हरिद्वारः धर्मनगरी हरिद्वार वैसे तो कई सिद्ध पीठों और मां गंगा के लिए जाना जाता है, लेकिन नवरात्रि के दौरान इन मंदिरों की महत्ता और अधिक बढ़ जाती है. मां के इन स्थानों में से एक सतयुग काल का मंदिर भी है, जिसे शीतला माता मंदिर के नाम से जाना जाता है. जिन्हें आरोग्य और स्वच्छता की देवी भी माना जाता है. मां शीतला के इस स्थान पर दूर-दूर से लोग अपने बच्चों की दीर्घायु के साथ बीमारियों से मुक्ति पाने के लिए लाते हैं. माना जाता है कि यहां पर राजा दक्ष की तपस्या से प्रसन्न होकर मां शीतला के वरदान से उनके घर में मां सती का जन्म हुआ था.
राजा दक्ष की नगरी और माता सती के मायके कनखल में स्थित शीतला माता को राजा दक्ष की कुल देवी के रूप में भी जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि जिस जगह पर आज दक्ष प्रजापति का मंदिर विराजमान है, इसी जगह पर राजा दक्ष ने अपनी कुल देवी शीतला मां की कठोर तपस्या की थी. इस पर मां प्रसन्न हुई और राजा दक्ष की मनोकामना पूरी हुई. इसी स्थान पर वरदान स्वरूप देवी ने राजा दक्ष के यहां सती माता के रूप में जन्म लिया था. इस मंदिर की महत्ता है कि यह माता बच्चों को रोगों से मुक्त करने वाली है. यही कारण है कि यहां दूर दूर से लोग आकर बच्चों को झाड़ लगवाते हैं.
आरोग्य और स्वच्छता की देवी मां शीतला: हरिद्वार के कनखल स्थित शीतला माता मंदिर में श्रद्धालु संतान की आरोग्यता और दीर्घायु के लिए मां की पूजा-अर्चना करते हैं. सनातन धर्म में आदि शक्ति को मातृ स्वरूप मानकर उनकी अनेक रूपों में पूजा की जाती है. इन्हीं में एक हैं भगवती शीतला माता, जिन्हें आरोग्य और स्वच्छता की देवी माना जाता है.
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भगवान गणेश को किया था ठीकः पौराणिक कथानुसार जब भगवान गणेश को ज्वर नामक राक्षस ने जकड़ लिया था तो मां सती ने शीतला मां के रूप में जन्म लेकर ज्वर नामक राक्षस का संहार किया था. आज भी इस मंदिर में यह प्रत्यक्ष प्रमाण मिला है कि मां खुद यहां विराजमान होकर बच्चों के रोगों को खत्म करती हैं. यही वजह कि यहां बीमारियों की मुक्ति के लिए लोगों का तांता लगता है.
चेचक रोग से मिलती है मुक्तिः यदि किसी बच्चे को चेचक या माता निकलती है तो उस बच्चे को इस मंदिर में लाकर झाड़ लगवाने पर वह समाप्त हो जाती है. इसके तीन प्रकार देखने को मिलते हैं, पहला तीन दिन तक रहने वाला खसरा मां के दर्शन मात्र से ठीक होता है. फिर दूसरा सात दिन व ज्यादा खराब हालत के बच्चे इक्कीस दिन में ठीक होते हैं. घर में संयम रखने के साथ मंदिर में नित्य पूजा व दर्शन का विधान है.
सतयुग से है यह स्थान: कहा जाता है कि सतयुग से ही इस स्थान पर लोग शीतला माता की पूजा करते आए हैं. ऐसी मान्यता है कि मंदिर में पूजा-अर्चना करने से शीतला माता की अनुकंपा से लोग रोग मुक्त हो जाते हैं. वैसे तो साल भर श्रद्धालु यहां पूजा-अर्चना करते हैं, लेकिन शीतला अष्टमी पर माताएं संतान की आरोग्यता के लिए बड़ी संख्या में मंदिर में शीतला माता का पूजन करती हैं.
नवरात्रि में विशेष महत्व: शारदीय और चैत्र नवरात्रि में यहां पूजा-अर्चना को लेकर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. नवरात्रि में यहां हर रोज 56 प्रकार के भोग लगाए जाते हैं. हर रोज पंचामृत से माता का अभिषेक कर पूजा-अर्चना की जाती है. मंदिर में माता का पूजन करने से मन वांछित फल की प्राप्ति हो जाती है. खासतौर पर लोग यहां संतान के आरोग्य को माता की पूजा करते हैं. नवरात्रि में प्रतिदिन कन्याओं का पूजन कर उन्हें वस्त्र, दक्षिणा आदि प्रदान की जाती है. यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भंडारे व रहने का भी प्रबंध मंदिर समिति की ओर से किया जाता है.
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कैसे पहुंचे मां शीतला माता मंदिरः माता सती का यह पौराणिक मंदिर दक्ष नगरी कनखल स्थित दक्षेश्वर महादेव मंदिर के बिल्कुल बराबर में स्थित है. बस या ट्रेन से आने वाले श्रद्धालु ऑटो या रिक्शा के माध्यम से यहां तक पहुंच सकते हैं. ई-रिक्शा और ऑटो वाला इस मंदिर तक पहुंचाने के लिए ₹100 लेता है. इसी तरह अपनी कार से आने वाले व्यक्ति देश रक्षक तिराहे कनखल से होते हुए सीधे मंदिर तक पहुंच सकते हैं. माता का यह मंदिर सुबह 5 बजे से रात्रि 9 बजे तक प्रतिदिन खुला रहता है.