मशहूर गायक जगजीत सिंह ने एक लाइव शो में अपने पहले प्यार का भी जिक्र किया था जो परवान नहीं चढ़ सका था. वो एक लड़की के प्यार में इस कदर पागल हो गए थे कि अक्सर उसके घर के बाहर साइकिल की चैन टूटने या पहिये की हवा निकलने का बहाना बनाकर खड़े हो जाते थे. ये सिलसिला काफी आगे तक बढ़ा और साइकिल से जगजीत मोटरसाइकिल पर आ गए. लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला.
जगजीत को पढ़ाई में दिलचस्पी बहुत कम थी. इसी कारण वह एग्जाम में कई बार फेल भी हुए. जैसे-तैसे कॉलेज की पढ़ाई के लिए जालंधर के डीएवी कॉलेज में एडमिशन मिला तो यहां पर भी उनका ज्यादातर समय गर्ल्स कॉलेज के इर्दगिर्द ही कटता था. इसके अलावा उन्हें फिल्म देखना काफी पसंद था.
जगजीत सिंह ने गुजरे दौर के शायरों से लेकर नए जमाने के शायरों की भी गजलों और गीतों को अपनी आवाज दी. बात चाहे गालिब की हो या मीर की या हो फिराक गोरखपुरी का कलाम या फिर फैज और निदा फाजली की लिखी गजलें, उनके होठों पर आते ही उनमें चार चांद लग जाते थे. यही वजह थी कि साल 2003 में भारत सरकार ने कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था. साल 2014 में उनके सम्मान में दो डाक टिकट भी जारी किए गए थे.
जगजीत सिंह गजल सम्राट को यूं ही नहीं कहा जाता है. ये उपाधि उन्हें इस वजह से मिली थी कि उनकी ही बदौलत गजल आम आदमी तक पहुंची. उससे पहले गजल उर्दू जानने वालों तक ही सीमित थी. उन्होंने गजलों को उस अंदाज में पेश किया जो सुनने वालों के दिलों तक उतरती चली गई. जगजीत सिंह ने गजलों में इंडियन और वेस्टर्न म्यूजिक की मौजूदगी के साथ उनकी महकती आवाज ने कई गीतों और गजलों को अमर कर दिया.
जगजीत सिंह को संगीत अपने पिता से विरासत में मिला था. इसकी शुरुआत राजस्थान के श्रीगंगानगर, जहां उनका जन्म (8 फरवरी 1941) हुआ था, से हुई थी. श्रीगंगानगर में ही पंडित छगन लाल शर्मा से उन्होंने संगीत की शुरुआती शिक्षा ली थी. इसके बाद सैनिया घराने के उस्ताद जमाल खान साहब से ख्याल, ठुमरी और ध्रुपद की बारीकियां सीखीं.उनके पिता चाहते थे कि जगजीत एक अफसर बने, लेकिन जगजीत को न पढ़ाई में दिलचस्पी थी और न ही किसी सरकारी औहदे में.
कुरुक्षेत्र में पीजी करते हुए वहां के कुलपति को उनके अंदर एक गायक दिखाई दिया, जो संगीत के आसमान में चमकता तारा बन सकता था. उन्होंने ही जगजीत को संगीत के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया. उनके कहने पर 1965 में जगजीत ने मुंबई का रुख किया. यहां पर न घर था न कमाई का साधन. कामयाबी की राह में कई मुश्किलें थीं. यूं तो कॉलेज में भी अपना इंप्रेशन जमाने के लिए जगजीत गाने गाते थे. लेकिन मुंबई की बात कुछ अलग थी. यहां पर पहले से ही मोहम्मद रफी समेत कई दिग्गज मजबूती के साथ अपना पैर जमाए बैठे थे. उस दौर में संगीत को लेकर लगातार फिल्म और म्यूजिक इंडस्ट्री में प्रयोग चल रहा था. ऐसे में जगजीत क्लासिक म्यूजिक को पकड़े बैठे थे. यही चीज उस वक्त की सबसे बड़ी म्यूजिक कंपनी एचएमवी को भा गई. उनका पहला एलबम द अनफॉरगेटेबल्स 1976 में रिलीज हुआ और लोगों ने इसको काफी पंसद किया. इसके बाद जगजीत संगीत में सफलता की सीढ़ियां लगातार चढ़ते गए.
मैं रोया परदेस में, दैरो हरम में रहने वालों, मैखाने में फूट न डालो, मैं नशे में हूं, हम तो हैं परदेस में, कागज की कश्ती, हे राम, बांके बिहारी कृष्ण मुरारी मेरी बारी कहां छिपे जैसे हजारों गीत-गजल ऐसे हैं, जिनको लेकर उन्होंने अनूठे प्रयोग किए. संगीत और सुरों की जुगलबंदी में उनका कोई जवाब नहीं था. लोग उनके साथ हो जाते थे. कहा जाता है कि लंदन के एलबर्ट हॉल में जहां मैं नशे में हूं को लोगों ने साथ साथ गुनगुनाया था.
जगजीत सिंह ने 1971 में हिन्दी फिल्म प्रेमगीत से ..मेरा गीत अमर कर दो.. से गाने की शुरुआत की थी, जो आज भी लोगों के दिलों की धड़कनें बढ़ा देता है. इनके अलावा हिंदी फिल्मों के कई गीतों को आवाज देकर उन्होंने उन्हें अमर बना दिया. कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान गायकों को भारत में आने से रोकने का उन्होंने समर्थन किया था. इसको लेकर काफी विवाद भी हुआ था. इसके बावजूद जगजीत ने पाकिस्तान में रह रहे और गजलों के शहंशाह कहे जाने वाले मेंहदी हसन के इलाज के लिए आर्थिक मदद भी की थी. इसके अलावा गुलाम अली के साथ भी उन्होंने कई गजलों को आवाज दी है. 10 अक्टूबर 2011 को जगजीत सिंह ने निधन हो गया था. कहा जाता है कि इसी दिन गुलाम अली के साथ उनका एक शो होना था.