नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को शीर्ष अदालत और हाईकोर्ट में वकीलों को वरिष्ठ वकील के रूप में नामित करने की प्रथा की पुष्टि करते हुए कहा कि इस प्रथा को अनुचित नहीं माना जा सकता है. न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने सात अन्य अधिवक्ताओं के साथ वकील मैथ्यूज जे नेदुम्परा द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए याचिका को दुर्भाग्यपूर्ण और याचिकाकर्ताओं द्वारा चलाए जा रहे अपमानजनक अभियान (vilification campaign) का एक हिस्सा कहा.
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि वरिष्ठ पदनाम ने विशेष अधिकारों वाले अधिवक्ताओं का एक वर्ग तैयार किया है और यह पदनाम अक्सर न्यायाधीशों, वरिष्ठ अधिवक्ताओं, राजनेताओं और मंत्रियों के रिश्तेदारों को ही लाभ पहुंचाता है. पीठ में न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया भी शामिल थे. पीठ ने कहा कि संवैधानिक अदालतों में वरिष्ठों को नामित करने की प्रथा समझदार अंतर और योग्यता के मानकीकृत मैट्रिक्स पर आधारित है.
पीठ ने 1961 के अधिवक्ता अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधानों की पुष्टि करते हुए कहा कि वरिष्ठ अधिवक्ताओं को नामित करने की प्रक्रिया कृत्रिम या मनमाने भेद पर आधारित नहीं है. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह प्रक्रिया कानून और न्यायशास्त्र के विकास की प्रक्रिया में अदालत की सहायता करने वाले वकीलों की सदियों पुरानी परंपरा के अनुरूप है. याचिकाकर्ताओं ने अधिवक्ता अधिनियम की धारा 16 और 23 (5) की वैधता को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि ये वकीलों, वरिष्ठ अधिवक्ताओं और अन्य अधिवक्ताओं के दो वर्ग बनाते हैं.