नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने गुरुवार को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए एम्स को निर्देश दिया कि वह 21 साल की गर्भवती महिला को उसके स्वास्थ्य और भलाई को सर्वोपरि रखते हुए पूरी चिकित्सा देखभाल प्रदान करे. न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने भी भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा सुझाए गए, एक जोड़े को पंजीकृत केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) को बच्चे को गोद लेने की अनुमति दी.
अदालत 21 वर्षीय बीटेक छात्रा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जो 29 सप्ताह से अधिक की गर्भवती है और गर्भपात चाहती है. अदालत ने पिछले अवसर पर एम्स से उसकी स्थिति का आकलन करने और उसके अनुसार सुझाव देने के लिए एक मेडिकल टीम गठित करने को कहा था. चिकित्सकीय सलाह थी कि प्रसव हो और लड़की ने इसके लिए सहमति व्यक्त की और एएसजी ऐश्वर्या भाटी द्वारा आज अदालत को सूचित किए जाने के बाद बच्चे को गोद लेने के लिए छोड़ दिया.
SG तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि CARA यह तय करने की प्रक्रिया में है कि कौन सा परिवार गोद ले सकता है, लेकिन पहले से ही एक दंपति है, जो गोद लेने के इच्छुक हैं और बच्चे को एक उत्कृष्ट परवरिश मिलेगी. अदालत को यह भी बताया गया कि लड़की पूरी तरह से टूट चुकी है. उसका फोन बंद है और उसे चिंता है कि वह कॉलेज कैसे जाएगी.
पढ़ें: Kerala Journalist Siddique Kappan लखनऊ जेल से रिहा, हाई कोर्ट ने दी थी जमानत
एएसजी भाटी ने तब कहा था कि जरूरत पड़ने पर वह लड़की को अपने घर बुलाएंगे और उसकी मदद करेंगे. सीजेआई ने कहा कि वे एम्स से सुरक्षित बच्चे के जन्म के लिए सभी आवश्यक सहायता देने के लिए कहेंगे. सीजेआई ने इस मामले पर चर्चा करने के लिए शामिल अधिवक्ताओं को अपने कक्ष में बुलाया और फिर आदेश देने का निर्णय लिया.