करनाल: घर के आंगन में चहचहाती छोटी सी गौरैया भला किसे अच्छी नहीं लगती. चीं-चीं कर फुर्र से उड़ जाने वाली छोटी-नन्ही गौरैया को देखते ही एक अलग ही स्फूर्ति शरीर में आ जाती है. कुछ साल पहले घर के बच्चे इन चिड़ियों का चहचहाना और फुदकना देखकर ऐसे खुश होते जैसे उन्हें कोई बड़ा गिफ्ट मिल गया हो, लेकिन आज ना तो घर में वो आंगन रहा ना ही गौरैया का चहचहाना. दरअसल, शहरीकरण के कारण आजकल इस नन्ही चिड़िया की चहचहाहट गायब होने लगी है.
गौरैया संरक्षण को लेकर ग्लोबल स्तर पर बदलाव आया है यह सुखद है. हमारी सोच अब धीरे-धीरे बदलने लगी है. हम हम प्रकृति और जीव जंतुओं के प्रति थोड़ा मित्रवत भाव रखने लगे हैं. घर की टैरेश पर पक्षियों के लिए दाना-पानी डालने लगे हैं. गौरैया से हम फ्रेंडली हो चले हैं. किचन गार्डन और घर की बालकनी में भी कृत्रिम घोंसला लगाने लगे हैं. गौरैया धीरे-धीरे हमारे आसपास आने लगी हैं. उसकी चीं-चीं की आवाज हमारे घर आंगन में सुनाई पड़ने लगी है. फिर भी अभी यह नाकाफी है.
दरअसल, हमें प्रकृति से संतुलन बनाना चाहिए. हम प्रकृति और पशु-पक्षियों के साथ मिलकर एक सुंदर प्राकृतिक वातावरण तैयार कर सकते हैं. जिन पशु पक्षियों को हम अनुपयोगी समझते हैं वह हमारे लिए प्राकृतिक पर्यावरण को संरक्षित करने में अच्छी खासी भूमिका निभाते हैं, लेकिन हमें इसका ज्ञान नहीं होता. गौरैया हमारी प्राकृतिक मित्र है और पर्यावरण में सहायक है. वहीं, अंधाधुंध शहरीकरण के चलते पक्षियों का बसेरा छीनता चला गया. सबसे ज्यादा नुकसान घर के आंगन में बरबस फुदकने वाली उस गौरैया के साथ हुआ.
करनाल में गौरैया के लिए आशियाना: करनाल के श्याम नगर में करीब एक हजार से अधिक चिड़ियों के लिए घर (आशियाना) बने हुए हैं. इस क्षेत्र में गौरैया की चीं-चीं की आवाज सुनाई देती रहती है. गायब हो रही गौरैया की इतनी बड़ी संख्या को देखकर लोगों ने गौरैया के निवास स्थान को गौरैया एन्क्लेव (चिड़ियों का मोहल्ला) का नाम दे दिया है. यहां पर 3 चिड़ियां से बढ़कर करीब 3 हजार से अधिक गौरैया की संख्या पहुंच चुकी हैं, क्योंकि गौरैया को निवास पंसद आ रहा है.
ये सब पक्षी प्रेमी संस्था सत्या फाउंडेशन के सदस्यों के अथक प्रयासों की बदौलत संभव हो पाया है. यहीं नहीं प्रशासनिक अधिकारी गौरैया के निवास को देखने आते हैं तो लोगों की समस्याओं का तेजी से निवारण भी करते हैं. गौरैया को देखकर लोगों में काफी परिवर्तन आया है, गौरैया के प्रति नजरिया बदला है. इतना ही नहीं मेनका गांधी भी संस्था के गौरैया बचाने के अभियान की सराहना कर चुकी हैं.
गौरैया संरक्षण की दिशा में 6 सालों से कर रहे काम: प्रोजेक्ट के प्रकल्प प्रमुख नवीन वर्मा और संदीप नैन ने बताया कि पशु-पक्षी प्रेमी संस्था सत्या फाउंडेशन की एक नई और अनोखी पहल रंग लाई है, जो गौरैया संरक्षण पर पिछले 6 साल से काम कर रही है. संस्था अब तक 1200 से अधिक मजबूत लकड़ी के घोंसले बनावा कर अनेक जगह पर लगवा चुकी है. संस्था द्वारा विश्व गौरैया दिवस, राहगिरी, पार्कों, मंदिर और हाईवे आदि पर 1100 से अधिक घोंसले को आमजन को नि:शुल्क वितरित किया गया है.
श्याम नगर में 5 साल पहले शुरू की अनोखी पहल: उन्होंने कहा कि शाम-नगर करनाल में 5 वर्ष पहले कुछ आशियाने बनाकर गौरैया को आमंत्रित करने का फैसला किया. उन्होंने गौरैया के लिए पुराने डिब्बों को काटकर 5 घोंसले लगाए. थोड़े ही दिनों में सभी घोसलें में चीं-चीं की आवाज गुंजायमान हो रही थी. इसके बाद लकड़ी के करीब 950 से अधिक घोंसले घरों के आगे लगाएं, जिनमें चिड़िया रहने के लिए आई.
लोग मांगते हैं घोंसले: उन्होंने कहा कि गौरैया को खाने की दिक्कत न हो, इसे देखते हुए बर्ड फीडर बनाकर उनमें एक-एक महीने का मिक्स दाना, जिसे गौरैया अधिक पसंद करती हैं, रखा जाता है. अब तो लोग घोंसले मांगते हैं ताकि उनके आंगन में भी चिड़ियों की आवाज गूंजे, लेकिन संसाधनों की कमी होने के कारण मांग पूरी नहीं कर पाते. इसे देखते हुए बहुत से लोग अपने आप ही अलग-अलग तरीकों से घोंसले बना लेते हैं.
कीटनाशकों व क्रंक्रीट जंगलों की वजह से गायब हो रहीं गौरेया: संदीप नैन ने बताया कि घरों के बाहर कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव का सेवन करने से गौरैया पक्षी का जीवन खत्म हो रहा है. शहरों का बेतरतीब विकास, घटते वृक्ष व हरियाली और कंक्रीट के बढ़ते जंगलों के बीच घरेलू चिडय़िा के नाम से पहचानी जाने वाली गौरैया कहीं खो गई है.
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