सहरसा: बिहार के सहरसा के लाल ने कमाल कर दिया है. छोला-भटूरा बेचने वाले एक साधारण परिवार के बेटे ने जज बनकर (Chhola Bhatura seller son became judge in Saharsa) इलाके का नाम रोशन किया है. सहरसा के रहने वाले कमलेश कुमार उर्फ कमल यादव न्यायिक सेवा में 64वीं रैंक लाकर जज बन गए हैं. उनके पिता चन्द्रशेखर यादव दिल्ली में रहकर ठेले पर छोला भटूरा बेचते थे. कमलेश मूल रूप से सहरसा के सत्तोर पंचायत के बरुवाही वार्ड नं 12 के रहने वाले हैं.
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जज बना ठेले वाले का बेटा, कहानी कर देगी हैरान! : बिहार के सहरसा के लाल कमलेश कुमार उर्फ कमल यादव ने कर दिखाया है. जिले के नवहट्टा प्रखंड के सत्तोर पंचायत के बरुवाही वार्ड नं 12 के रहने वाले कमलेश यादव ने दिल्ली में रहकर लॉ की पढ़ाई करते हुए न्यायिक सेवा में 64 वीं रैंक लाकर जज बनने में सफलता पाई है. उनकी इस सफलता से पैतृक गांव में खुशी की लहर है.
कमलेश की सफलता के पीछे पिता की मेहनतः कमलेश की सफलता के पीछे उनके पिता चन्द्रशेखर यादव का बहुत बड़ा योगदान है. उन्होंने दिल्ली में झुग्गी झोपड़ी में रहते हुए छोले-भटूरे की दुकान चलाकर अपने बेटे को पढ़ाया और इस काबिल बनाया. गांव में कमलेश के चाचा दया कांत यादव ने बताया कि शुरुआती दौर में आज से कई वर्ष पहले कमलेश के पिता रोजगार की तलाश में दिल्ली चले गए थे. वहां वो एक झुग्गी झोपड़ी ली और फिर छोले भटूरे की दुकान चलाने लगे. 1992 ई में कमलेश के पिता गांव आए और अपने परिवार को लेकर दिल्ली चले गए.
'मेरा भतीजा के जज बनने से हमलोग बहुत खुश हैं. हमलोग सब भाई दिल्ली गए. छोला-भटूरा का दुकान खोले. वहां रहकर वह पढ़ा और आज जज बना. एक बार दुकान लगाने के दौरान पुलिस से उसके पिता की हाथापाई हुई थी. उस समय लोगों ने कहा था कि पुलिस से भी बड़ा जज होता है. तभी कमलेश ने कहा था कि बड़ा होकर जज बनूंगा' - दया कांत यादव, कमलेश के चाचा
पुलिस वाले ने पिता को मारा था थप्पड़: कमलेश के चाचा बताते हैं कि कमलेश जब चार साल के थे तो वो अपने पिता के छोले भटूरे की दुकान में पिता का हाथ बटाते थे. इसी दौरान एक दिन उनके पिता से एक पुलिस वाले कि झड़प हुई और पुलिस वाले ने कमलेश के सामने उनके पिता थप्पड़ जड़ दिया. उसके बाद कमलेश कुमार को बहुत गुस्सा आया था और कमलेश के पिता ने अपने बेटे से यह कहा कि बेटा पुलिस वाले जज को सैल्यूट करते हैं. इसके बाद कमलेश ने जज बनने की ठान ली और कड़ी मेहनत करके इस पद के लिए सफलता पाई.
'मेरे पिता बेहद निर्धन परिवार से आते हैं. आजीविका के लिए दिल्ली गए. यहां एक झुग्गी-झोपड़ी में रहकर जिंदगी गुजारते थे. लेकिन इस बीच सरकार ने लाल किले के पीछे झुग्गी-झोपड़ियों को हटाने का गाइडलाइन जारी किया. तमाम अवैध झुग्गी झोपड़ी ध्वस्त कर दिए गए. मुझे उस समय काफी गुस्सा आया मगर मैं कुछ नहीं कर सकता था. एक दिन पिता ने मुझे कहा कि यह पुलिस वाले जज से काफी डरते हैं. यही बात मेरे दिलों दिमाग में बैठ गई और मैंने जज बनने का फैसला किया.' - कमलेश कुमार
मुश्किल भरा था कामयाबी का सफर : घरवालों ने बताया कि जज बनने की राह इतनी आसान नहीं थी. काफी मेहनत करके कमलेश ने लॉ की पढ़ाई की और जज बनने की तैयारी शुरू की. इस बीच उन्हें एक दो बार निराश भी होना पड़ा, लेकिन अंत में उन्हें यह कामयाबी मिल ही गई. वाकई में कमलेश कुमार लोगों के लिए मिशाल बने हुए हैं और यह संदेश दे रहे हैं कि परिस्थिति कुछ भी रहे, लेकिन इंसान को हार नहीं माननी चाहिए.
"मैं बहुत खुश हूं कि कमलेश जी जज बन गए और उनके परिवार के प्रति सहानुभूति प्रकट करता हूं. उनके पिता ने छोला-भटूरा की दुकान लगाकर बेटे को पढ़ाया और इस लायक बनाया कि बेटा जज बनकर हमारे गांव का नाम रोशन किया. इसके लिए कमलेश और उनके पिता को धन्यवाद देता हूं"- तेज नारायण यादव, वर्तमान मुखिया पति