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फिर याद आया 65 साल पहले का वाक्या.. जब बड़हिया में रेलवे ट्रैक पर बिछ गयी थी लाशें - Barahiya Station bihar

लखीसराय के बड़हिया स्टेशन पर ट्रेनों के ठहराव की मांग (Demand for Stoppage of Trains in Barahiya) को लेकर स्थानीय लोगों का आंदोलन खत्म हो गया है. लेकिन इस दौरान लोगों को फिर से 65 साल पहले का वाक्या याद आ गया. क्या है मामला पढ़ें पूरी खबर..

Barahiya Station bihar
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Published : May 23, 2022, 9:18 PM IST

लखीसराय : कहते हैं आंदोलन को चरणबद्ध तरीके से किया जाए तो वह जरूर सफल होता है. इतिहास के पन्नों में कई ऐसे आंदोलन रहे हैं जिन्होंने सत्ता के सिंहासन को हिला कर रख दिया था. इसी में से एक आंदोलन था बड़हिया रेलवे स्टेशन का. आज से 65 साल पहले की बात है, जब बड़हिया में रेलवे ट्रैक पर लाशें बिछ गईं थीं. हर तरफ चीत्कार मच गया था.

ये भी पढ़ें - बिहार के बड़हिया स्टेशन पर ट्रेनों के ठहराव को लेकर चक्का जाम, 37 ट्रेनें रद्द, 71 का रूट बदला

4 लोगों के ऊपर से गुजर गयी थी ट्रेन : कहा जाता है साल 1957 में यानी आजादी के 10 साल बाद यहां के लोगों ने तूफान एक्सप्रेस के ठहराव की मांग की. रेलवे ने इनकी मांग को अनसुना कर दिया था. फिर क्या था लोग धरना पर बैठ गए. इसी बीच ट्रेन के आने की सूचना मिली. वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने लोगों को हटने के लिए कहा. चार लोग नहीं हटे और उनपर से ट्रेन गुजर गयी. चारों आंदोलनकारियों की मौत हो गयी. उनकी लाशें क्षत-विक्षत होकर बिखरी पड़ी थी.

दिल्ली तक सुनाई पड़ी गूंज : ट्रेन सीधे मोकामा में जाकर रुकी थी. हालांकि रेलवे के किसी कर्मचारी या अधिकारी पर कार्रवाई नहीं हुई थी. इस घटना को लेकर मीडिया में खूब हंगामा हुआ. इसकी गूंज दिल्ली तक पहुंच गयी थी. इसके करीब 8 महीने बाद तूफान एक्सप्रेस ट्रेन का ठहराव बड़हिया में किया गया था. एक बार फिर से लोग धरना पर बैठे थे वह भी ट्रेन के ठहराव की मांग पर.

मुट्ठीभर लोगों ने रोक दिया रेल का पहिया : ऐसे में कई लोगों के मन में यह चल रहा होगा कि अभी के आंदोलन में उसमें तो काफी कम लोग ही शामिल हैं. पर इतिहास गवाह है कि उस वक्त भी मुट्ठीभर लोगों ने रेल का पहिया रोक दिया था. जब ट्रेन 3 किलोमीटर दूर से ही हॉर्न बजा रही थी तो वहां मौजूद पुलिस वालों को लगा था कि आंदोलनकारी हट जाएंगे. लेकिन ट्रेन ज्यों-ज्यों नजदीक आ रही थी अधिकारियों के पसीने छूट रहे थे. 4 आंदोनकारियों ने पीछे हटना मुनासिब नहीं समझा था, भले जान जाए तो जाए.

दो दिनों में रेलवे ने मानी बात : ऐसे में एक बार फिर से जब यहां पर कोरोना काल से पहले जैसे ट्रेनों के ठहराव की बात हो रही है तो पुरानी बात याद आ गयी. वैसे इस बार हो रहे आंदोलन का असर दिख गया है. दो दिन के आंदोलन के बाद ही रेलवे ने दो ट्रेनों पाटलिपुत्र और जनसेवा को तत्काल ठहराव का आदेश दे दिया है. अन्य छह ट्रेनों के ठहराव की मांग को 2 माह में विचार करने की बात कही है.

100 से ज्यादा ट्रेनों का परिचालन बाधित : पूर्व मध्य रेलवे के दानापुर मंडल अंतर्गत किऊल-मोकामा रेलखंड के बीच कई ट्रेनों के ठहराव की मांग को लेकर बड़हिया रेलवे स्टेशन पर धरना प्रदर्शन का कार्यक्रम (Agitation at Barhiya Station) सोमवार को दूसरे दिन भी जारी था. बड़हिया रेल संघर्ष समिति के बैनर तले बड़ी संख्या में लोग धरने पर बैठे था. इस बीच, रेलवे को 71 ट्रेनों के परिचालन में बदलाव किया गया जबकि 37 एक्सप्रेस ट्रेनों के परिचालन को रद्द (Trains Cancelled Due to Agitation at Barhiya station) किया गया.

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लखीसराय : कहते हैं आंदोलन को चरणबद्ध तरीके से किया जाए तो वह जरूर सफल होता है. इतिहास के पन्नों में कई ऐसे आंदोलन रहे हैं जिन्होंने सत्ता के सिंहासन को हिला कर रख दिया था. इसी में से एक आंदोलन था बड़हिया रेलवे स्टेशन का. आज से 65 साल पहले की बात है, जब बड़हिया में रेलवे ट्रैक पर लाशें बिछ गईं थीं. हर तरफ चीत्कार मच गया था.

ये भी पढ़ें - बिहार के बड़हिया स्टेशन पर ट्रेनों के ठहराव को लेकर चक्का जाम, 37 ट्रेनें रद्द, 71 का रूट बदला

4 लोगों के ऊपर से गुजर गयी थी ट्रेन : कहा जाता है साल 1957 में यानी आजादी के 10 साल बाद यहां के लोगों ने तूफान एक्सप्रेस के ठहराव की मांग की. रेलवे ने इनकी मांग को अनसुना कर दिया था. फिर क्या था लोग धरना पर बैठ गए. इसी बीच ट्रेन के आने की सूचना मिली. वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने लोगों को हटने के लिए कहा. चार लोग नहीं हटे और उनपर से ट्रेन गुजर गयी. चारों आंदोलनकारियों की मौत हो गयी. उनकी लाशें क्षत-विक्षत होकर बिखरी पड़ी थी.

दिल्ली तक सुनाई पड़ी गूंज : ट्रेन सीधे मोकामा में जाकर रुकी थी. हालांकि रेलवे के किसी कर्मचारी या अधिकारी पर कार्रवाई नहीं हुई थी. इस घटना को लेकर मीडिया में खूब हंगामा हुआ. इसकी गूंज दिल्ली तक पहुंच गयी थी. इसके करीब 8 महीने बाद तूफान एक्सप्रेस ट्रेन का ठहराव बड़हिया में किया गया था. एक बार फिर से लोग धरना पर बैठे थे वह भी ट्रेन के ठहराव की मांग पर.

मुट्ठीभर लोगों ने रोक दिया रेल का पहिया : ऐसे में कई लोगों के मन में यह चल रहा होगा कि अभी के आंदोलन में उसमें तो काफी कम लोग ही शामिल हैं. पर इतिहास गवाह है कि उस वक्त भी मुट्ठीभर लोगों ने रेल का पहिया रोक दिया था. जब ट्रेन 3 किलोमीटर दूर से ही हॉर्न बजा रही थी तो वहां मौजूद पुलिस वालों को लगा था कि आंदोलनकारी हट जाएंगे. लेकिन ट्रेन ज्यों-ज्यों नजदीक आ रही थी अधिकारियों के पसीने छूट रहे थे. 4 आंदोनकारियों ने पीछे हटना मुनासिब नहीं समझा था, भले जान जाए तो जाए.

दो दिनों में रेलवे ने मानी बात : ऐसे में एक बार फिर से जब यहां पर कोरोना काल से पहले जैसे ट्रेनों के ठहराव की बात हो रही है तो पुरानी बात याद आ गयी. वैसे इस बार हो रहे आंदोलन का असर दिख गया है. दो दिन के आंदोलन के बाद ही रेलवे ने दो ट्रेनों पाटलिपुत्र और जनसेवा को तत्काल ठहराव का आदेश दे दिया है. अन्य छह ट्रेनों के ठहराव की मांग को 2 माह में विचार करने की बात कही है.

100 से ज्यादा ट्रेनों का परिचालन बाधित : पूर्व मध्य रेलवे के दानापुर मंडल अंतर्गत किऊल-मोकामा रेलखंड के बीच कई ट्रेनों के ठहराव की मांग को लेकर बड़हिया रेलवे स्टेशन पर धरना प्रदर्शन का कार्यक्रम (Agitation at Barhiya Station) सोमवार को दूसरे दिन भी जारी था. बड़हिया रेल संघर्ष समिति के बैनर तले बड़ी संख्या में लोग धरने पर बैठे था. इस बीच, रेलवे को 71 ट्रेनों के परिचालन में बदलाव किया गया जबकि 37 एक्सप्रेस ट्रेनों के परिचालन को रद्द (Trains Cancelled Due to Agitation at Barhiya station) किया गया.

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