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संसदीय समिति ने अधिकारियों के असहयोगी व्यवहार पर जताई नाराजगी

जयराम रमेश की अध्यक्षता में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विज्ञान और प्रौद्योगिकी को लेकर गठित संसदीय स्थायी समिति सदस्यों के रवैये को लेकर चिंता जताई है. साथ ही पर्यावरण से संबंधित फंड में कमी करने पर भी निराशा जाहिर की है.

जलवायु परिवर्तन विज्ञान
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Published : Mar 9, 2021, 3:32 PM IST

नई दिल्ली : राज्यसभा सांसद जयराम रमेश की अध्यक्षता में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विज्ञान और प्रौद्योगिकी को लेकर गठित संसदीय स्थायी समिति ने सदस्यों द्वारा सहयोग न करने और सदस्यों के गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार पर नाराजगी व्यक्त की है. इसके अलावा समिति ने समग्र बजटीय आवंटन में भारी कमी को लेकर भी चिंता जताई. विशेष रूप से पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के लिए समिति ने चिंता जाहिर की.

पर्यावरण के मामलों में नॉन ट्रैन्स्पेरन्सी के मुद्दे की ओर इशारा करते हुए समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस तरह का रवैया न केवल उनके संवैधानिक दायित्वों के निर्वहन में बाधा डालता है, बल्कि लोगों के प्रति उनकी जवाबदेही को बाधित करता है.

इसके अलावा समिति ने CAMPA फंड के मुद्दे पर संप्लीमेंट्री एक्शन टेकन रिपोर्ट (एटीआर) रिपोर्ट जमा न करने पर गहरी चिंता और निराशा व्यक्त की. समिति ने मंत्रालय को अगले दो सप्ताह में एटीआर जमा करने को कहा है.

समिति ने सिफारिश की कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को राज्य सरकारों के साथ-साथ अपने स्वयं के अधिकारी को संवेदनशील बनाने के लिए उनकी शिकायते सुनें. उनका संवाद करें और उनके द्वारा मांगी गई जानकारी उपलब्ध करानी चाहिए.

2020-21 में अनुदान रिपोर्ट में समिति ने बड़ी संख्या में पौधों के रोपण का मुद्दा उठाया था और इस तरह के मामलों में भ्रष्टाचार की आशंका भी व्यक्त की थी.

समिति का मानना है कि एक साल बीत चुका है और समिति अभी भी वृक्षारोपण अभियान में गड़बड़ी के मामले में आशंकित है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति ने टिप्पणी की कि पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को इस मोर्चे पर चिंताओं को पारदर्शी तरीके से ऑडिट के माध्यम से भेजना चाहिए, जिसे सार्वजनिक प्रतिनिधियों और नागरिक समाज दोनों द्वारा आसानी से प्राप्त किया जा सकता है.

धन में कमी के मामले पर संसदीय समिति ने पाया कि मंत्रालय द्वारा धन का समग्र उपयोग संतोषजनक है, क्योंकि मंत्रालय जनवरी तक संशोधित अनुमान (आरईआर) 2020-21 आवंटन में 83 प्रतिशत खर्च करने में सक्षम रहा है.

समिति ने प्रदूषण पर नियंत्रण करने के लिए बजटीय आवंटन पर चिंता व्यक्त की, जिसे 2021-22 के लिए 470 करोड़ रुपये दिए जा रहे हैं.

समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि अपनी विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों को लागू करने के अलावा, मंत्रालय को प्रदूषण के उन्मूलन के उपायों के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण में नवाचार करने और निवेश करने की आवश्यकता है, जिससे टिकाऊ और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकें. जैसे कि इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए सुपर चार्ज स्थापित करना और प्रभावी सूक्ष्मजीवों की बायोडाइजेस्टर इकाइयां स्थापित करना.

पढ़ें - 'अगर चुप रहे तो और 40 कानून आएंगे, लुटेरों की टोली से सावधान'

रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति विभाग से वर्ष 2021-22 के लिए परिकल्पित अपने सभी कार्यक्रमों / परियोजनाओं को पूरा करने और BE 2021-22 में 172 करोड़ रुपये के आवंटन का पूरी तरह से उपयोग करने का अनुरोध करती है.

समिति ने आर्कटिक अंटार्कटिक और दक्षिणी हिंद महासागर में मौजूद भारत के सामरिक महत्व को स्वीकार करते हुए कहा कि यह न केवल देश की स्थिति को मजबूत करेगा, बल्कि पानी के नीचे की दुनिया के खनिजों, ऊर्जा और समुद्री विविधता की खोज की भी परिकल्पना करेगा.

समिति ने उल्लेख किया कि चीन ने इन क्षेत्रों में संसाधनों और वैज्ञानिक श्रमशक्ति दोनों में निवेश किया है, जबकि समिति ने सिफारिश की है कि मंत्रालय को अगले पांच वर्षों में इसके विस्तार के लिए एक यथार्थवादी योजना तैयार करनी चाहिए.

नई दिल्ली : राज्यसभा सांसद जयराम रमेश की अध्यक्षता में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विज्ञान और प्रौद्योगिकी को लेकर गठित संसदीय स्थायी समिति ने सदस्यों द्वारा सहयोग न करने और सदस्यों के गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार पर नाराजगी व्यक्त की है. इसके अलावा समिति ने समग्र बजटीय आवंटन में भारी कमी को लेकर भी चिंता जताई. विशेष रूप से पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के लिए समिति ने चिंता जाहिर की.

पर्यावरण के मामलों में नॉन ट्रैन्स्पेरन्सी के मुद्दे की ओर इशारा करते हुए समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस तरह का रवैया न केवल उनके संवैधानिक दायित्वों के निर्वहन में बाधा डालता है, बल्कि लोगों के प्रति उनकी जवाबदेही को बाधित करता है.

इसके अलावा समिति ने CAMPA फंड के मुद्दे पर संप्लीमेंट्री एक्शन टेकन रिपोर्ट (एटीआर) रिपोर्ट जमा न करने पर गहरी चिंता और निराशा व्यक्त की. समिति ने मंत्रालय को अगले दो सप्ताह में एटीआर जमा करने को कहा है.

समिति ने सिफारिश की कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को राज्य सरकारों के साथ-साथ अपने स्वयं के अधिकारी को संवेदनशील बनाने के लिए उनकी शिकायते सुनें. उनका संवाद करें और उनके द्वारा मांगी गई जानकारी उपलब्ध करानी चाहिए.

2020-21 में अनुदान रिपोर्ट में समिति ने बड़ी संख्या में पौधों के रोपण का मुद्दा उठाया था और इस तरह के मामलों में भ्रष्टाचार की आशंका भी व्यक्त की थी.

समिति का मानना है कि एक साल बीत चुका है और समिति अभी भी वृक्षारोपण अभियान में गड़बड़ी के मामले में आशंकित है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति ने टिप्पणी की कि पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को इस मोर्चे पर चिंताओं को पारदर्शी तरीके से ऑडिट के माध्यम से भेजना चाहिए, जिसे सार्वजनिक प्रतिनिधियों और नागरिक समाज दोनों द्वारा आसानी से प्राप्त किया जा सकता है.

धन में कमी के मामले पर संसदीय समिति ने पाया कि मंत्रालय द्वारा धन का समग्र उपयोग संतोषजनक है, क्योंकि मंत्रालय जनवरी तक संशोधित अनुमान (आरईआर) 2020-21 आवंटन में 83 प्रतिशत खर्च करने में सक्षम रहा है.

समिति ने प्रदूषण पर नियंत्रण करने के लिए बजटीय आवंटन पर चिंता व्यक्त की, जिसे 2021-22 के लिए 470 करोड़ रुपये दिए जा रहे हैं.

समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि अपनी विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों को लागू करने के अलावा, मंत्रालय को प्रदूषण के उन्मूलन के उपायों के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण में नवाचार करने और निवेश करने की आवश्यकता है, जिससे टिकाऊ और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकें. जैसे कि इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए सुपर चार्ज स्थापित करना और प्रभावी सूक्ष्मजीवों की बायोडाइजेस्टर इकाइयां स्थापित करना.

पढ़ें - 'अगर चुप रहे तो और 40 कानून आएंगे, लुटेरों की टोली से सावधान'

रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति विभाग से वर्ष 2021-22 के लिए परिकल्पित अपने सभी कार्यक्रमों / परियोजनाओं को पूरा करने और BE 2021-22 में 172 करोड़ रुपये के आवंटन का पूरी तरह से उपयोग करने का अनुरोध करती है.

समिति ने आर्कटिक अंटार्कटिक और दक्षिणी हिंद महासागर में मौजूद भारत के सामरिक महत्व को स्वीकार करते हुए कहा कि यह न केवल देश की स्थिति को मजबूत करेगा, बल्कि पानी के नीचे की दुनिया के खनिजों, ऊर्जा और समुद्री विविधता की खोज की भी परिकल्पना करेगा.

समिति ने उल्लेख किया कि चीन ने इन क्षेत्रों में संसाधनों और वैज्ञानिक श्रमशक्ति दोनों में निवेश किया है, जबकि समिति ने सिफारिश की है कि मंत्रालय को अगले पांच वर्षों में इसके विस्तार के लिए एक यथार्थवादी योजना तैयार करनी चाहिए.

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