ETV Bharat / bharat

Kargil Vijay Diwas पर पढ़ें कैप्टन मनोज पाण्डेय और राइफलमैन सुनील जंग की वीर गाथा, दुश्मनों पर फोड़े थे बम

26 जुलाई को पूरा देश कारगिल विजय दिवस पर वीर सपूतों को नमन कर उनकी वीरता को याद कर रहा है. इस दिन भारत ने पाकिस्तान पर ऐतिहासिक कारगिल विजय हासिल की थी.

Etv Bharat
Etv Bharat
author img

By

Published : Jul 26, 2023, 10:13 AM IST

Updated : Jul 26, 2023, 12:20 PM IST

लखनऊ : हमारे देश के शूरवीरों ने 24 साल पहले युद्ध के मैदान में अपने अदम्य साहस और पराक्रम का परिचय देते हुए दुश्मनों को धूल चटा दी थी. 26 जुलाई 1999 को भारत ने पाकिस्तान पर ऐतिहासिक कारगिल विजय (Kargil Vijay Diwas 2023) हासिल की थी. इस युद्ध में लखनऊ के कैप्टन मनोज पांडेय और राइफलमैन सुनील जंग की वीरता अद्भुत थी. यही वजह है कि कैप्टन मनोज पांडेय को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. लखनऊ के मध्य कमान स्थित स्मृतिका पर उत्तर प्रदेश के रणबांकुरों की वीरता का इतिहास दर्ज है. 26 जुलाई को हर साल कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है.

कैप्टन मनोज पांडेय की फाइल फोटो
कैप्टन मनोज पांडेय की फाइल फोटो




लखनऊ में परमवीर चक्र विजेता शहीद कैप्टेन मनोज पांडेय कारगिल के हीरो थे. कैप्टन मनोज पांडेय के नाम से शहर का नाम रोशन हो रहा है. यूपी सैनिक स्कूल की वह शान रहे और आज यह स्कूल इन्हीं के नाम से जाना जा रहा है. कारगिल युद्ध शुरू होने पर सैन्य अधिकारियों की तरफ से मई 1999 को कारगिल में भारतीय पोस्टों को खाली करवाने की जिम्मेदारी कैप्टन मनोज पांडेय को सौंपी गई थी. वह सेना में पांच नंबर प्लाटून का नेतृत्व कर रहे थे. कैप्टन मनोज पांडेय ने दुश्मनों के चार बंकरों को ध्वस्त कर दिया था. इसी बीच दुश्मन की गोली से वह बुरी तरह घायल हो गए और वीरगति को प्राप्त हुए. मनोज हमेशा अपने मां का दिया रक्षा कवच पहना करते थे. उनका मानना था कि वह उसकी रक्षा करता है. वह हमेशा कहते थे कि 'अगर अपनी बहादुरी साबित करने से पहले मेरे सामने मौत भी आ गई तो मैं उसे खत्म कर दूंगा.' कैप्टन मनोज पांडेय कारगिल युद्ध के ऐसे हीरो थे जिनके बलिदान से इस युद्ध की इबारत लिखी गई थी. मनोज की पूरी पढ़ाई लिखाई लखनऊ में हुई थी. बचपन से ही मनोज का खास व्यक्तित्व था. उनका सेना में जाने का मन उस वक्त बना जब उनका यूपी सैनिक स्कूल में दाखिला हुआ. वहां पर उन्होंने अपना शिक्षण कार्य शुरू किया तो मातृभूमि की रक्षा के लिए उन्हें प्रेरणा मिली. फिर उन्होंने सेना में जाने का अपना पूरा मन बनाया.

कारगिल विजय दिवस 2023 (फाइल फोटो)
कारगिल विजय दिवस 2023 (फाइल फोटो)



शहीद कैप्टन मनोज पांडेय के पिता गोपीचंद पांडेय बताते हैं कि 'उस समय बनारस में 67 बच्चों का इंटरव्यू हुआ था. यह विधि का विधान है कि मनोज अकेले उन 67 बच्चों में पास हुए. उसी समय सेना के अधिकारियों ने उनसे पूछा कि सेना में क्यों भर्ती होना चाह रहे हो? मनोज ने अधिकारियों को सेना में जाने का मकसद बताया था. कहा था कि उनका उद्देश्य परमवीर चक्र पाना है, इसीलिए भर्ती होने के लिए आया हूं.. पांच मई 1999 से कारगिल युद्ध में मनोज शामिल हुए. दो माह बराबर लड़ाई करने के बाद एक हफ्ते पहले उनको टारगेट दिया गया था कि खालूबार चोटी जो सात किलोमीटर लंबी है, उस पर 47 पाकिस्तानी कब्जा जमाए बैठे हुए हैं, जिनसे हमारी सेना को बहुत नुकसान पहुंचा है. जो भी सैनिक दिन में निकलता था उसको वह मार देते थे. यह सेना के सामने बड़ा अहम सवाल था. ऊपर जाकर 18000 फुट की ऊंचाई पर उन पाकिस्तानियों से टक्कर लेना आसान नहीं था. उस मुश्किल कार्य को मनोज ने करने का बीड़ा उठाया.'

कारगिल विजय दिवस 2023 (फाइल फोटो)
कारगिल विजय दिवस 2023 (फाइल फोटो)

आराम करने की बात पर अफसरों से ही भिड़ गए थे मनोज : पिता बताते हैं कि 'मनोज पांडेय से अधिकारियों ने कहा कि तुम दो महीने से लगातार लड़ रहे हो. कुछ वक्त के लिए तुम आराम कर लो. ये बात सुनकर मनोज अपने अधिकारी से भिड़ गए. उन्होंने कहा कि मुझमें क्या कमी है?. मैं ही इस मुहिम को फतह करूंगा. दो जुलाई की रात भर उन्होंने चढ़ाई की और सुबह पहला बंकर नष्ट किया. दूसरा बंकर सुबह नौ बजे नष्ट किया. तीसरा बंकर 11 बजे नष्ट कर दिया. तीसरे बंकर को नष्ट करते समय ही चौथे बंकर से उन पर गोली चलाई गई, जो सीधे उनके सिर में लगी. जान की परवाह न करते हुए मनोज ने जवानों को ललकारते हुए चौथे बंकर पर खून से लथपथ होते हुए भी कब्जा कर नष्ट कर दिया.'

  • परमवीर चक्र से सम्मानित मनोज कुमार पांडे जी ने कारगिल युद्ध में अद्भुत साहस का परिचय दिया। उनके शौर्य से युवाओं को प्रेरित करने हेतु मोदी जी ने अंडमान-निकोबार के एक द्वीप का नाम उनके नाम पर किया है।

    मातृभूमि की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले ऐसे वीर को उनकी जयंती पर नमन। pic.twitter.com/7hTFDbseBI

    — Amit Shah (@AmitShah) June 25, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

खुखरी से काट दिया था गला : पिता बताते हैं कि '11 गोरखा राइफल्स के जवान कैप्टन मनोज पांडेय के पास कारतूस नहीं बचे थे, एक ग्रेनेड बचा था. उसको चौथे बंकर में दाग दिया. उनके पास एक खुखरी थी. खुखरी से पाकिस्तानियों का गला काट कर फिर चौथे बंकर से बाहर आए और कारगिल पर जीत दर्ज की, हालांकि इस जीत के हीरो रहे परमवीर चक्र विजेता शहीद कैप्टन मनोज पांडेय खुद वीरगति को प्राप्त हो गए, लेकिन देशवासियों का सीना गर्व से चौड़ा कर गए.'

मां के पास आया था फोन : पिता बताते हैं कि '25 जून को कैप्टन मनोज पांडेय का एक फोन आया था, उस समय वो कारगिल ऑपरेशन में ही थे. उन्होंने अपनी मां से आखिरी बार बात की थी. कहा था कि मां आप टीवी पर देख रही होंगी. यहां के हालात बिल्कुल ठीक नहीं हैं, लेकिन मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं अपने मकसद में कामयाब हो जाऊं और फोन काट दिया.'


कारगिल विजय दिवस 2023
कारगिल विजय दिवस 2023



सुनील ने दुश्मन पर फोड़े थे 25 बम : कारगिल युद्ध में लखनऊ के एक और असली हीरो थे गोरखा राइफलस के राइफलमैन सुनील जंग महंत. सुनील ही पहले ऐसे भारतीय जवान थे, जिनका कारगिल युद्ध में सबसे पहले दुश्मन का सामना हुआ था. उन्होंने दुश्मन पर एक एक कर 25 बम फोड़े थे. सुनील के साहस ने दुश्‍मनों को चित कर दिया था. सुनील जंग ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए दुश्मन के हौसले पस्त कर दिए थे. दुर्भाग्य से दुश्मन की एक गोली उन्हें लग गई और वह शहीद हो गए थे. राइफलमैन सुनील जंग की 11 गोरखा रेजीमेंट को मई 1999 में कारगिल सेक्टर पहुंचने का आदेश मिला था. उस वक्त सुनील अपने घर आए थे और उन्‍हें अचानक ही वापस लौटना पड़ गया. 10 मई 1999 को 11 गोरखा राइफल की एक टुकड़ी के साथ वे कारगिल पहुंचे. सूचना थी कि कुछ घुसपैठिये भारतीय सीमा के अंदर घुस आए हैं. तीन दिनों तक राइफलमैन सुनील जंग दुश्मनों का डटकर मुकाबला करते रहे. 15 मई को एक भीषण गोलीबारी में कुछ गोलियां उनके सीने में जा लगीं. इस पर भी सुनील के हाथ से बंदूक नहीं छूटी और वह लगातार दुश्मनों पर प्रहार करते रहे. अचानक एक गोली उनके सीने में आग लगी और वे बुरी तरह जख्मी हो गए. उन्होंने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए.

शहीद राइफलमैन सुनील जंग की फाइल फोटो
शहीद राइफलमैन सुनील जंग की फाइल फोटो

जल्द लौटने का किया था वादा : राइफलमैन सुनील जंग की माता बीना महंत बताती हैं कि 'अपने पिता की तरह बचपन से ही सुनील जंग को सेना में भर्ती होने का शौक था. सिर्फ 16 साल की आयु में सुनील सेना में भर्ती भी हो गए थे. बचपन में स्कूल में कोई नाटक होता था तो सुनील सेना की ही ड्रेस पहनकर परफॉर्म करते थे. कारगिल युद्ध से ठीक पहले सुनील घर आए हुए थे. कुछ ही दिन बाद उनकी टुकड़ी के अधिकारी का तत्काल वापस लौटने का आदेश आ गया. इसके बाद सुनील देश के लिए जंग लड़ने को घर छोड़कर सीमा पर चले गये. जब उन्होंने बेटे को जल्दी न जाने को कहा तो सुनील ने जवाब दिया था मां अगली बार लंबी छुट्टी लेकर आऊंगा, लेकिन मां का ये लाल देश की सेवा और भारत माता की रक्षा करते हुए शहीद हो गया.'

यह भी पढ़ें : Kargil Vijay Diwas 2023 : 24वां कारगिल विजय दिवस आज, 52 जांबाज़ों की शहादत को राजस्थान कर रहा है याद

लखनऊ : हमारे देश के शूरवीरों ने 24 साल पहले युद्ध के मैदान में अपने अदम्य साहस और पराक्रम का परिचय देते हुए दुश्मनों को धूल चटा दी थी. 26 जुलाई 1999 को भारत ने पाकिस्तान पर ऐतिहासिक कारगिल विजय (Kargil Vijay Diwas 2023) हासिल की थी. इस युद्ध में लखनऊ के कैप्टन मनोज पांडेय और राइफलमैन सुनील जंग की वीरता अद्भुत थी. यही वजह है कि कैप्टन मनोज पांडेय को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. लखनऊ के मध्य कमान स्थित स्मृतिका पर उत्तर प्रदेश के रणबांकुरों की वीरता का इतिहास दर्ज है. 26 जुलाई को हर साल कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है.

कैप्टन मनोज पांडेय की फाइल फोटो
कैप्टन मनोज पांडेय की फाइल फोटो




लखनऊ में परमवीर चक्र विजेता शहीद कैप्टेन मनोज पांडेय कारगिल के हीरो थे. कैप्टन मनोज पांडेय के नाम से शहर का नाम रोशन हो रहा है. यूपी सैनिक स्कूल की वह शान रहे और आज यह स्कूल इन्हीं के नाम से जाना जा रहा है. कारगिल युद्ध शुरू होने पर सैन्य अधिकारियों की तरफ से मई 1999 को कारगिल में भारतीय पोस्टों को खाली करवाने की जिम्मेदारी कैप्टन मनोज पांडेय को सौंपी गई थी. वह सेना में पांच नंबर प्लाटून का नेतृत्व कर रहे थे. कैप्टन मनोज पांडेय ने दुश्मनों के चार बंकरों को ध्वस्त कर दिया था. इसी बीच दुश्मन की गोली से वह बुरी तरह घायल हो गए और वीरगति को प्राप्त हुए. मनोज हमेशा अपने मां का दिया रक्षा कवच पहना करते थे. उनका मानना था कि वह उसकी रक्षा करता है. वह हमेशा कहते थे कि 'अगर अपनी बहादुरी साबित करने से पहले मेरे सामने मौत भी आ गई तो मैं उसे खत्म कर दूंगा.' कैप्टन मनोज पांडेय कारगिल युद्ध के ऐसे हीरो थे जिनके बलिदान से इस युद्ध की इबारत लिखी गई थी. मनोज की पूरी पढ़ाई लिखाई लखनऊ में हुई थी. बचपन से ही मनोज का खास व्यक्तित्व था. उनका सेना में जाने का मन उस वक्त बना जब उनका यूपी सैनिक स्कूल में दाखिला हुआ. वहां पर उन्होंने अपना शिक्षण कार्य शुरू किया तो मातृभूमि की रक्षा के लिए उन्हें प्रेरणा मिली. फिर उन्होंने सेना में जाने का अपना पूरा मन बनाया.

कारगिल विजय दिवस 2023 (फाइल फोटो)
कारगिल विजय दिवस 2023 (फाइल फोटो)



शहीद कैप्टन मनोज पांडेय के पिता गोपीचंद पांडेय बताते हैं कि 'उस समय बनारस में 67 बच्चों का इंटरव्यू हुआ था. यह विधि का विधान है कि मनोज अकेले उन 67 बच्चों में पास हुए. उसी समय सेना के अधिकारियों ने उनसे पूछा कि सेना में क्यों भर्ती होना चाह रहे हो? मनोज ने अधिकारियों को सेना में जाने का मकसद बताया था. कहा था कि उनका उद्देश्य परमवीर चक्र पाना है, इसीलिए भर्ती होने के लिए आया हूं.. पांच मई 1999 से कारगिल युद्ध में मनोज शामिल हुए. दो माह बराबर लड़ाई करने के बाद एक हफ्ते पहले उनको टारगेट दिया गया था कि खालूबार चोटी जो सात किलोमीटर लंबी है, उस पर 47 पाकिस्तानी कब्जा जमाए बैठे हुए हैं, जिनसे हमारी सेना को बहुत नुकसान पहुंचा है. जो भी सैनिक दिन में निकलता था उसको वह मार देते थे. यह सेना के सामने बड़ा अहम सवाल था. ऊपर जाकर 18000 फुट की ऊंचाई पर उन पाकिस्तानियों से टक्कर लेना आसान नहीं था. उस मुश्किल कार्य को मनोज ने करने का बीड़ा उठाया.'

कारगिल विजय दिवस 2023 (फाइल फोटो)
कारगिल विजय दिवस 2023 (फाइल फोटो)

आराम करने की बात पर अफसरों से ही भिड़ गए थे मनोज : पिता बताते हैं कि 'मनोज पांडेय से अधिकारियों ने कहा कि तुम दो महीने से लगातार लड़ रहे हो. कुछ वक्त के लिए तुम आराम कर लो. ये बात सुनकर मनोज अपने अधिकारी से भिड़ गए. उन्होंने कहा कि मुझमें क्या कमी है?. मैं ही इस मुहिम को फतह करूंगा. दो जुलाई की रात भर उन्होंने चढ़ाई की और सुबह पहला बंकर नष्ट किया. दूसरा बंकर सुबह नौ बजे नष्ट किया. तीसरा बंकर 11 बजे नष्ट कर दिया. तीसरे बंकर को नष्ट करते समय ही चौथे बंकर से उन पर गोली चलाई गई, जो सीधे उनके सिर में लगी. जान की परवाह न करते हुए मनोज ने जवानों को ललकारते हुए चौथे बंकर पर खून से लथपथ होते हुए भी कब्जा कर नष्ट कर दिया.'

  • परमवीर चक्र से सम्मानित मनोज कुमार पांडे जी ने कारगिल युद्ध में अद्भुत साहस का परिचय दिया। उनके शौर्य से युवाओं को प्रेरित करने हेतु मोदी जी ने अंडमान-निकोबार के एक द्वीप का नाम उनके नाम पर किया है।

    मातृभूमि की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले ऐसे वीर को उनकी जयंती पर नमन। pic.twitter.com/7hTFDbseBI

    — Amit Shah (@AmitShah) June 25, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

खुखरी से काट दिया था गला : पिता बताते हैं कि '11 गोरखा राइफल्स के जवान कैप्टन मनोज पांडेय के पास कारतूस नहीं बचे थे, एक ग्रेनेड बचा था. उसको चौथे बंकर में दाग दिया. उनके पास एक खुखरी थी. खुखरी से पाकिस्तानियों का गला काट कर फिर चौथे बंकर से बाहर आए और कारगिल पर जीत दर्ज की, हालांकि इस जीत के हीरो रहे परमवीर चक्र विजेता शहीद कैप्टन मनोज पांडेय खुद वीरगति को प्राप्त हो गए, लेकिन देशवासियों का सीना गर्व से चौड़ा कर गए.'

मां के पास आया था फोन : पिता बताते हैं कि '25 जून को कैप्टन मनोज पांडेय का एक फोन आया था, उस समय वो कारगिल ऑपरेशन में ही थे. उन्होंने अपनी मां से आखिरी बार बात की थी. कहा था कि मां आप टीवी पर देख रही होंगी. यहां के हालात बिल्कुल ठीक नहीं हैं, लेकिन मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं अपने मकसद में कामयाब हो जाऊं और फोन काट दिया.'


कारगिल विजय दिवस 2023
कारगिल विजय दिवस 2023



सुनील ने दुश्मन पर फोड़े थे 25 बम : कारगिल युद्ध में लखनऊ के एक और असली हीरो थे गोरखा राइफलस के राइफलमैन सुनील जंग महंत. सुनील ही पहले ऐसे भारतीय जवान थे, जिनका कारगिल युद्ध में सबसे पहले दुश्मन का सामना हुआ था. उन्होंने दुश्मन पर एक एक कर 25 बम फोड़े थे. सुनील के साहस ने दुश्‍मनों को चित कर दिया था. सुनील जंग ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए दुश्मन के हौसले पस्त कर दिए थे. दुर्भाग्य से दुश्मन की एक गोली उन्हें लग गई और वह शहीद हो गए थे. राइफलमैन सुनील जंग की 11 गोरखा रेजीमेंट को मई 1999 में कारगिल सेक्टर पहुंचने का आदेश मिला था. उस वक्त सुनील अपने घर आए थे और उन्‍हें अचानक ही वापस लौटना पड़ गया. 10 मई 1999 को 11 गोरखा राइफल की एक टुकड़ी के साथ वे कारगिल पहुंचे. सूचना थी कि कुछ घुसपैठिये भारतीय सीमा के अंदर घुस आए हैं. तीन दिनों तक राइफलमैन सुनील जंग दुश्मनों का डटकर मुकाबला करते रहे. 15 मई को एक भीषण गोलीबारी में कुछ गोलियां उनके सीने में जा लगीं. इस पर भी सुनील के हाथ से बंदूक नहीं छूटी और वह लगातार दुश्मनों पर प्रहार करते रहे. अचानक एक गोली उनके सीने में आग लगी और वे बुरी तरह जख्मी हो गए. उन्होंने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए.

शहीद राइफलमैन सुनील जंग की फाइल फोटो
शहीद राइफलमैन सुनील जंग की फाइल फोटो

जल्द लौटने का किया था वादा : राइफलमैन सुनील जंग की माता बीना महंत बताती हैं कि 'अपने पिता की तरह बचपन से ही सुनील जंग को सेना में भर्ती होने का शौक था. सिर्फ 16 साल की आयु में सुनील सेना में भर्ती भी हो गए थे. बचपन में स्कूल में कोई नाटक होता था तो सुनील सेना की ही ड्रेस पहनकर परफॉर्म करते थे. कारगिल युद्ध से ठीक पहले सुनील घर आए हुए थे. कुछ ही दिन बाद उनकी टुकड़ी के अधिकारी का तत्काल वापस लौटने का आदेश आ गया. इसके बाद सुनील देश के लिए जंग लड़ने को घर छोड़कर सीमा पर चले गये. जब उन्होंने बेटे को जल्दी न जाने को कहा तो सुनील ने जवाब दिया था मां अगली बार लंबी छुट्टी लेकर आऊंगा, लेकिन मां का ये लाल देश की सेवा और भारत माता की रक्षा करते हुए शहीद हो गया.'

यह भी पढ़ें : Kargil Vijay Diwas 2023 : 24वां कारगिल विजय दिवस आज, 52 जांबाज़ों की शहादत को राजस्थान कर रहा है याद
Last Updated : Jul 26, 2023, 12:20 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.