नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की खंडपीठ कौशांबी रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन और पुष्प विहार आवास विकास समिति लिमिटेड के अध्यक्ष द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की है. जिन्होंने पर्यावरण प्रदूषण जैसे मुद्दे पर प्रकाश डाला है.
दरअसल, ट्रैफिक प्रबंधन और नगर पालिका के ठोस कचरे के अप्रतिबंधित डंपिंग ग्राउंड की वजह से प्रदूषण की समस्या है. वहीं सार्वजनिक सेवा के वाहनों की पार्किंग में पर्याप्त जगह नहीं होने के कारण यूपीएसआरटीसी की बसों से भी प्रदूषण बढ़ रहा है. याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इस सब के परिणामस्वरूप क्षेत्र के निवासियों को श्वसन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और भूजल भी दूषित हो गया है.
एनजीटी में दायर हो चुकी याचिका
यह मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष भी स्थानांतरित किया गया था जिसने सीपीसीबी, यूपीपीसीबी और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के प्रतिनिधियों की टीम से रिपोर्ट मांगी थी. अनुपालन रिपोर्ट 2017 में कमियों की पहचान करने के बाद पुनरावृत्ति याचिका दायर की गई. इन अनुशंसाओं में कौशाम्बी बस डिपो और इस क्षेत्र में यातायात के सुचारू प्रवाह के लिए चौराहों और सड़कों के उचित डिजाइन के साथ ही आईएसबीटी आनंद विहार का आधुनिकीकरण शामिल है.
ठोस कचरे का किया जाए प्रबंधन
इसके अलावा पैसिफिक मॉल के पास कौशांबी बस डिपो के निकास द्वार को शिफ्ट करने की सिफारिश याचिका में की गई है. जिसमें वेव सिनेमा से सटे सड़कों का फुटपाथ (जहां सीवरेज सिस्टम बिछा हुआ है), ठोस कचरे के लिए डस्टबिन सिस्टम और पुलिस को स्थानीय बसों और फेरीवालों को अनुमति नहीं देने का निर्देश दिया है. शीर्ष अदालत ने माना है कि जमीन पर स्थिति में अभी भी सुधार नहीं हुआ है और इस मुद्दे का इलाज इसलिए नहीं किया जा रहा है.
अदालत के आदेश पर होती है कार्रवाई
याचिका के माध्यम से कहा गया है कि अदालत के निर्देश पर कार्रवाई होती है लेकिन कुछ दिनों बाद फिर वहीं स्थिति वापस हो जाती है. इन समस्याओं में से कुछ सिर्फ गाजियाबाद में उत्पन्न नहीं होती जैसे कि टोल बूथों पर वाहनों के कारण होने वाली समस्या. आनंद विहार टर्मिनल जहां दिल्ली की बसें रुकती हैं के बारे में भी अदालत को सूचित किया गया है.
बेतरतीब पार्किंग की वजह से समस्या
याचिका में कहा गया है कि गाजियाबाद के भीतर अंतरराज्यीय बसों सहित अन्य सार्वजनिक सेवा के वाहनों की पार्किंग के लिए पर्याप्त जगह का अभाव है. जिसके परिणामस्वरूप वाहन सार्वजनिक सड़कों पर बेतरतीब तरीके से पार्क किए जाते हैं. याचिकाकर्ता ने ऐसी तस्वीरें भी पेश की हैं. तस्वीरों से पता चलता है कि वाहनों को अभी भी उसी क्षेत्र के आसपास पार्क किया जा रहा है, जहां एनजीटी ने रोक लगाई है.
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सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि इस समस्या को यातायात के उचित प्रबंधन व पार्किंग के लिए पर्याप्त जगह बनाने से हल किया जाना है. इस मामले पर अब 14 अप्रैल को फिर से सुनवाई होगी.