नई दिल्ली: केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री स्मृति ईरानी ने बुधवार को टिप्पणी की, 'मैं उतनी सांप्रदायिक नहीं हूं, जितना मीडिया में दिखाया जाता है.' ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रेसिडेंट चुनाव जीतकर इतिहास रचने वाली रश्मि सामंत द्वारा लिखित पुस्तक 'ए हिंदू इन ऑक्सफोर्ड' के विमोचन पर भाषण देते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा, 'जब मुझे अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय दिया गया, तो लोग मेरी धार्मिक संबद्धता पर टिप्पणी करके मुझे संदेह की दृष्टि से देखते थे.'
मंत्री ने अपनी टिप्पणी में जोर दिया कि पहले मुस्लिम महिलाओं पर कई तरह के प्रतिबंध थे कि वे बिना पुरुष अभिभावक के हज नहीं कर सकतीं. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस व्यवस्था में बदलाव किया और अब ये मुस्लिम महिलाएं बिना मेहरम के हज कर सकेंगी.
इस किताब की लेखिका रश्मी सामंत जो ऑक्सफोर्ड स्टूडेंट यूनियन की अध्यक्ष चुनी जाने वाली पहली भारतीय बनने के बाद मशहूर हुईं, उन्होंने कहा कि भारतीय छात्रों को बहुत भेदभाव और नफरत का सामना करना पड़ता है, जिसके बारे में सार्वजनिक रूप से खुलकर चर्चा नहीं की जाती है.
सामंत ने कहा, 'चुनाव जीतने के बाद भी, हिंदू होने के कारण मुझे लगातार निशाना बनाया गया और बाद में मुझे इसे वापस लेना पड़ा, लेकिन मैंने अत्यंत साहस के साथ लड़ाई लड़ी और ऑक्सफोर्ड के जिस संकाय ने मेरे खिलाफ अभियान चलाया, उसे बाद में मेरे खिलाफ लक्षित कार्रवाई के परिणाम भुगतने पड़े. आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी सुनील अंबेकर, जो ईरानी के साथ इस कार्यक्रम में मौजूद थे, उन्होंने भारतीय संस्कृति और उपनिवेशवाद के बारे में विस्तार से बात की.
अंबेकर ने कहा, 'समय आ गया है कि औपनिवेशिक मानसिकता को त्याग दिया जाए.' स्थानों के नाम बदलने की संस्कृति के बारे में बात करते हुए, जिसकी अक्सर विपक्ष, शिक्षाविदों और कार्यकर्ताओं द्वारा भारी आलोचना होती रही है, उन्होंने यह टिप्पणी की कि जब बॉम्बे को मुंबई में बदला जा सकता है, मद्रास को चेन्नई कहा जा सकता है और इसे एक धर्मनिरपेक्ष कदम के रूप में दिखाया जाता है तो फिर इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज करने को एक सांप्रदायिक कदम के रूप में क्यों पेश किया जा रहा है.
गौरतलब है कि पिछले महीने संसद के विशेष सत्र के दौरान भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी ने बसपा सांसद दानिश अली के खिलाफ कठोर सांप्रदायिक टिप्पणी की थी, जिससे बड़ा विवाद पैदा हो गया था. इस बीच, सत्तारूढ़ सरकार ने इस पर चुप्पी साध ली और यहां तक कि बिधूड़ी को राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले टोंक (गुर्जरों का गढ़) में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का काम भी सौंपा.