नई दिल्ली : 50 साल पहले सोवियत संघ ने वीनस यानी शुक्र ग्रह की जांच पड़ताल के लिए स्पेसक्राफ्ट अंतरिक्ष में भेजा था. उसके सपोर्ट के लिए रूस ने एक और अंतरिक्ष यान कॉसमॉस 482 भेजा था. शुक्र ग्रह पर पहले वाले स्पेसक्राफ्ट की लैंडिंग भी सही से हो गई थी. मगर उसका सपोर्टर कॉसमॉस 482 अपनी निर्धारित ऑरबिट में नहीं पहुंच सका. इसका एक इंजन भी फेल हो गया. इलिप्टिकल ऑरबिट में फंसने के बाद कॉसमॉस 482 पिछले 50 साल से पृथ्वी के चारो ओर चक्कर लगा रहा है. इतने साल में इस स्पेसक्राफ्ट और पृथ्वी की दूरी काफी कम हो गई. अब यह ऐसे मुहाने पर पहुंच गया है, जहां वह पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर सकता है. तीन से चार साल के बीच ऐसा कभी भी हो सकता है कि रूस का पुराना स्पेसक्राफ्ट धरती से टकरा जाए. हालांकि कई वैज्ञानिक इसको लेकर पॉजिटिव हैं. उनका मानना है कि संभव है कि पृथ्वी के वायुमंडल में आते ही घर्षण से यह नष्ट हो जाए. अगर फिर भी बच गया तो यह स्पेसक्राफ्ट समंदर में भी गिर सकता है.
27 मार्च 1972 को, सोवियत संघ ने पृथ्वी के निकटतम पड़ोसी शुक्र ग्रह का पता लगाने के लिए वेनेरा-8 अंतरिक्ष यान लॉन्च किया. इसके अलावा, इसने 31 मार्च को कॉसमॉस 482 नामक एक और स्पेसक्राफ्ट भेजा. 117 दिनों की यात्रा के बाद वेनेरा -8 सफलतापूर्वक शुक्र पर उतरा और पृथ्वी पर स्पेस सेंटर को वहां का डेटा भेजा. शुक्र ग्रह पर कठोर सतह के कारण वेनेरा-8 एक घंटे से भी कम समय तक एक्टिव रहा. शुक्र ग्रह पर 50.11 मिनट तक रहने के दौरान, वेनेरा-8 ने ग्रह की सतह पर मौजूद तीन रेडियो एक्टिव तत्वों की जांच भी की. मगर उसके साथ भेजा गया कॉसमॉस 482 पृथ्वी की कक्षा से निकलने में विफल रहा. वह आज भी पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है. पिछले 50 वर्षों में उसका ऑरबिट दूरी 7,000 किलोमीटर से अधिक कम हो चुका है, जिससे यह पृथ्वी से टकराने की राह पर है.
कॉसमॉस 482 को मोलनिया बूस्टर द्वारा लॉन्च किया गया था. इस रॉकेट को पृथ्वी की कक्षा को पार करने और शुक्र की ओर केंद्रित कक्षा में ले जाने के लिए डिज़ाइन किया गया था. मगर यह स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी की कक्षा में फंस गया और इसका बूस्टर का गलत टाइमर के कारण समय से पहले बंद हो गया था. इंजन फेल होने के बाद यह अंतरिक्ष यान दो भागों में बंट गया. इसका एक हिस्सा तो अपने निर्धारित रूट 1981 पर चला गया जबकि दूसरा हिस्सा अभी भी ऑर्बिट में घूम रहा है. पिछले 50 वर्षों के दौरान पृथ्वी और कॉसमॉस 482 के बीच की दूरी 7,700 किलोमीटर से अधिक कम हुई है. 1 मई, 2022 तक यह 198 x 1957 किलोमीटर की ऑरबिट में पहुंचा था. स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस कंसल्टेंट मैक्रो लैंगब्रोक की एक रिपोर्ट के अनुसार, कॉसमॉस 482 अब 2024 और 2027 के बीच पृथ्वी के वायुमंडल में फिर से प्रवेश कर सकता है. हालांकि, खगोलविद और अंतरिक्ष यात्री इतिहासकार पावेल शुबिन ने कहा कि 2023 से 2025 के बीच यह पृथ्वी पर वापस गिर सकता है.
उपग्रह और स्पेसक्राफ्ट के पुर्जे जब वायुमंडलीय घर्षण के बीच पहुंचते हैं तो उनमें तेज गर्मी से आग लग जाती है और वह टूट जाता है. केवल कुछ ही वस्तुएं ऐसी हैं, जो पृथ्वी के घने वातावरण का सामना करती हैं और जमीन या समुद्र तक पहुंच पाती हैं. 1,180 किलोग्राम के कॉसमॉस 482 स्पेसक्राफ्ट को शुक्र के घने वातावरण से बचने के लिए विकसित किया गया था, इसलिए, यह संभावना जताई जा रही है कि यह पृथ्वी पर लौट सकता है. इसकी संभावना भी कम है कि इसे धीमा करने के लिए लगाया गया पैराशूट अंतरिक्ष में 50 साल से अधिक समय तक रहने के बाद बचा हो. इसलिए, जांच के क्रैश लैंडिंग होने की उम्मीद जताई जा रही है. कॉस्मॉस 482 का हिस्सा संभवतः 52 डिग्री उत्तर और 52 डिग्री दक्षिण अक्षांश के बीच कहीं भी नीचे आ सकता है, जिसमें दक्षिण और मध्य अक्षांश यूरोप और एशिया, साथ ही साथ अमेरिका और पूरे अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसके समुद्र में गिरने की संभावना अधिक है.
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