताओं को किसी गुप्त या प्रत्यक्ष आतंकवादी कृत्य के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है.

पीठ ने कहा कि आरोपियों की गतिविधियों का संदर्भ वैचारिक प्रचार और भर्ती के आरोपों की प्रकृति में है. इसमें कहा गया है कि जिन लोगों पर अपीलकर्ताओं से प्रेरित होकर भर्ती होने या इस संघर्ष में शामिल होने का आरोप है, उनमें से किसी का भी कोई सबूत हमारे सामने नहीं लाया गया है. पीठ ने कहा कि इस प्रकार, हम एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) के इस तर्क को स्वीकार करने में असमर्थ हैं कि अपीलकर्ताओं ने एक आतंकवादी संगठन को समर्थन देने से संबंधित अपराध किया है.

कार्यकर्ताओं ने जमानत याचिका खारिज करने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख किया था. गोंजाल्विस और फरेरा को मामले में उनकी कथित भूमिका के लिए अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया गया था. तब से वे न्यायिक हिरासत में हैं. इस मामले में कम से कम 16 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें ज्यादातर कार्यकर्ता और शिक्षाविद शामिल हैं. आरोपियों में से तीन फिलहाल जमानत पर बाहर हैं.

यह मामला पुणे में 31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद के एक कार्यक्रम से जुड़ा है. पुणे पुलिस का कहना है कि इसके लिए धन माओवादियों ने दिया था. पुलिस ने आरोप लगाया था कि कार्यक्रम के दौरान दिए गए भड़काऊ भाषणों के कारण अगले दिन कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक क्षेत्र में हिंसा भड़की थी. बाद में, यह मामला राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) को सौंप दिया गया था.

Last Updated : Jul 29, 2023, 7:18 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.