अल्मोड़ा (उत्तराखंड): नैसर्गिक सौंदर्य से लबरेज देवभूमि वो धरा हैं, जहां में शिवत्व का अहसास होता है. ऐसा ही एक धाम जागेश्वर है. माना जाता है कि ये पहला शिव मंदिर है, जहां से लिंग के रूप में देवों के देव महादेव की सबसे पहले पूजा की परंपरा शुरू हुई थी. यहां पर 124 छोटे बड़े मंदिरों का समूह भी मौजूद है. इसके अलावा जागेश्वर मंदिर समूह अपनी वास्तुकला के लिए भी काफी विख्यात है. ऐसे में ईटीवी भारत आपको इस मंदिर की महिमा और मान्यताओं से रूबरू कराएगा. आज इसी धाम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूजा अर्चना करने पहुंच रहे हैं.
बेहद खूबसूरत और शांत जगह है जागेश्वरः जागेश्वर धाम कुमाऊं मंडल के अल्मोड़ा जिले में मौजूद है. जो अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूरी है. जागेश्वर धाम देवदार के घने जंगलों के बीच शांति और अलौकिक शक्ति का अहसास कराता है. यहां पर एक दो नहीं बल्कि, 124 छोटे और बड़े मंदिरों का समूह है. एक जैसी बनावट, एक सी शैली और एक जैसा रंग अपने आप में खास नजर आता है. यही वजह है कि जागेश्वर मंदिर समूह अपनी वास्तुकला के लिए देश और विदेश में विख्यात है.
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माना जाता है कि मंदिरों का निर्माण 7वीं शती ईसवीं से 18वीं शती ईसवीं के बीच कत्यूरी शासकों ने कराया था. यह मंदिर खासकर भगवान शिव और अन्य देवी देवताओं को समर्पित है. जैसे ही मंदिर परिसर में पहुंचते हैं तो यहां पर दो भव्य मंदिर नजर आते हैं. जहां पर भगवान जागेश्वर विराजते हैं. इसके अलावा यहां योगेश्वर यानी जागेश्वर, मृत्युंजय, नवदुर्गा, सूर्य, नवग्रह, लकुलोश, केदारेश्वर, बालेश्वर, पुष्टि देवी, कालिका, लक्ष्मी देवी आदि के मंदिर मौजूद हैं. वहीं, मंदिर परिसर यज्ञ की आहुति से निकलने वाली खुशबू से भरा रहता है.
सबसे पहले शिवलिंग की पूजा यहीं से शुरू हुईः प्रसिद्ध जागेश्वर मंदिर के पुजारी हेमंत भट्ट बताते हैं कि स्कंद पुराण, शिव पुराण और अन्य पुराणों में इस मंदिर का वर्णन मिलता है. लिंग पुराण में भी इस मंदिर की नक्काशी, शिलालेख और वास्तुकला का जिक्र है. मान्यता है कि सबसे पहले भगवान शिव की लिंग रूप में पूजा जागेश्वर धाम में हुई थी. यही वजह है कि जागेश्वर धाम को ज्योर्तिलिंग भी कहा जाता है. इसके बाद ही भगवान शिव की लिंग रूप में पूजा शुरू हुई थी. यहां पर भक्त रुद्राभिषेक के साथ पितृ इत्यादि की पूजा पाठ भी करा सकते हैं.
रहस्यों से भरा है मंदिरः जागेश्वर धाम को अद्भुत शक्तियों और शिव साधना की वजह से रहस्यमयी जगह माना जाता है. यहां जिस तरह से मंदिर और बाहर की मूर्तियां नीचे से एक होती हैं, लेकिन ऊपर की ओर दो हो जाती है. उसी तरह पेड़ भी रहस्यों से भरे हैं. यहां पेड़ का तना तो एक होता है, लेकिन ऊपर दो हो जाती है. यानी पेड़ जड़ से एक और ऊपर दो पेड़ों में विभाजित हो जाती है. इतना ही नहीं कई पेड़ यहां गणेश के रूप में नजर आते हैं. मंदिर परिसर में ही कमल कुंड है. जहां कमल के फूल तैरते हैं. जो आपके भाग्य को भी बताते हैं.
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मान्यता है कि अगर आप मुराद मांगते हुए कोई सिक्का इस कुंड में डालते हैं और वो सिक्का कमल के पत्ते पर अटक जाता है तो आपकी मुराद पूरी हो जाती है. इस मंदिर के एक तरफ जटा गंगा बहती है. इसके पवित्र जल में भक्त भगवान शिव और अन्य देवी देवताओं को स्नान करवाते हैं. अगर आप यहां पर कुछ देर बैठते हैं. आपको एक अलग ही शांति महसूस होगी. जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है. यहां प्रसाद के रूप में फल और पेड़ दिया जाता है. ये भी मान्यता है कि यहां महामृत्युंजय जाप करने से मृत्यु तुल्य कष्ट भी टल जाते हैं.
जागेश्वर धाम के रूट पर कुदरत का दिखेगा करिश्माः अगर आप पहले गोल्ज्यू देवता के दर्शन कर जागेश्वर धाम जाना चाहते हैं तो आपको प्राकृतिक सौंदर्य का दीदार होगा. घुमावदार सड़कों से गुजरने पर देवदार के पेड़ और चाय के बागान नजर आते हैं. रास्ते में छोटी नदियां भी मिलेंगी. सफर के दौरान आप महसूस करेंगे कि हिमालय आपको अपनी ओर खींच रहे हैं. रास्ते में खाने पीने से लेकर आराम करने की जगहें भी मिल जाएंगी. जैसे-जैसे आप आगे बढ़ते हैं, वैसे-वैसे आपको ऐसा महसूस होने लगता है कि जैसे की कोई खास आध्यात्मिक शक्ति अपनी ओर खींच रही है.
आगे बढ़ने पर जंगलों में घिरे और खूबसूरत नक्काशी वाले मंदिर नजर आ जाते हैं. कुछ ही समय आप मंदिर के पास पहुंच जाते हैं. यहां पर कई दुकानें हैं. जहां से आप पूजा की सामग्री या प्रसाद आदि खरीद सकते हैं. इसके बाद आप मंदिर के दर्शन के लिए जा सकते हैं. हालांकि, मंदिर के गेट तक गाड़ी जाती है. पैदल मंदिर तक भी जा सकते हैं. मंदिर पहुंचते ही मंत्रोच्चारण और घंटियों की ध्वनियां कानों में गूंजती है. जो आपको एहसास कराती है, आप आस्था के दर पहुंच चुके हैं.
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कैसे पहुंचे जागेश्वर मंदिरः जागेश्वर धाम तक सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं. इसके लिए आपको हल्द्वानी, अल्मोड़ा या नैनीताल पहुंचना होगा. हल्द्वानी से करीब 4 घंटे में जागेश्वर धाम पहुंच सकते हैं. जागेश्वर पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है. जहां सभी जगह से ट्रेन आती हैं. इस स्टेशन से करीब 4 से 5 घंटे में आप जागेश्वर धाम पहुंच सकते है. बीच में आपको नीम करोली, नैनीताल और गोल्ज्यू देवता के दर्शन भी कर सकते हैं. बस और टैक्सी से मंदिर तक पहुंच सकते हैं. यहां ठहरने के लिए भी कोई चिंता करने की जरुरत नहीं है. यहां खाने पीने से लेकर ठहरने की व्यवस्था मिल जाएगी.