वाराणसी: बनारस को धर्म और अध्यात्म के साथ ही यहां की सांस्कृतिक परंपरा और अलग-अलग भाषाओं के लिए भी जाना जाता है. बनारस भाषाओं को लेकर इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि बनारस में भोजपुरी के अलावा कई अन्य ऐसी भाषा बोलने वाले लोग मौजूद हैं जो देश के अलग-अलग हिस्सों से आते हैं. लेकिन अगर हम आपको यह बताएं कि बनारस के गंगा घाटों पर मौजूद कुछ लोग अपना पेट पालने को ऐसे कोड वर्ड का इस्तेमाल करते हैं, जिसे डिकोड करना हर किसी के लिए संभव नहीं है. इस कोड लैंग्वेज को केवल यहां के नाविक ही डिकोड कर सकते हैं. खैर, आप सोच में पड़ गए होंगे कि ऐसी कौन सी कोड भाषा है, जो केवल बनारस के घाटों पर ही बोली जाती है. ऐसे तो यहां बनारसी भोजपुरी सबसे अधिक बोली जाती है. लेकिन गंगा घाट पर मौजूद नाविक अपने ग्राहकों को नाव तक ले जाने को एक खास तरह की भाड़ा कोड का इस्तेमाल करते हैं. चलिए आज आपको काशी के भाड़ा कोड के पीछे के रहस्य से अवगत कराते हैं.
सुबह के लगभग 10:00 बजे का समय और समय के साथ धूप के चढ़ने का सिलसिला जारी था. इस चिलचिलाती धूप में हम भी पहुंच गए वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर. यह घाट बनारस का सबसे मुख्य घाट माना जाता है और सैलानी इस घाट पर जरूर पहुंचते हैं. लेकिन जब हम घाटों की सीढ़ियों से उतरते हुए नीचे पहुंचे तो एक बड़ी सी छतरी के नीचे रंग बिरंगे कपड़े पहने कुछ लोग मौजूद थे. इन लोगों की एक्टिविटी कुछ अलग तरीके की दिखाई तो हमने भी खुद को साइड में करके इनकी एक्टिविटी को वॉच करना शुरू किया.
अबूझ कोड की गुत्थी: यहां मौजूद सभी लोग बनारस के नाविक समाज से जुड़े थे और इस चिलचिलाती धूप में अपना और अपने परिवार का पेट पालने को ग्राहकों की तलाश में जुटे हुए थे और इन्हीं ग्राहकों की तलाश का तरीका बिल्कुल अलग था, क्योंकि यहां मौजूद कई नाविक आपस में लड़े नहीं, झगड़े नहीं और हर किसी को ग्राहक मिल सके इसके लिए नाविकों ने बहुत पहले एक कोड सिस्टम तैयार किया है. इसी कोड सिस्टम के आधार पर बनारस के इस घाट पर नाविकों की ओर से ग्राहकों को अपनी नाव तक ले जाने का काम किया जाता है. यह कोड भी कोई साधारण कोड नहीं बल्कि ऐसा कोड है, जिसका मतलब सिर्फ और सिर्फ ये लोग ही समझ सकते हैं. ऐसे में हमने भी इस कोड को समझने की कोशिश की और वहीं पर खड़े रहे.
यहां ऐसे सेट होते हैं ग्राहक: इस दौरान घाट की सीढ़ियों से नीचे आ रहे पर्यटकों को देखकर इन लोगों ने खास कोड जुबान में अपने ग्राहकों को सेट करने का सिलसिला शुरू किया. हरे रंग के कपड़े में आ रहे व्यक्ति को देखकर एक ने कहा हरा हमारा, बिना बाल के व्यक्ति को देखकर दूसरे ने बोला गंजा मेरा, बिना दाढ़ी मूछ वाला एक व्यक्ति जब नीचे आने लगा तो एक नाविक ने कहा चिकना है मेरा, इतना ही नहीं परिवार के साथ आ रहे लोगों में यदि कोई महिला शामिल थी तो उस पर नजर जाते ही एक व्यक्ति ने कहा दाएं वाली महिला बस समझ लीजिए. अब इन लोगों को देखकर जिसने पहले जो शब्द कहा वह ग्राहक उसी व्यक्ति का हो गया. यानी अब उससे कोई दूसरा नाविक बात नहीं करेगा. नीचे आने पर इन पर्यटकों को देखकर जिसके मुंह से जो पहला शब्द निकला था, उस शब्द के अनुसार उस व्यक्ति से वही नाविक डील करने पहुंच गया. डील हुई तो ठीक नहीं तो दूसरा ग्राहक तलाशने की प्रक्रिया इसी तरह शुरू हो गई.
अजीब नहीं आविष्कार कहिए: इस बारे में बनारस के गंगा घाटों पर बीते कई पीढ़ियों से नाव चलाने वाले संजय का कहना था कि हम कई पीढ़ियों से इसी तरह ग्राहकों को सेट करने का काम करते हैं. यह नाविक समाज का भाड़ा कोड है. भाड़ा कोड यानी यहां आने वाले पर्यटकों को अपनी नावों तक ले जाने की जिम्मेदारी. हर घाट पर सैकड़ों की संख्या में नाविक हैं, इसलिए भीड़भाड़ और बेवजह की टेंशन से बचने को यह कोड वर्ड बनाया गया. संजय ने आगे बताया कि यह हमारी आपसी अंडरस्टैंडिंग होती है. इसके लिए हम कपड़े के रंग, उसके बॉडी स्ट्रक्चर, उसके चलने के स्टाइल, उसके हाथ में मौजूद कोई सामान, कंधे और टंगे बैग या फिर उसके लुक के हिसाब से कोडवर्ड तैयार कर लेते हैं. नीचे मौजूद नाविक भीड़ में मौजूद किसी व्यक्ति को देखकर जो भी पहला शब्द बोल देते हैं, वह पर्यटक उसी का ग्राहक हो जाता है. फिर उसके साथ डील करना, उसे फाइनल करना और उसे घुमाने के बाद वापस घाट पर छोड़ना उसकी जिम्मेदारी होती है.
500 को 5 और 1000 को 10...: संजय ने बताया कि सिर्फ ग्राहक को सेट करने के लिए ही ये कोड वर्ड नहीं है, बल्कि ग्राहक के सामने आपस में पैसा तय करने के लिए कोड वर्ड का इस्तेमाल किया जाता है. यहां 100 रुपये के लिए एक रुपया, 500 रुपये के लिए 5 रुपया, 1000 के लिए 10 रुपया जैसे कोड का इस्तेमाल किया जाता है. वहीं, उसने बताया कि यदि हम किसी ग्राहक से 1000 रुपये में सौदा तय करना चाहते हैं तो आपस में बात कर लेते हैं. 10 रुपये से ऊपर नहीं बढ़ना है और यह तय हो जाता है कि ग्राहक 1000 रुपये में ही तय करना है. सभी मिलकर उतने में ही डेट फिक्स कर लेते हैं. ताकि किसी का नुकसान न हो और ग्राहक भी अलग-अलग रेट सुनकर भड़के नहीं. फिलहाल बनारस के गंगा घाटों पर नाविक समाज का यह कोड वर्ड काफी लंबे वक्त से इस्तेमाल होता चला आ रहा है और इसके कारण ही यहां आज तक शांति स्थापित है.