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सुप्रीम कोर्ट ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की मांग वाली PIL खारिज की

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मैरिटल रेप (Marital Rape) को अपराध घोषित करने की मांग वाली जनहित याचिका खारिज कर दी.

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Published : Sep 5, 2022, 2:59 PM IST

Updated : Sep 5, 2022, 9:25 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की मांग वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया है. चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट की पीठ ने कहा कि यह मुद्दा पहले से विचाराधीन है. पीठ ने जनहित याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे पर दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाएं 12 सितंबर को सूचीबद्ध हैं. इसलिए, इस मुद्दे पर एक जनहित याचिका अनावश्यक है.

सुनवाई के दौरान कहा गया कि याचिका में वैवाहिक बलात्कार के इतिहास का पता लगाया गया और कहा गया कि 1970 के दशक तक अधिकांश देशों ने पति को अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाने का अधिकार दिया. वहीं बलात्कार विरोधी आंदोलनों के परिणामस्वरूप 150 से अधिक देशों में वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण हुआ. हालांकि, भारत दुनिया के 200 देशों में से 36 देशों में से एक है जहां वैवाहिक बलात्कार अभी भी कानूनी है.

याचिका में भारत में वैवाहिक बलात्कार न्यायशास्त्र पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि केरल हाई कोर्ट ने 6 अगस्त 2021 को फैसला सुनाया कि वैवाहिक बलात्कार तलाक के लिए आधार हो सकता है. हालांकि, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि पति द्वारा पत्नी से जबरन यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं है. यह प्रस्तुत किया गया कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 3 में यौन उत्पीड़न की पहली व्याख्या के तहत ऐसा कोई भी आचरण शामिल है जो किसी महिला की गरिमा को अपमानित करता है, शर्मिंदा करता है या प्रभावित करता है और इसके लिए वह अपने पति से अलग होने की मांग कर सकती है. याचिका के अनुसार, यह पर्याप्त नहीं है क्योंकि एक विवाहित महिला अपने खिलाफ किए गए अपराध के लिए समान सजा की मांग करने के लिए कानूनी सुरक्षा की हकदार है.

ये भी पढ़ें - हिजाब विवाद पर SC के तीखे सवाल, 'क्या यूनिफॉर्म निधारित जगह पर मिनी पहन सकते हैं'

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की मांग वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया है. चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट की पीठ ने कहा कि यह मुद्दा पहले से विचाराधीन है. पीठ ने जनहित याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे पर दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाएं 12 सितंबर को सूचीबद्ध हैं. इसलिए, इस मुद्दे पर एक जनहित याचिका अनावश्यक है.

सुनवाई के दौरान कहा गया कि याचिका में वैवाहिक बलात्कार के इतिहास का पता लगाया गया और कहा गया कि 1970 के दशक तक अधिकांश देशों ने पति को अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाने का अधिकार दिया. वहीं बलात्कार विरोधी आंदोलनों के परिणामस्वरूप 150 से अधिक देशों में वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण हुआ. हालांकि, भारत दुनिया के 200 देशों में से 36 देशों में से एक है जहां वैवाहिक बलात्कार अभी भी कानूनी है.

याचिका में भारत में वैवाहिक बलात्कार न्यायशास्त्र पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि केरल हाई कोर्ट ने 6 अगस्त 2021 को फैसला सुनाया कि वैवाहिक बलात्कार तलाक के लिए आधार हो सकता है. हालांकि, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि पति द्वारा पत्नी से जबरन यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं है. यह प्रस्तुत किया गया कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 3 में यौन उत्पीड़न की पहली व्याख्या के तहत ऐसा कोई भी आचरण शामिल है जो किसी महिला की गरिमा को अपमानित करता है, शर्मिंदा करता है या प्रभावित करता है और इसके लिए वह अपने पति से अलग होने की मांग कर सकती है. याचिका के अनुसार, यह पर्याप्त नहीं है क्योंकि एक विवाहित महिला अपने खिलाफ किए गए अपराध के लिए समान सजा की मांग करने के लिए कानूनी सुरक्षा की हकदार है.

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Last Updated : Sep 5, 2022, 9:25 PM IST
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