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एसिड अटैक, 37 ऑपरेशन, फिर भी हिम्मत नहीं हारीं काशी की 'लता' - अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

खेलने की उम्र में एसिड अटैक का शिकार हुईं, 37 ऑपरेशन के बाद बीएचयू में संगीत प्रोफेसर पद पर रहते हुए कई बच्चों को पीएचडी कराने का काम किया. ग्वालियर घराने की गायकी गाने वाली मंगला कपूर को बनारस की लता सम्मान से नवाजा गया. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर 'ईटीवी भारत' ने उनसे बातचीत की और उनके जीवन के संघर्षों को जाना. देखिए ये रिपोर्ट...

काशी की 'लता'
काशी की 'लता'
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Published : Mar 8, 2021, 2:19 PM IST

वाराणसी : काशी की लता मंगेशकर सम्मान से विभूषित मंगला कपूर के जीवन का सफर काफी मुश्किलों से भरा रहा है.

मंगला आपसी रंजिश में छोटी उम्र में एसिड अटैक का शिकार हुईं. हालत इतनी ज्यादा खराब हुई कि एक के बाद एक अलग-अलग शहरों में उन्हें 37 ऑपरेशन कराने पड़े. इस बीच 2007 में एक एक्सीडेंट के दौरान उनकी जांघ की दोनों हड्डियां भी टूट गई.

लोगों को लगा कि अब मंगला कपूर का सफर खत्म हो गया, लेकिन वह फिर ठीक होकर लोगों के बीच आईं. शारीरिक परेशानी के साथ ही साथ उन्हें लोगों के ताने भी सुनने पड़े. इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने हौंसले के दम पर वह बीएचयू में गोल्ड मेडलिस्ट बनी.

काशी की 'लता' की दास्तां.

वह बीएचयू में मंच कला एवं संगीत संकाय विभाग में प्रोफेसर और हेड ऑफ डिपार्टमेंट भी रहीं. 2019 में रिटायर होकर उनका सफर अभी भी जारी है. इस बीच उन्होंने चार पुस्तकों का लेखन किया है. जल्द ही सीरत नाम से उनकी जीवनी भी आने वाली है. वह आज की महिलाओं और बेटियों के लिए प्रेरणा बनी हुई हैं.

व्यापारिक रंजिश में हुईं एसिड अटैक की शिकार

मंगला कपूर के परिवार में बनारसी साड़ी का कारोबार होता था. व्यापारिक एवं आपसी रंजिश के कारण तीन भाइयों की अकेली बहन की खूबसूरती को छीनने के लिए उनपर एसिड अटैक किया गया. उस समय कक्षा सात में पढ़ने वाली मंगला को समझ में नहीं आया कि उनके जीवन में कौन सा पहाड़ टूट पड़ा.

डॉक्टरों की निगरानी में बनारस से कभी पटना, तो कभी बनारस अलग-अलग शहरों में उनके इलाज का सिलसिला शुरू हुआ. इस दौरान मंगला को 37 से ज्यादा ऑपरेशन कराने पड़े.

प्रोफेसर मंगला ने बताया कि इतने ऑपरेशन के बाद जाकर वह आज बैठने एवं बातचीत करने की स्थिति में हैं. उन्होंने बताया कि चेहरे पर विकृति इतनी ज्यादा थी कि उसे देखना किसी के लिए संभव ही नहीं था. बच्चे ही नहीं बड़े भी उनको देखकर डर जाते थे.

मंगला कपूर ने बताया कि इस स्थिति से उबरने के लिए माता पिता ने हमेशा प्रेरित किया. माता-पिता हमेशा कहते थे कि जीवन में जो घटना था वह घट गया.

मंगला कपूर ने बताया कि जब वह बाहर निकलती थीं तो बहुत व्यंग सुनने को मिलते थे. अनेक उपाधियां दी जाती थीं, नाक कटी जैसी नामों से संबोधित किया जाता था. जिससे बहुत दुख होता था.

उन्होंने बताया कि वह कभी हतोत्साहित नहीं हुईं. लोगों की बातें सुनकर एहसास हुआ कि कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे सबके मुंह बंद हो जाएं. मंगला ने बताया इसके बाद उन्होंने प्राइवेट पढ़ना शुरू किया.

बीएचयू से बनी गोल्ड मेडलिस्ट

मंगला कपूर ने बीएचयू से बी. म्यूज, एम म्यूज में गोल्ड मेडल और पीएचडी किया. इसके बाद साइड में उन्होंने प्रोग्राम करना शुरू किया.

आवाज अच्छी होने कारण लोग उन्हें कलाकार के रूप में लोग जानने लगे. मंगला ने बताया कि देश का कोई ऐसा कोना बचा नहीं होगा, जहां उन्होंने प्रोग्राम नहीं किया होगा. उन्होंने बताया कि गायकी की दुनिया में लोगों ने उन्हें बहुत प्यार दिया, आवाज को पसंद किया.

मंगला का कहना था कि इससे उन्हें जीने का बहुत सहारा मिला. विल पावर बढ़ता गया. मंगला कपूर बताती है कि पीएचडी करने के बाद उन्होंने सर्विस के लिए अप्लाई करना शुरू किया लेकिन लोगों ने फिर उन्हें ठुकराना शुरू कर दिया.

मंगला कपूर ने बताया कि लोग कहते थे कि विकृत है कॉलेज में आ जाएगी तो अच्छा नहीं लगेगा. उन्होंने बताया कि काफी प्रयासों के बाद उनकी बीएचयू के महिला महाविद्यालय में लेक्चरर की पोस्ट पर नियुक्त हुई.

पढ़ें- अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: लोग क्या कहेंगे इस मानसिकता को बदलने की जरूरत

कमला ने बताया कि 10 साल तक वह प्रोफेसर और अपने डिपार्टमेंट की हेड भी रहीं. 13 छात्र-छात्राओं को विभिन्न विषय पर पीएचडी भी करवाई. मंगला कपूर ने बताया कि मेरे पढ़ाए हुए बच्चे आज देश-विदेश में अच्छी जगह काम कर रहे हैं. कुछ बच्चे अच्छा गायन कर रहे हैं कुछ बच्चे आर्टिस्ट हैं.

जारी है अभी भी सफर

मंगला कपूर ने बताया कि चार पुस्तकों का लेखन किया. उनकी जीवनी भी जल्द आने वाली है, जिसका नाम सीरत है. तीन किताबों पर अभी भी काम चल रहा है. कविता भी लिखती हैं. उनकी रचनाओं की एक किताब जल्दी आने वाली है.

प्रोफेसर मंगला कपूर ने बताया कि वह संगीत के लिए जहां किताबें लिख रही हैं. वहीं घर पर बच्चों को निशुल्क पढ़ाने का भी काम करती हैं. जो लोग शुरू से सीखना चाहते हैं उनको भी सिखाती हैं. कपूर ने बताया कि वह ग्वालियर घराने से संबंधित हैं, उनसे जो ग्वालियर घराने की गायकी सीखने आते हों, चाहे वो ठुमरी सीखने आते हों वह सभी को शिक्षा समभाव से देती हैं.

काशी के लता मंगेशकर सम्मान से हुईं विभूषित

काशी के लता मंगेशकर के सम्मान के बारे में मंगला ने बताया कि बीएचयू से उनका सफर शुरू हुआ वहीं से रिटायर भी हुईं. उन्हें कई अवार्ड से सम्मानित किया गया. अभी तक मुझे अवार्ड मिलते आ रहे हैं. 1982 में तरंग संस्था द्वारा उन्हें काशी की लता के अवार्ड से सम्मानित किया गया है.

वाराणसी : काशी की लता मंगेशकर सम्मान से विभूषित मंगला कपूर के जीवन का सफर काफी मुश्किलों से भरा रहा है.

मंगला आपसी रंजिश में छोटी उम्र में एसिड अटैक का शिकार हुईं. हालत इतनी ज्यादा खराब हुई कि एक के बाद एक अलग-अलग शहरों में उन्हें 37 ऑपरेशन कराने पड़े. इस बीच 2007 में एक एक्सीडेंट के दौरान उनकी जांघ की दोनों हड्डियां भी टूट गई.

लोगों को लगा कि अब मंगला कपूर का सफर खत्म हो गया, लेकिन वह फिर ठीक होकर लोगों के बीच आईं. शारीरिक परेशानी के साथ ही साथ उन्हें लोगों के ताने भी सुनने पड़े. इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने हौंसले के दम पर वह बीएचयू में गोल्ड मेडलिस्ट बनी.

काशी की 'लता' की दास्तां.

वह बीएचयू में मंच कला एवं संगीत संकाय विभाग में प्रोफेसर और हेड ऑफ डिपार्टमेंट भी रहीं. 2019 में रिटायर होकर उनका सफर अभी भी जारी है. इस बीच उन्होंने चार पुस्तकों का लेखन किया है. जल्द ही सीरत नाम से उनकी जीवनी भी आने वाली है. वह आज की महिलाओं और बेटियों के लिए प्रेरणा बनी हुई हैं.

व्यापारिक रंजिश में हुईं एसिड अटैक की शिकार

मंगला कपूर के परिवार में बनारसी साड़ी का कारोबार होता था. व्यापारिक एवं आपसी रंजिश के कारण तीन भाइयों की अकेली बहन की खूबसूरती को छीनने के लिए उनपर एसिड अटैक किया गया. उस समय कक्षा सात में पढ़ने वाली मंगला को समझ में नहीं आया कि उनके जीवन में कौन सा पहाड़ टूट पड़ा.

डॉक्टरों की निगरानी में बनारस से कभी पटना, तो कभी बनारस अलग-अलग शहरों में उनके इलाज का सिलसिला शुरू हुआ. इस दौरान मंगला को 37 से ज्यादा ऑपरेशन कराने पड़े.

प्रोफेसर मंगला ने बताया कि इतने ऑपरेशन के बाद जाकर वह आज बैठने एवं बातचीत करने की स्थिति में हैं. उन्होंने बताया कि चेहरे पर विकृति इतनी ज्यादा थी कि उसे देखना किसी के लिए संभव ही नहीं था. बच्चे ही नहीं बड़े भी उनको देखकर डर जाते थे.

मंगला कपूर ने बताया कि इस स्थिति से उबरने के लिए माता पिता ने हमेशा प्रेरित किया. माता-पिता हमेशा कहते थे कि जीवन में जो घटना था वह घट गया.

मंगला कपूर ने बताया कि जब वह बाहर निकलती थीं तो बहुत व्यंग सुनने को मिलते थे. अनेक उपाधियां दी जाती थीं, नाक कटी जैसी नामों से संबोधित किया जाता था. जिससे बहुत दुख होता था.

उन्होंने बताया कि वह कभी हतोत्साहित नहीं हुईं. लोगों की बातें सुनकर एहसास हुआ कि कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे सबके मुंह बंद हो जाएं. मंगला ने बताया इसके बाद उन्होंने प्राइवेट पढ़ना शुरू किया.

बीएचयू से बनी गोल्ड मेडलिस्ट

मंगला कपूर ने बीएचयू से बी. म्यूज, एम म्यूज में गोल्ड मेडल और पीएचडी किया. इसके बाद साइड में उन्होंने प्रोग्राम करना शुरू किया.

आवाज अच्छी होने कारण लोग उन्हें कलाकार के रूप में लोग जानने लगे. मंगला ने बताया कि देश का कोई ऐसा कोना बचा नहीं होगा, जहां उन्होंने प्रोग्राम नहीं किया होगा. उन्होंने बताया कि गायकी की दुनिया में लोगों ने उन्हें बहुत प्यार दिया, आवाज को पसंद किया.

मंगला का कहना था कि इससे उन्हें जीने का बहुत सहारा मिला. विल पावर बढ़ता गया. मंगला कपूर बताती है कि पीएचडी करने के बाद उन्होंने सर्विस के लिए अप्लाई करना शुरू किया लेकिन लोगों ने फिर उन्हें ठुकराना शुरू कर दिया.

मंगला कपूर ने बताया कि लोग कहते थे कि विकृत है कॉलेज में आ जाएगी तो अच्छा नहीं लगेगा. उन्होंने बताया कि काफी प्रयासों के बाद उनकी बीएचयू के महिला महाविद्यालय में लेक्चरर की पोस्ट पर नियुक्त हुई.

पढ़ें- अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: लोग क्या कहेंगे इस मानसिकता को बदलने की जरूरत

कमला ने बताया कि 10 साल तक वह प्रोफेसर और अपने डिपार्टमेंट की हेड भी रहीं. 13 छात्र-छात्राओं को विभिन्न विषय पर पीएचडी भी करवाई. मंगला कपूर ने बताया कि मेरे पढ़ाए हुए बच्चे आज देश-विदेश में अच्छी जगह काम कर रहे हैं. कुछ बच्चे अच्छा गायन कर रहे हैं कुछ बच्चे आर्टिस्ट हैं.

जारी है अभी भी सफर

मंगला कपूर ने बताया कि चार पुस्तकों का लेखन किया. उनकी जीवनी भी जल्द आने वाली है, जिसका नाम सीरत है. तीन किताबों पर अभी भी काम चल रहा है. कविता भी लिखती हैं. उनकी रचनाओं की एक किताब जल्दी आने वाली है.

प्रोफेसर मंगला कपूर ने बताया कि वह संगीत के लिए जहां किताबें लिख रही हैं. वहीं घर पर बच्चों को निशुल्क पढ़ाने का भी काम करती हैं. जो लोग शुरू से सीखना चाहते हैं उनको भी सिखाती हैं. कपूर ने बताया कि वह ग्वालियर घराने से संबंधित हैं, उनसे जो ग्वालियर घराने की गायकी सीखने आते हों, चाहे वो ठुमरी सीखने आते हों वह सभी को शिक्षा समभाव से देती हैं.

काशी के लता मंगेशकर सम्मान से हुईं विभूषित

काशी के लता मंगेशकर के सम्मान के बारे में मंगला ने बताया कि बीएचयू से उनका सफर शुरू हुआ वहीं से रिटायर भी हुईं. उन्हें कई अवार्ड से सम्मानित किया गया. अभी तक मुझे अवार्ड मिलते आ रहे हैं. 1982 में तरंग संस्था द्वारा उन्हें काशी की लता के अवार्ड से सम्मानित किया गया है.

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