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भारत में कच्चे माल की कमी, कोरोना टीके का उत्पादन प्रभावित - रसायन की कमी

भारत में कोरोना की दूसरी लहर के साथ ही कोरोना मरीजों की संख्या में प्रतिदिन बढ़ोत्तरी हो रही है. वहीं एक और चिंताजनक पहलू में कोविड-19 वैक्सीन के उत्पादन के लिए आवश्यक रसायन की कमी की बात भी सामने आई है. रिपोर्ट्स के मुताबिक कोरोना टीकों का उत्पादन प्रभावित हो रहा है. हालांकि, हालात की गंभीरता के मद्देनजर टीकों के उत्पादन को बढ़ाने की कोशिश की जा रही है.

टीका उत्पादन प्रभावित
टीका उत्पादन प्रभावित
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Published : Apr 17, 2021, 12:07 AM IST

हैदराबाद : एक ओर कोरोना की दूसरी लहर के साथ कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हो रही है, तो दूसरी ओर कोविड -19 से बचाव के लिए विकसित की जा रही वैक्सीन के रास्ते में भी बाधाएं सामने आ रही हैं. खबरों के मुताबिक कोविड-19 वैक्सीन के उत्पादन के लिए आवश्यक रसायन की कमी से टीकों का उत्पादन प्रभावित हो रहा है. वैक्सीन उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल के निर्यात पर प्रतिबंध से भारतीय निर्माताओं पर इसका असर पड़ा है.

बता दें कि अमेरिका और यूरोपीय देशों ने वैक्सीन के उत्पादन में आवश्यक कई महत्वपूर्ण कच्चे माल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है. इससे भारत समेत दुनिया के कई देशों में टीके के उत्पादन का गंभीर संकट पैदा हो गया है. प्रतिबंध लगाने से प्रमुख रसायनों के साथ उसकी सहायक सामग्री की आपूर्ति पर भी संकट मंडराने लगा है. एक नजर टीके के उत्पादन में लगने वाले तत्वों और उनकी भूमिका पर-

एडज्वेंट (Adjuvant- सहायक) क्या हैं?

  • एक ऐसा तत्व जो एंटीजेन की मौजूदगी में इम्युनिटी सिस्टम की प्रतिक्रिया बेहतर बनाता है.
  • इसका उपयोग आमतौर पर एक टीके की प्रभावशीलता में सुधार करने के लिए किया जाता है.
  • इसे बदला नहीं जा सकता.
  • एडज्वेंट (सहायक) एंटीबॉडी बनाने में प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करते हैं जो एंटीजन से लड़ते हैं.

वैक्सीन उत्पादन में एडज्वेंट (सहायक) की भूमिका

  • कोवैक्सीन में विरोवैक्स के अल्हाइड्रोक्सिमिम -2 (ViroVax's Alhydroxiquim-II) एडज्वेंट का उपयोग किया जाता है. यह निष्क्रिय किया गया सार्स-कोव -2 वायरस का टीका है.
  • वैक्सीन उत्पादन के लिए निष्क्रिय वायरस को वीरोवैक्स के सहायक के रूप में तैयार किया जाता है.
  • एडज्वेंट (सहायक) औषधीय या प्रतिरक्षाविज्ञानी एजेंट हैं. इससे वैक्सीन की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में सुधार होता है. उन्हें अधिक एंटीबॉडी का उत्पादन करने के मकसद से वैक्सीन में प्रयोग किया जा सकता है. इससे लंबे समय तक स्थायी प्रतिरक्षा मिल सकती है. ऐसा करने से आवश्यक एंटीजेन की खुराक कम होती है.
  • एंटीजन ऐसा पदार्थ भी हो सकता है जो प्रतिरक्षा प्रणाली को इसके खिलाफ एंटीबॉडी का उत्पादन करने के लिए तैयार करता है. यह रसायन, वायरस, बैक्टीरिया जैसा पदार्थ भी हो सकता है. प्रतिरक्षा प्रणाली इन्हें पहचान नहीं पाती और रोकने की कोशिश करती है.

अमेरिका, यूरोप ने कच्चे माल के निर्यात पर प्रतिबंध क्यों लगाया?

  • भारत में कोरोना टीकों का उत्पादन कर रही कंपनियां वर्तमान में कोविड -19 टीकों में प्रयोग किए जाने वाले कई घटकों के लिए अमेरिका और जर्मनी पर निर्भर हैं. घरेलू बाजारों में टीकों की मांग बढ़ने के कारण इन देशों ने ऐसे कानून लागू किए हैं जिससे कोरोना टीकों में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल का निर्यात नियंत्रित हो गया है.
  • अमेरिका ने रक्षा उत्पादन अधिनियम लागू किया है, जो प्रत्यक्ष औद्योगिक उत्पादन पर आपात स्थिति के दौरान अमेरिकी सरकार को अधिक नियंत्रण देता है. इसके अलावा यह अधिनियम अमेरिकी राष्ट्रीय रक्षा में सहायता करने के लिए आवश्यक सेवाओं और सामग्रियों के अनुबंधों को स्वीकार करने और प्राथमिकता देने की अनुमति देता है.
  • अमेरिका में निर्यात पर लागू पाबंदियों के कारण भारत को कोरोना टीकों के लिए जरूरी कच्चा माल मिलने में बाधा आ रही है. इसके अलावा अमेरिका खुद प्राथमिकता के आधार पर अपनी आबादी का टीकाकरण करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने की कोशिश में जुटा है.

टीका उत्पादन पर प्रभाव

  • भारत में लगभग 1.3 बिलियन की आबादी का टीकाकरण करना एक बड़ी चुनौती है.
  • अभी कोरोना से बचाव के लिए कोविशील्ड और कोवैक्सीन का उपयोग किया जा रहा है. 13 अप्रैल तक देशभर में 108 मिलियन से अधिक लोगों को टीके लगाए जा चुके थे. टीकाकरण में 45 वर्ष या इससे अधिक की आयु के सभी लोगों को शामिल किया गया है.
  • जनवरी की शुरुआत से, सीरम इंस्टीट्यूट (SII) द्वारा उत्पादित कोविशील्ड की लगभग 160 मिलियन खुराक या तो निर्यात की जा चुकी हैं, या इनका भारत में उपयोग किया गया है. कोविशील्ड ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और-एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित किए जा रहे टीके का स्थानीय संस्करण है.
  • सीरम के मुताबिक कंपनी एक महीने में 60 से 70 मिलियन वैक्सीन का उत्पादन कर रही थी. इसमें कोविशील्ड और अमेरिका में विकसित नोवाक्स शामिल हैं. (नोवावैक्स को अभी उपयोग के लिए लाइसेंस नहीं मिला है)
  • मार्च तक एक महीने में 100 मिलियन तक उत्पादन बढ़ाने की योजना को अब जून तक आगे खिसका दिया गया है.
  • कच्चे माल की कमी के कारण नोवावैक्स वैक्सीन का उत्पादन प्रभावित हो रहा है.

सरकार द्वारा कदम उठाए जाते हैं

  • सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) अब कच्चे माल मसलन, फिल्टर, बैग, सेल कल्चर मेडियास आदि के लिए नए विक्रेताओं को विकसित करने पर काम कर रहा है. सीरम फिलहाल, इन सामानों को अमेरिका से आयात करता है.
  • भारत बायोटेक ने पिछले महीने वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के साथ मिलकर टीकों, दवाओं और यहां तक ​​कि कच्चे माल के लिए प्रौद्योगिकियों और प्लेटफार्मों पर काम करने की घोषणा की है.
  • इस सहभागिता से जैव-चिकित्सीय और टीकों के लिए नए प्लेटफ़ॉर्म की प्रौद्योगिकियों को विकसित करने में मदद मिलेगी. इसका मकसद मानव और पशुओं के लिए स्वदेशी, सस्ती स्वास्थ्य सुविधाओं को सहारा देना है.

हैदराबाद : एक ओर कोरोना की दूसरी लहर के साथ कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हो रही है, तो दूसरी ओर कोविड -19 से बचाव के लिए विकसित की जा रही वैक्सीन के रास्ते में भी बाधाएं सामने आ रही हैं. खबरों के मुताबिक कोविड-19 वैक्सीन के उत्पादन के लिए आवश्यक रसायन की कमी से टीकों का उत्पादन प्रभावित हो रहा है. वैक्सीन उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल के निर्यात पर प्रतिबंध से भारतीय निर्माताओं पर इसका असर पड़ा है.

बता दें कि अमेरिका और यूरोपीय देशों ने वैक्सीन के उत्पादन में आवश्यक कई महत्वपूर्ण कच्चे माल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है. इससे भारत समेत दुनिया के कई देशों में टीके के उत्पादन का गंभीर संकट पैदा हो गया है. प्रतिबंध लगाने से प्रमुख रसायनों के साथ उसकी सहायक सामग्री की आपूर्ति पर भी संकट मंडराने लगा है. एक नजर टीके के उत्पादन में लगने वाले तत्वों और उनकी भूमिका पर-

एडज्वेंट (Adjuvant- सहायक) क्या हैं?

  • एक ऐसा तत्व जो एंटीजेन की मौजूदगी में इम्युनिटी सिस्टम की प्रतिक्रिया बेहतर बनाता है.
  • इसका उपयोग आमतौर पर एक टीके की प्रभावशीलता में सुधार करने के लिए किया जाता है.
  • इसे बदला नहीं जा सकता.
  • एडज्वेंट (सहायक) एंटीबॉडी बनाने में प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करते हैं जो एंटीजन से लड़ते हैं.

वैक्सीन उत्पादन में एडज्वेंट (सहायक) की भूमिका

  • कोवैक्सीन में विरोवैक्स के अल्हाइड्रोक्सिमिम -2 (ViroVax's Alhydroxiquim-II) एडज्वेंट का उपयोग किया जाता है. यह निष्क्रिय किया गया सार्स-कोव -2 वायरस का टीका है.
  • वैक्सीन उत्पादन के लिए निष्क्रिय वायरस को वीरोवैक्स के सहायक के रूप में तैयार किया जाता है.
  • एडज्वेंट (सहायक) औषधीय या प्रतिरक्षाविज्ञानी एजेंट हैं. इससे वैक्सीन की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में सुधार होता है. उन्हें अधिक एंटीबॉडी का उत्पादन करने के मकसद से वैक्सीन में प्रयोग किया जा सकता है. इससे लंबे समय तक स्थायी प्रतिरक्षा मिल सकती है. ऐसा करने से आवश्यक एंटीजेन की खुराक कम होती है.
  • एंटीजन ऐसा पदार्थ भी हो सकता है जो प्रतिरक्षा प्रणाली को इसके खिलाफ एंटीबॉडी का उत्पादन करने के लिए तैयार करता है. यह रसायन, वायरस, बैक्टीरिया जैसा पदार्थ भी हो सकता है. प्रतिरक्षा प्रणाली इन्हें पहचान नहीं पाती और रोकने की कोशिश करती है.

अमेरिका, यूरोप ने कच्चे माल के निर्यात पर प्रतिबंध क्यों लगाया?

  • भारत में कोरोना टीकों का उत्पादन कर रही कंपनियां वर्तमान में कोविड -19 टीकों में प्रयोग किए जाने वाले कई घटकों के लिए अमेरिका और जर्मनी पर निर्भर हैं. घरेलू बाजारों में टीकों की मांग बढ़ने के कारण इन देशों ने ऐसे कानून लागू किए हैं जिससे कोरोना टीकों में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल का निर्यात नियंत्रित हो गया है.
  • अमेरिका ने रक्षा उत्पादन अधिनियम लागू किया है, जो प्रत्यक्ष औद्योगिक उत्पादन पर आपात स्थिति के दौरान अमेरिकी सरकार को अधिक नियंत्रण देता है. इसके अलावा यह अधिनियम अमेरिकी राष्ट्रीय रक्षा में सहायता करने के लिए आवश्यक सेवाओं और सामग्रियों के अनुबंधों को स्वीकार करने और प्राथमिकता देने की अनुमति देता है.
  • अमेरिका में निर्यात पर लागू पाबंदियों के कारण भारत को कोरोना टीकों के लिए जरूरी कच्चा माल मिलने में बाधा आ रही है. इसके अलावा अमेरिका खुद प्राथमिकता के आधार पर अपनी आबादी का टीकाकरण करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने की कोशिश में जुटा है.

टीका उत्पादन पर प्रभाव

  • भारत में लगभग 1.3 बिलियन की आबादी का टीकाकरण करना एक बड़ी चुनौती है.
  • अभी कोरोना से बचाव के लिए कोविशील्ड और कोवैक्सीन का उपयोग किया जा रहा है. 13 अप्रैल तक देशभर में 108 मिलियन से अधिक लोगों को टीके लगाए जा चुके थे. टीकाकरण में 45 वर्ष या इससे अधिक की आयु के सभी लोगों को शामिल किया गया है.
  • जनवरी की शुरुआत से, सीरम इंस्टीट्यूट (SII) द्वारा उत्पादित कोविशील्ड की लगभग 160 मिलियन खुराक या तो निर्यात की जा चुकी हैं, या इनका भारत में उपयोग किया गया है. कोविशील्ड ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और-एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित किए जा रहे टीके का स्थानीय संस्करण है.
  • सीरम के मुताबिक कंपनी एक महीने में 60 से 70 मिलियन वैक्सीन का उत्पादन कर रही थी. इसमें कोविशील्ड और अमेरिका में विकसित नोवाक्स शामिल हैं. (नोवावैक्स को अभी उपयोग के लिए लाइसेंस नहीं मिला है)
  • मार्च तक एक महीने में 100 मिलियन तक उत्पादन बढ़ाने की योजना को अब जून तक आगे खिसका दिया गया है.
  • कच्चे माल की कमी के कारण नोवावैक्स वैक्सीन का उत्पादन प्रभावित हो रहा है.

सरकार द्वारा कदम उठाए जाते हैं

  • सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) अब कच्चे माल मसलन, फिल्टर, बैग, सेल कल्चर मेडियास आदि के लिए नए विक्रेताओं को विकसित करने पर काम कर रहा है. सीरम फिलहाल, इन सामानों को अमेरिका से आयात करता है.
  • भारत बायोटेक ने पिछले महीने वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के साथ मिलकर टीकों, दवाओं और यहां तक ​​कि कच्चे माल के लिए प्रौद्योगिकियों और प्लेटफार्मों पर काम करने की घोषणा की है.
  • इस सहभागिता से जैव-चिकित्सीय और टीकों के लिए नए प्लेटफ़ॉर्म की प्रौद्योगिकियों को विकसित करने में मदद मिलेगी. इसका मकसद मानव और पशुओं के लिए स्वदेशी, सस्ती स्वास्थ्य सुविधाओं को सहारा देना है.
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