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महिला फुटबॉल कोच सुदेश ने कभी समाज के तानों के बाद छोड़ा था ग्राउंड, आज तैयार कर रही हैं भविष्य के मेसी और रोनाल्डो

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Published : Sep 10, 2022, 8:18 PM IST

कुरुक्षेत्र के गांव त्यौडा गांव की रहने सुदेश एक मध्यवर्गीय परिवार से आती है. फुटबॉल में नाम कमा चुकी सुदेश गांव के बच्चों को एक साल तक बिना फीस लिए ट्रेनिंग दी है. बच्चों के हौसले और कोच के जज्बे को देखते हुए कुछ दिन पहले ही इस खेल ग्राउंड को खेल नर्सरी में शामिल कर लिया गया है.

फुटबॉल कोच सुदेश की कहानी
फुटबॉल कोच सुदेश की कहानी

कुरुक्षेत्र: धर्मनगरी कुरुक्षेत्र के त्यौडा गांव को अब मिनी ब्राजील के नाम से जाना जाने लगा है. ब्राजील का नाम सुनते ही सबसे पहले फुटबॉल जहन में आता है. गांव त्यौडा भी इसी फुटबॉल के लिए मशहूर हो रहा है. फुटबॉल का नशा यहां के बच्चों के सिर चढ़कर बोल रहा है. 80 से 100 घरों वाले गांव के लगभग हर परिवार से बच्चे फुटबॉल खेलने ग्राउंड पहुंचते हैं और फुटबॉल की प्रैक्टिस करते हैं. बच्चों के बीच फुटबॉल का क्रेज जगाने का श्रेय जाता है महिला कोच सुदेश (Female Football coach of haryana) को, जो एक निजी स्कूल में पढ़ाने के साथ-साथ गांव के बच्चों को फुटबॉल के गुर सिखाती हैं. एक आम लड़की के फुटबॉल खेलने और अब सिखाने तक की कहानी संघर्षों से भरी है.

समाज के कारण छोड़ना पड़ा खेल- फुटबॉल कोच सुदेश की कहानी संघर्ष और कठिनाइयों भरी रही (FootBall Coach Sudesh Journey) है. सुदेश ने जब खेलना शुरू किया था तब उन्हें खेलने के लिए शाहबाद जाना पड़ता था. उस वक्त समाज के ताने भी झेलने पड़े, उस वक्त रूढ़ीवादी समाज ने लड़की होकर लड़कों का खेल खेलने पर सवाल (Female Football coach sudesh) उठा दिए. जिसके बाद एक वक्त ऐसा भी आया कि उन्होंने खेल का मैदान छोड़ दिया. हालांकि सुदेश ने फुटबॉल के मैदान में स्टेट और नेशनल प्रतियोगिताओं में खेला है और एक एथलीट होने के नाते वो अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भी शामिल हो चुकी हैं.

महिला फुटबॉल कोच सुदेश ने कभी समाज के तानों के बाद छोड़ा था ग्राउंड, आज तैयार कर रही हैं भविष्य के मेसी और रोनाल्डो

परिवार ने दिया साथ- ईटीवी भारत से बातचीत में सुदेश ने बताया कि भले वो एक गरीब परिवार से संबंध रखती हों और समाज के तानों की वजह से उन्हें ग्राउंड छोड़ना पड़ा हो. लेकिन इस सफर में उनका परिवार उनके साथ खड़ा रहा. आज वो बच्चों को फुटबॉल की ट्रेनिंग दे रही हैं और चाहती हैं कि जो उनके साथ बीती वो किसी के साथ ना बीते. सुदेश ने बताया कि उन्होंने एक साल इन बच्चों को बिना किसी शुल्क के ट्रेनिंग दी है. खेल और उससे जुड़े उपकरणों पर होने वाले खर्च में सामाजिक संस्थाओं ने भी अपनी भूमिका निभाई.

5 बच्चों से शुरू की कोचिंग- सुदेश ने जो खेल समाज के तानों की वजह से छोड़ा था, नई पीढ़ी को वही खेल सिखाने की ठानी. शुरुआत में गांव के 5 बच्चों को ट्रेनिंग देना शुरू किया. धीरे-धीरे गांव के बच्चों पर भी फुटबॉल का बुखार चढ़ा और एक साल बाद आज ग्राउंड पर वो 100 से ज्यादा बच्चों को फुटबॉल के गुर सिखाती हैं. आज उनके गांव के ही नहीं बल्कि आस-पास के गांवों और उस शाहबाद शहर से भी बच्चे फुटबॉल सीखने आते हैं, जहां सुदेश फुटबॉल सीखने जाती थी.

फुटबॉल कोच सुदेश की कहानी
सुदेश गांव के ही बच्चों को ट्रेनिंग दे रही हैं.

20 बच्चे जिला स्तर पर खेल रहे हैं- सुदेश फुटबॉल के सहारे यहां आने वाले बच्चों को बेहतर खिलाड़ी बनाने में अपनी भूमिका निभा रही है. सुदेश के अंडर ट्रेनिंग कर रहे लगभग 20 बच्चों की जिला स्तर पर सिलेक्शन भी हुआ है. वह बताती है कि इस काम में सबसे अधिक सहयोग ग्रामीण व गांव के स्कूल का रहा है जिन्होंने उन्हें बच्चों को सिखाने के लिए मैदान दिया. आज उनके पास 100 से अधिक बच्चे सीखने के लिए आते हैं जिनमें अधिकतर लड़कियां हैं. उन्होंने कहा कि शुरुआती दौर में उनको काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. शुरू मे उनके पास ना ही खेलने के लिए ग्राउंड था और ना ही फुटबॉल थी. लेकिन धीरे-धीरे स्थिति ठीक होती जा रही है.

फुटबॉल कोच सुदेश की कहानी
महिला फुटबॉल कोच सुदेश.

खिलाड़ियों की नर्सरी तैयार कर रही हैं सुदेश- हरियाणा खेल और खिलाड़ियों के लिए जाना जाता है. हरियाणा के खिलाड़ी हर खेल में दुनियाभर में देश और प्रदेश का नाम रोशन कर रहे हैं. ऐसे खिलाड़ियों को तैयार करने में सुदेश जैसे कोच की अहम भूमिका होती है. कभी एक खाली मैदान से शुरू हुआ सुदेश का सफर अब नर्सरी तक पहुंच चुका है. उन्होंने कोच बनने की पढ़ाई की और आज वो एक फुटबॉल नर्सरी चला रही हैं. जहां भविष्य के फुटबॉल खिलाड़ियों की नई पौध तैयार हो रही है. उनके पास 4 साल से 17 साल तक के बच्चे सीखने आते हैं. हरियाणा सरकार की कोच को दी जाने वाली मदद भी उन्हें मिल रही है. उनकी मेहनत रंग भी ला रही है, बस उनका सपना है जो मुकाम वो एक खिलाड़ी होने के तौर पर नहीं पा सकीं वो उनके तैयार किए गए खिलाड़ी पाएं और देश-प्रदेश का नाम रोशन करें. सुदेश के पास फुटबॉल सीखने आने वाले बच्चे भी उन्हें अपना रोल मॉडल (Success Story Of FootBall Coach Sudesh) मानते हैं, यहां आने वाला हर बच्चा देश के लिए खेलना चाहता हैं.

ये भी पढ़ें: ये हैं देश के पहले अर्जुन अवार्डी पहलवान बाप बेटी, इनके पास आया था पहले दंगल फिल्म का ऑफर

कुरुक्षेत्र: धर्मनगरी कुरुक्षेत्र के त्यौडा गांव को अब मिनी ब्राजील के नाम से जाना जाने लगा है. ब्राजील का नाम सुनते ही सबसे पहले फुटबॉल जहन में आता है. गांव त्यौडा भी इसी फुटबॉल के लिए मशहूर हो रहा है. फुटबॉल का नशा यहां के बच्चों के सिर चढ़कर बोल रहा है. 80 से 100 घरों वाले गांव के लगभग हर परिवार से बच्चे फुटबॉल खेलने ग्राउंड पहुंचते हैं और फुटबॉल की प्रैक्टिस करते हैं. बच्चों के बीच फुटबॉल का क्रेज जगाने का श्रेय जाता है महिला कोच सुदेश (Female Football coach of haryana) को, जो एक निजी स्कूल में पढ़ाने के साथ-साथ गांव के बच्चों को फुटबॉल के गुर सिखाती हैं. एक आम लड़की के फुटबॉल खेलने और अब सिखाने तक की कहानी संघर्षों से भरी है.

समाज के कारण छोड़ना पड़ा खेल- फुटबॉल कोच सुदेश की कहानी संघर्ष और कठिनाइयों भरी रही (FootBall Coach Sudesh Journey) है. सुदेश ने जब खेलना शुरू किया था तब उन्हें खेलने के लिए शाहबाद जाना पड़ता था. उस वक्त समाज के ताने भी झेलने पड़े, उस वक्त रूढ़ीवादी समाज ने लड़की होकर लड़कों का खेल खेलने पर सवाल (Female Football coach sudesh) उठा दिए. जिसके बाद एक वक्त ऐसा भी आया कि उन्होंने खेल का मैदान छोड़ दिया. हालांकि सुदेश ने फुटबॉल के मैदान में स्टेट और नेशनल प्रतियोगिताओं में खेला है और एक एथलीट होने के नाते वो अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भी शामिल हो चुकी हैं.

महिला फुटबॉल कोच सुदेश ने कभी समाज के तानों के बाद छोड़ा था ग्राउंड, आज तैयार कर रही हैं भविष्य के मेसी और रोनाल्डो

परिवार ने दिया साथ- ईटीवी भारत से बातचीत में सुदेश ने बताया कि भले वो एक गरीब परिवार से संबंध रखती हों और समाज के तानों की वजह से उन्हें ग्राउंड छोड़ना पड़ा हो. लेकिन इस सफर में उनका परिवार उनके साथ खड़ा रहा. आज वो बच्चों को फुटबॉल की ट्रेनिंग दे रही हैं और चाहती हैं कि जो उनके साथ बीती वो किसी के साथ ना बीते. सुदेश ने बताया कि उन्होंने एक साल इन बच्चों को बिना किसी शुल्क के ट्रेनिंग दी है. खेल और उससे जुड़े उपकरणों पर होने वाले खर्च में सामाजिक संस्थाओं ने भी अपनी भूमिका निभाई.

5 बच्चों से शुरू की कोचिंग- सुदेश ने जो खेल समाज के तानों की वजह से छोड़ा था, नई पीढ़ी को वही खेल सिखाने की ठानी. शुरुआत में गांव के 5 बच्चों को ट्रेनिंग देना शुरू किया. धीरे-धीरे गांव के बच्चों पर भी फुटबॉल का बुखार चढ़ा और एक साल बाद आज ग्राउंड पर वो 100 से ज्यादा बच्चों को फुटबॉल के गुर सिखाती हैं. आज उनके गांव के ही नहीं बल्कि आस-पास के गांवों और उस शाहबाद शहर से भी बच्चे फुटबॉल सीखने आते हैं, जहां सुदेश फुटबॉल सीखने जाती थी.

फुटबॉल कोच सुदेश की कहानी
सुदेश गांव के ही बच्चों को ट्रेनिंग दे रही हैं.

20 बच्चे जिला स्तर पर खेल रहे हैं- सुदेश फुटबॉल के सहारे यहां आने वाले बच्चों को बेहतर खिलाड़ी बनाने में अपनी भूमिका निभा रही है. सुदेश के अंडर ट्रेनिंग कर रहे लगभग 20 बच्चों की जिला स्तर पर सिलेक्शन भी हुआ है. वह बताती है कि इस काम में सबसे अधिक सहयोग ग्रामीण व गांव के स्कूल का रहा है जिन्होंने उन्हें बच्चों को सिखाने के लिए मैदान दिया. आज उनके पास 100 से अधिक बच्चे सीखने के लिए आते हैं जिनमें अधिकतर लड़कियां हैं. उन्होंने कहा कि शुरुआती दौर में उनको काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. शुरू मे उनके पास ना ही खेलने के लिए ग्राउंड था और ना ही फुटबॉल थी. लेकिन धीरे-धीरे स्थिति ठीक होती जा रही है.

फुटबॉल कोच सुदेश की कहानी
महिला फुटबॉल कोच सुदेश.

खिलाड़ियों की नर्सरी तैयार कर रही हैं सुदेश- हरियाणा खेल और खिलाड़ियों के लिए जाना जाता है. हरियाणा के खिलाड़ी हर खेल में दुनियाभर में देश और प्रदेश का नाम रोशन कर रहे हैं. ऐसे खिलाड़ियों को तैयार करने में सुदेश जैसे कोच की अहम भूमिका होती है. कभी एक खाली मैदान से शुरू हुआ सुदेश का सफर अब नर्सरी तक पहुंच चुका है. उन्होंने कोच बनने की पढ़ाई की और आज वो एक फुटबॉल नर्सरी चला रही हैं. जहां भविष्य के फुटबॉल खिलाड़ियों की नई पौध तैयार हो रही है. उनके पास 4 साल से 17 साल तक के बच्चे सीखने आते हैं. हरियाणा सरकार की कोच को दी जाने वाली मदद भी उन्हें मिल रही है. उनकी मेहनत रंग भी ला रही है, बस उनका सपना है जो मुकाम वो एक खिलाड़ी होने के तौर पर नहीं पा सकीं वो उनके तैयार किए गए खिलाड़ी पाएं और देश-प्रदेश का नाम रोशन करें. सुदेश के पास फुटबॉल सीखने आने वाले बच्चे भी उन्हें अपना रोल मॉडल (Success Story Of FootBall Coach Sudesh) मानते हैं, यहां आने वाला हर बच्चा देश के लिए खेलना चाहता हैं.

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