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बुजुर्ग महिलाओं की उम्मीदों पर खरा उतर रहा काशी का 'आशा भवन' - आशा भवन

वाराणसी स्थित विधवा आश्रम आशा भवन में अपनों से ठुकराई विधवा माताएं रहती हैं. यहां रहने वाली माताओं ने अपनों की बेईमानी, अपनी उम्मीदों, ख्वाहिशों को दफन होते देखा है. अपने जीवनसाथी का साथ छूट जाने पर यह माताएं अकेली हो गई थीं. ऐसे में उन्हें आशा की छांव मिली. जहां वो अपना जीवन व्यतीत कर रही हैं.

vidhwa ashram asha bhavan
आशा भवन
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Published : Jun 26, 2021, 12:05 AM IST

वाराणसीः आपने बाग़बान पिक्चर जरूर देखी होगी, जिसमें अमिताभ बच्चन ने सवाल किया था कि जब मां-बाप अपनी ख्वाहिशों को दफन कर अपने बच्चों की ख्वाहिशें पूरी कर सकते हैं, तो आखिर बच्चे अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने से क्यों कतराते हैं. भले ही यह डायलॉग रील लाइफ के पिक्चर का हो लेकिन वर्तमान में यह रियल लाइफ में बखूबी सटीक बैठता है क्योंकि वास्तविकता के धरातल पर हमें यह सच्चाई देखने को मिलती है कि औलाद अपने मां-बाप की जिम्मेदारियों को पूरा करने से कतराते हैं. ऐसे में विधवा आश्रम आशा भवन ने अपनों से ठोकर खाई माताओं को सहारा दिया है.

जानकारी देतीं संवाददाता

अपनों ने छोड़ा साथ

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के लिए चेतगंज इलाके की रहने वाली विधवा माता किशोरी देवी बताती हैं कि आज के समाज में कोई भी किसी का नहीं है. जब तक उनके पति का साथ था तब तक उनका जीवन सुख में बीत रहा था, लेकिन पति के देहांत के बाद उनके रिश्तेदार ने उनका साथ नहीं दिया. वह बताती हैं कि उनकी कोई औलाद नहीं है. कुछ दिन तक उन्हें रिश्तेदारों ने रखा, लेकिन उसके बाद वह उन्हें ताने देने लगे. उन्हें समय पर खाना भी नहीं मिलता था. जिसके कारण वह बीमार हो गईं. उसके बाद उनके क्षेत्र के सभासद ने उन्हें 7 साल पहले आशा आश्रम पहुंचाया. जहां अब वो सुखी हैं.

इसे भी पढ़ें- मथुरा : विधवा आश्रम में मनी होली, लौटाए खुशियों के रंग

यहां है एक अलग परिवार

मूल रूप से उत्तराखंड की रहने वाली विधवा माता स्नेहलता बताती हैं कि वह काशी आई हैं. उनकी एक बेटी है, जिसकी शादी हो चुकी है. उन्होंने बताया कि पति के देहांत के बाद वह बिल्कुल अकेली हो गईं थी. ऐसे में कुछ दिन तक उनकी बेटी ने उनको अपने साथ रखा है, लेकिन पारिवारिक कलह के कारण उन्हें वाराणसी में आश्रम का पता बताकर उन्हें यहां पहुंचा दिया. वह कहती हैं कि अब मेरा परिवार यही है. यहां एक बहुत अलग रिश्ता जुड़ चुका है. हम सब आपस में एक अच्छा समय व्यतीत करते हैं.

2006 से की सेवा की शुरुआत

आंध्र प्रदेश के रहने वाले जोसेफ आशा भवन के केयर टेकर हैं. वह बताते हैं कि उन्होंने अपनी नौकरी छोड़कर माताओं की सेवा करने का फैसला लिया. वह 2006 से ऐसी सभी माताओं की सेवा कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि वह माताओं की पूरी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हैं, उन्हें यदि कहीं से सूचना मिलती है कि कोई माता कहीं बाहर पड़ी हुई है तो वह उन्हें अपने साथ लेकर के आते हैं. उनकी सेवा करते हैं. उन्होंने बताया कि उनका मूल उद्देश्य माताओं की सेवा करना है. जिससे वह जो प्रेम और उम्मीद छोड़ चुकी हैं, उन्हें वह वापस मिले और वह खुशहाली के साथ-साथ अपनी जिंदगी जी सकें.

इसे भी पढ़ें- क्या है इस हिंदू कब्रिस्तान की सच्चाई, आप भी जानिए

ऐसी है इन लोगों की दिनचर्या

केयर टेकर जोसेफ बताते हैं कि माताओं के लिए आश्रम में सभी प्रकार की व्यवस्था है. यहां पर सुबह माताएं वॉक के लिए जाती हैं, उसके बाद स्नान ध्यान पूजा-अर्चना करती हैं. नाश्ता करने के बाद दोपहर में उनके लिए भोजन की व्यवस्था की गई है. इसके साथ-साथ सभी के मनोरंजन के लिए यहां समय-समय पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन की वजह से वो उन्हें इन दिनों बाहर नहीं ले जा पा रहे, लेकिन आमतौर पर समय-समय पर पिकनिक के लिए बाहर लेकर जाते हैं, जिससे उनका मन बहल सके.

वाराणसीः आपने बाग़बान पिक्चर जरूर देखी होगी, जिसमें अमिताभ बच्चन ने सवाल किया था कि जब मां-बाप अपनी ख्वाहिशों को दफन कर अपने बच्चों की ख्वाहिशें पूरी कर सकते हैं, तो आखिर बच्चे अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने से क्यों कतराते हैं. भले ही यह डायलॉग रील लाइफ के पिक्चर का हो लेकिन वर्तमान में यह रियल लाइफ में बखूबी सटीक बैठता है क्योंकि वास्तविकता के धरातल पर हमें यह सच्चाई देखने को मिलती है कि औलाद अपने मां-बाप की जिम्मेदारियों को पूरा करने से कतराते हैं. ऐसे में विधवा आश्रम आशा भवन ने अपनों से ठोकर खाई माताओं को सहारा दिया है.

जानकारी देतीं संवाददाता

अपनों ने छोड़ा साथ

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के लिए चेतगंज इलाके की रहने वाली विधवा माता किशोरी देवी बताती हैं कि आज के समाज में कोई भी किसी का नहीं है. जब तक उनके पति का साथ था तब तक उनका जीवन सुख में बीत रहा था, लेकिन पति के देहांत के बाद उनके रिश्तेदार ने उनका साथ नहीं दिया. वह बताती हैं कि उनकी कोई औलाद नहीं है. कुछ दिन तक उन्हें रिश्तेदारों ने रखा, लेकिन उसके बाद वह उन्हें ताने देने लगे. उन्हें समय पर खाना भी नहीं मिलता था. जिसके कारण वह बीमार हो गईं. उसके बाद उनके क्षेत्र के सभासद ने उन्हें 7 साल पहले आशा आश्रम पहुंचाया. जहां अब वो सुखी हैं.

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यहां है एक अलग परिवार

मूल रूप से उत्तराखंड की रहने वाली विधवा माता स्नेहलता बताती हैं कि वह काशी आई हैं. उनकी एक बेटी है, जिसकी शादी हो चुकी है. उन्होंने बताया कि पति के देहांत के बाद वह बिल्कुल अकेली हो गईं थी. ऐसे में कुछ दिन तक उनकी बेटी ने उनको अपने साथ रखा है, लेकिन पारिवारिक कलह के कारण उन्हें वाराणसी में आश्रम का पता बताकर उन्हें यहां पहुंचा दिया. वह कहती हैं कि अब मेरा परिवार यही है. यहां एक बहुत अलग रिश्ता जुड़ चुका है. हम सब आपस में एक अच्छा समय व्यतीत करते हैं.

2006 से की सेवा की शुरुआत

आंध्र प्रदेश के रहने वाले जोसेफ आशा भवन के केयर टेकर हैं. वह बताते हैं कि उन्होंने अपनी नौकरी छोड़कर माताओं की सेवा करने का फैसला लिया. वह 2006 से ऐसी सभी माताओं की सेवा कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि वह माताओं की पूरी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हैं, उन्हें यदि कहीं से सूचना मिलती है कि कोई माता कहीं बाहर पड़ी हुई है तो वह उन्हें अपने साथ लेकर के आते हैं. उनकी सेवा करते हैं. उन्होंने बताया कि उनका मूल उद्देश्य माताओं की सेवा करना है. जिससे वह जो प्रेम और उम्मीद छोड़ चुकी हैं, उन्हें वह वापस मिले और वह खुशहाली के साथ-साथ अपनी जिंदगी जी सकें.

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ऐसी है इन लोगों की दिनचर्या

केयर टेकर जोसेफ बताते हैं कि माताओं के लिए आश्रम में सभी प्रकार की व्यवस्था है. यहां पर सुबह माताएं वॉक के लिए जाती हैं, उसके बाद स्नान ध्यान पूजा-अर्चना करती हैं. नाश्ता करने के बाद दोपहर में उनके लिए भोजन की व्यवस्था की गई है. इसके साथ-साथ सभी के मनोरंजन के लिए यहां समय-समय पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन की वजह से वो उन्हें इन दिनों बाहर नहीं ले जा पा रहे, लेकिन आमतौर पर समय-समय पर पिकनिक के लिए बाहर लेकर जाते हैं, जिससे उनका मन बहल सके.

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