नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु राज्य चुनाव आयोग (टीएनएसईसी) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि नौ नए जिलों में स्थानीय निकाय चुनाव (local body elections) 15 सितंबर तक संपन्न कराए, जो अभी चार जिलों में से बनाए गए हैं. कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के दौरान कहा कि 'कोरोना कोई बहाना नहीं है और चुनाव तब होते हैं जब राजनीतिक दल पसंद करते हैं.'
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि राज्य चुनाव आयोग स्थानीय निकाय चुनाव कराने के लिए अधिसूचना जारी करे. चुनाव परिणाम 15 सितंबर तक घोषित करे.
पीठ ने 11 दिसंबर, 2019 को पारित आदेश का भी संज्ञान लिया. पीठ ने कहा कि चुनाव कराने के लिए दिए गए चार महीने के बजाय चुनाव पैनल ने 18 महीने का समय लिया है.
'आदेश न माना तो अवमानना का होगा जिम्मेदार'
पीठ ने यह भी कहा कि स्थानीय निकायों का कार्यकाल 2018-19 में समाप्त हो गया है और तब से कोई नया निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं है. इसमें कहा गया है कि अगर अदालत के आदेश का पालन नहीं किया जाता है तो चुनाव आयोग अवमानना की कार्रवाई के लिए उत्तरदायी होगा.
ईसीआई ने ये दिया तर्क
भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस नरसिम्हा ने कहा कि 2019 के आदेश को लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि राज्य में विधानसभा चुनावों को प्राथमिकता दी गई थी और बाद में ध्यान पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव पर था. पीठ ने कहा कि स्थानीय निकाय चुनाव एसईसी कराता है न कि भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई).
कोर्ट ने लगाई फटकार
नरसिम्हा ने कहा कि राज्य में अभी भी COVID संक्रमण के मामले ज्यादा हैं इसलिए इन नौ जिलों में चुनाव कराने के लिए कुछ समय दिया जाए. पीठ ने कहा कि आज के समय में हर दूसरे मामले में कोविड एक बहाना बन गया है और राजनीतिक दल जब चाहें तब चुनाव करा सकते हैं.
और समय देने से किया इनकार
इस पर नरसिम्हा ने कहा कि उनका आदेश का पालन न करने का कोई इरादा नहीं है. उन्होंने कहा कि राज्य को पहले इन नौ जिलों में परिसीमन की कवायद करनी होगी, फिर चुनाव के लिए अधिसूचना जारी करनी होगी फिर चुनाव कराना होगा जिसके लिए कुछ और समय की आवश्यकता हो सकती है.
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पीठ ने राज्य चुनाव आयोग को और समय देने से इनकार कर दिया और आदेश का पालन करने को कहा. गौरतलब है कि 11 दिसंबर, 2019 को शीर्ष अदालत ने तमिलनाडु सरकार और राज्य के चुनाव पैनल को 1991 की जनगणना के बजाय 2011 की जनगणना के आधार पर आगामी स्थानीय निकाय चुनाव कराने का निर्देश दिया था. विपक्षी दल द्रमुक ने इस संबंध में आरोप लगाए थे.