ETV Bharat / bharat

महाराष्ट्र के चरित्र पर सवाल…राज्य सरकार के पास नहीं है 'डैमेज कंट्रोल' की योजना : शिवसेना - अनिल देशमुख

मुंबई के पुलिस पूर्व आयुक्त परमबीर सिंह के विवादास्पद पत्र को लेकर विपक्ष महा विकास अघाड़ी पर हमलावर है. शिवसेना के मुखपत्र सामना में छपे संपादकीय लेख के माध्यम से भारतीय जनता पार्टी और मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त पर निशाना साधा गया. इसके अलावा सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी पर भी लेख के माध्यम से तंज कसा गया. पढ़ें सामना में छपा लेख...

shivsena slams  Anil Deshmukh
shivsena slams Anil Deshmukh
author img

By

Published : Mar 28, 2021, 1:13 PM IST

Updated : Mar 28, 2021, 3:39 PM IST

मुंबई : उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के बाहर विस्फोटक मिलने से शुरू हुआ मामला उलझता जा रहा है. मुंबई पुलिस के पूर्व आयुक्त के विवादित पत्र के बाद से महाराष्ट्र सरकार पर संकट मंडरा रहा है. मामले को लेकर विपक्ष ने महा विकास अघाड़ी को घेर रखा है. इस बीच शिवसेना के मुखपत्र सामना में छपे एक लेख के माध्यम से निशाना साधा गया है

लेख कुछ इस प्रकार है-
'विगत कुछ महीनों में जो कुछ हुआ उसके कारण महाराष्ट्र के चरित्र पर सवाल खड़े किए गए. वाझे नामक सहायक पुलिस निरीक्षक का इतना महत्व कैसे बढ़ गया? यही जांच का विषय है. गृहमंत्री ने वाझे को 100 करोड़ रुपए वसूलने का टार्गेट दिया था, ऐसा आरोप मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह लगा रहे हैं. उन आरोपों का सामना करने के लिए प्रारंभ में कोई भी आगे नहीं आया! सरकार के पास 'डैमेज कंट्रोल' की कोई योजना नहीं है, ये एक बार फिर नजर आया.'

'महाराष्ट्र के एक मंत्री संजय राठौड़ को नैतिकता के मुद्दे पर इस्तीफा देना पड़ा. वह प्रकरण शांत नहीं हुआ, तभी मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह द्वारा गृहमंत्री अनिल देशमुख पर 100 करोड़ की वसूली का आरोप लगाने का मामला आज भी खलबली मचा रहा है. परमबीर सिंह के आरोपों के कारण अनिल देशमुख को गृहमंत्री के पद से जाना होगा व सरकार डगमगाएगी, ऐसा माहौल तैयार हो गया था, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. इसके बावजूद देशभर में इस प्रकरण पर चर्चा हुई और महाराष्ट्र की बदनामी हुई!'

सरकार गिराने की जल्दबाजी
'महाराष्ट्र के विपक्ष को ठाकरे सरकार को गिराने की जल्दबाजी है. उनके आरोप प्रारंभ में जोरदार लगते हैं बाद में वे झूठ सिद्ध होते हैं. परंतु ऐसे आरोपों के कारण सरकार गिरने लगी तो केंद्र की मोदी सरकार को सबसे पहले जाना होगा. महाराष्ट्र में पिछले सप्ताह क्या हुआ?'

'मनसुख हिरेन व एंटालिया विस्फोटक मामले में राज्य सरकार ने परमबीर सिंह का तबादला कर दिया. सिंह एक महत्वाकांक्षी अधिकारी हैं. होमगार्ड महासंचालक के पद पर की गई बदली वे सह नहीं सके. उनकी उस अवस्था में तेल डाला गृहमंत्री देशमुख ने. पुलिस आयुक्त ने गलतियां कीं इसलिए उन्हें जाना पड़ा, ऐसा एक बयान देशमुख द्वारा देते ही परमबीर सिंह ने 100 करोड़ की वसूली का टार्गेट गृहमंत्री ने वैâसे दिया था, ऐसा पत्र बम फोड़ दिया.'

दुर्घटनावश गृहमंत्री बने देशमुख
देशमुख को गृहमंत्री का पद दुर्घटनावश मिल गया. जयंत पाटील, दिलीप वलसे-पाटील ने गृहमंत्री का पद स्वीकार करने से मना कर दिया था. तब यह पद शरद पवार ने देशमुख को सौंपा. इस पद की एक गरिमा व रुतबा है. खौफ भी है. आर.आर. पाटील की गृहमंत्री के रूप में कार्य पद्धति की तुलना आज भी की जाती है. संदिग्ध व्यक्ति के घेरे में रहकर राज्य के गृहमंत्री पद पर बैठा कोई भी व्यक्ति काम नहीं कर सकता है. पुलिस विभाग पहले ही बदनाम है. उस पर ऐसी बातों से संदेह बढ़ता है.

'अनिल देशमुख ने कुछ वरिष्ठ अधिकारियों से बेवजह पंगा लिया. गृहमंत्री को कम-से-कम बोलना चाहिए. बेवजह सामने जाना और जांच का आदेश जारी करना अच्छा नहीं है. सौ सुनार की एक लोहार की ऐसा बर्ताव गृहमंत्री का होना चाहिए. पुलिस विभाग का नेतृत्व सिर्फ सैल्यूट लेने के लिए नहीं होता है. वह प्रखर नेतृत्व देने के लिए होता है. प्रखरता ईमानदारी से तैयार होती है, ये भूलने से कैसे चलेगा?'

'परमबीर सिंह ने जब आरोप लगाया तब गृह विभाग और सरकार की धज्जियां उड़ी. परंतु महाराष्ट्र सरकार के बचाव में एक भी महत्वपूर्ण मंत्री तुरंत सामने नहीं आया. चौबीस घंटे गड़बड़ी का माहौल बना रहा. लोगों को परमबीर का आरोप प्रारंभ में सही लगा इसकी वजह सरकार के पास डैमेज कंट्रोल के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी. एक वसूलीबाज पुलिस अधिकारी का बचाव प्रारंभ में विधान मंडल में किया. उसके बाद परमबीर सिंह के आरोपों का उत्तर देने के लिए कोई तैयार नहीं था और मीडिया पर कुछ समय के लिए विपक्ष ने कब्जा जमा लिया, यह भयंकर था.'

पढ़ें-परमबीर सिंह का इस्तेमाल कर रही भाजपा सरकार : शिवसेना

'परमबीर सिंह द्वारा मुख्यमंत्री को लिखे गए पत्र ने खलबली मचा दी, परंतु उन आरोपों की हवा अब निकल गई है. गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी संजीव भट ने इससे भी भयंकर पत्र गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री को लिखा था. उत्तर प्रदेश के नोएडा के पुलिस अधीक्षक वैभव कृष्ण ने भी योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर उत्तर प्रदेश के वसूली कांड की जानकारी दी थी. उस राज्य के सात बड़े आईपीएस अधिकारी इस वसूली के रैकेट में किस तरह से शामिल हैं, यह सामने लाया. उन पत्रों को कचरे की टोकरी में डाल दिया गया और भट तथा वैभव कृष्ण के खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई. यह हमारे विपक्ष के नेता को समझ लेना चाहिए. महाराष्ट्र की घटनाओं पर सबसे ज्यादा चर्चा दिल्ली में हुई क्योंकि फडणवीस बार-बार दिल्ली जाकर पत्रकार वार्ता कर रहे थे. इससे केंद्र सरकार महाराष्ट्र पर राष्ट्रपति शासन लगाने वाली है, ऐसा माहौल दिल्ली की मीडिया ने तैयार किया, जो कि पूरी तरह से गलत साबित हुआ. विपक्ष के नेता बार-बार दिल्ली जाकर क्या करते हैं, यह सवाल है. फडणवीस दिल्ली नहीं गए होते तो प्रकरण की गरमी बरकरार रही होती.'

राज्यपाल की भूमिका
'महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने इस पूरे दौर में निश्चित तौर पर क्या किया? एंटालिया व परमबीर सिंह लेटर प्रकरण के कारण तो यह सरकार जाएगी ही, वह ऐसी उम्मीद वे लगाए बैठे थे. उस पर भी पानी फिर गया. एक बार फिर महाराष्ट्र के भाजपाई नेता आए दिन राज्यपाल से मिल रहे हैं. सरकार की बर्खास्तगी की मांग कर रहे हैं, इससे राजभवन की प्रतिष्ठा भी कलंकित हुई. राज्यपाल को जिन बारह विधायकों को मनोनीत करना है उनकी सूची सरकार ने राज्यपाल को भेजी है, इसे छह महीने हो गए हैं. परंतु राज्यपाल कोश्यारी ठाकरे सरकार के जाने का इंतजार कर रहे हैं यह संविधान का उल्लंघन है. अनिल देशमुख, वाझे, परमबीर सिंह के पत्र के घालमेल में सरकार का पांव निश्चित तौर पर फंसा. वह दोबारा न फंसे. अधिकारियों ने सरकार को मुश्किल में डाला. वाझे नामक एक सामान्य पुलिस अधिकारी, रश्मि शुक्ला नामक वरिष्ठ आईपीएस. परमबीर सिंह उनसे भी वरिष्ठ. अधिकारियों पर निर्भर रहने का परिणाम राज्य सरकार भुगत रही है. अपने ही पसंदीदा अधिकारियों की नियुक्ति की प्रथा नए सिरे से शुरू हुई. ये पसंदीदा अधिकारी ही डुबने की वजह बने!'

मुंबई : उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के बाहर विस्फोटक मिलने से शुरू हुआ मामला उलझता जा रहा है. मुंबई पुलिस के पूर्व आयुक्त के विवादित पत्र के बाद से महाराष्ट्र सरकार पर संकट मंडरा रहा है. मामले को लेकर विपक्ष ने महा विकास अघाड़ी को घेर रखा है. इस बीच शिवसेना के मुखपत्र सामना में छपे एक लेख के माध्यम से निशाना साधा गया है

लेख कुछ इस प्रकार है-
'विगत कुछ महीनों में जो कुछ हुआ उसके कारण महाराष्ट्र के चरित्र पर सवाल खड़े किए गए. वाझे नामक सहायक पुलिस निरीक्षक का इतना महत्व कैसे बढ़ गया? यही जांच का विषय है. गृहमंत्री ने वाझे को 100 करोड़ रुपए वसूलने का टार्गेट दिया था, ऐसा आरोप मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह लगा रहे हैं. उन आरोपों का सामना करने के लिए प्रारंभ में कोई भी आगे नहीं आया! सरकार के पास 'डैमेज कंट्रोल' की कोई योजना नहीं है, ये एक बार फिर नजर आया.'

'महाराष्ट्र के एक मंत्री संजय राठौड़ को नैतिकता के मुद्दे पर इस्तीफा देना पड़ा. वह प्रकरण शांत नहीं हुआ, तभी मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह द्वारा गृहमंत्री अनिल देशमुख पर 100 करोड़ की वसूली का आरोप लगाने का मामला आज भी खलबली मचा रहा है. परमबीर सिंह के आरोपों के कारण अनिल देशमुख को गृहमंत्री के पद से जाना होगा व सरकार डगमगाएगी, ऐसा माहौल तैयार हो गया था, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. इसके बावजूद देशभर में इस प्रकरण पर चर्चा हुई और महाराष्ट्र की बदनामी हुई!'

सरकार गिराने की जल्दबाजी
'महाराष्ट्र के विपक्ष को ठाकरे सरकार को गिराने की जल्दबाजी है. उनके आरोप प्रारंभ में जोरदार लगते हैं बाद में वे झूठ सिद्ध होते हैं. परंतु ऐसे आरोपों के कारण सरकार गिरने लगी तो केंद्र की मोदी सरकार को सबसे पहले जाना होगा. महाराष्ट्र में पिछले सप्ताह क्या हुआ?'

'मनसुख हिरेन व एंटालिया विस्फोटक मामले में राज्य सरकार ने परमबीर सिंह का तबादला कर दिया. सिंह एक महत्वाकांक्षी अधिकारी हैं. होमगार्ड महासंचालक के पद पर की गई बदली वे सह नहीं सके. उनकी उस अवस्था में तेल डाला गृहमंत्री देशमुख ने. पुलिस आयुक्त ने गलतियां कीं इसलिए उन्हें जाना पड़ा, ऐसा एक बयान देशमुख द्वारा देते ही परमबीर सिंह ने 100 करोड़ की वसूली का टार्गेट गृहमंत्री ने वैâसे दिया था, ऐसा पत्र बम फोड़ दिया.'

दुर्घटनावश गृहमंत्री बने देशमुख
देशमुख को गृहमंत्री का पद दुर्घटनावश मिल गया. जयंत पाटील, दिलीप वलसे-पाटील ने गृहमंत्री का पद स्वीकार करने से मना कर दिया था. तब यह पद शरद पवार ने देशमुख को सौंपा. इस पद की एक गरिमा व रुतबा है. खौफ भी है. आर.आर. पाटील की गृहमंत्री के रूप में कार्य पद्धति की तुलना आज भी की जाती है. संदिग्ध व्यक्ति के घेरे में रहकर राज्य के गृहमंत्री पद पर बैठा कोई भी व्यक्ति काम नहीं कर सकता है. पुलिस विभाग पहले ही बदनाम है. उस पर ऐसी बातों से संदेह बढ़ता है.

'अनिल देशमुख ने कुछ वरिष्ठ अधिकारियों से बेवजह पंगा लिया. गृहमंत्री को कम-से-कम बोलना चाहिए. बेवजह सामने जाना और जांच का आदेश जारी करना अच्छा नहीं है. सौ सुनार की एक लोहार की ऐसा बर्ताव गृहमंत्री का होना चाहिए. पुलिस विभाग का नेतृत्व सिर्फ सैल्यूट लेने के लिए नहीं होता है. वह प्रखर नेतृत्व देने के लिए होता है. प्रखरता ईमानदारी से तैयार होती है, ये भूलने से कैसे चलेगा?'

'परमबीर सिंह ने जब आरोप लगाया तब गृह विभाग और सरकार की धज्जियां उड़ी. परंतु महाराष्ट्र सरकार के बचाव में एक भी महत्वपूर्ण मंत्री तुरंत सामने नहीं आया. चौबीस घंटे गड़बड़ी का माहौल बना रहा. लोगों को परमबीर का आरोप प्रारंभ में सही लगा इसकी वजह सरकार के पास डैमेज कंट्रोल के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी. एक वसूलीबाज पुलिस अधिकारी का बचाव प्रारंभ में विधान मंडल में किया. उसके बाद परमबीर सिंह के आरोपों का उत्तर देने के लिए कोई तैयार नहीं था और मीडिया पर कुछ समय के लिए विपक्ष ने कब्जा जमा लिया, यह भयंकर था.'

पढ़ें-परमबीर सिंह का इस्तेमाल कर रही भाजपा सरकार : शिवसेना

'परमबीर सिंह द्वारा मुख्यमंत्री को लिखे गए पत्र ने खलबली मचा दी, परंतु उन आरोपों की हवा अब निकल गई है. गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी संजीव भट ने इससे भी भयंकर पत्र गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री को लिखा था. उत्तर प्रदेश के नोएडा के पुलिस अधीक्षक वैभव कृष्ण ने भी योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर उत्तर प्रदेश के वसूली कांड की जानकारी दी थी. उस राज्य के सात बड़े आईपीएस अधिकारी इस वसूली के रैकेट में किस तरह से शामिल हैं, यह सामने लाया. उन पत्रों को कचरे की टोकरी में डाल दिया गया और भट तथा वैभव कृष्ण के खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई. यह हमारे विपक्ष के नेता को समझ लेना चाहिए. महाराष्ट्र की घटनाओं पर सबसे ज्यादा चर्चा दिल्ली में हुई क्योंकि फडणवीस बार-बार दिल्ली जाकर पत्रकार वार्ता कर रहे थे. इससे केंद्र सरकार महाराष्ट्र पर राष्ट्रपति शासन लगाने वाली है, ऐसा माहौल दिल्ली की मीडिया ने तैयार किया, जो कि पूरी तरह से गलत साबित हुआ. विपक्ष के नेता बार-बार दिल्ली जाकर क्या करते हैं, यह सवाल है. फडणवीस दिल्ली नहीं गए होते तो प्रकरण की गरमी बरकरार रही होती.'

राज्यपाल की भूमिका
'महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने इस पूरे दौर में निश्चित तौर पर क्या किया? एंटालिया व परमबीर सिंह लेटर प्रकरण के कारण तो यह सरकार जाएगी ही, वह ऐसी उम्मीद वे लगाए बैठे थे. उस पर भी पानी फिर गया. एक बार फिर महाराष्ट्र के भाजपाई नेता आए दिन राज्यपाल से मिल रहे हैं. सरकार की बर्खास्तगी की मांग कर रहे हैं, इससे राजभवन की प्रतिष्ठा भी कलंकित हुई. राज्यपाल को जिन बारह विधायकों को मनोनीत करना है उनकी सूची सरकार ने राज्यपाल को भेजी है, इसे छह महीने हो गए हैं. परंतु राज्यपाल कोश्यारी ठाकरे सरकार के जाने का इंतजार कर रहे हैं यह संविधान का उल्लंघन है. अनिल देशमुख, वाझे, परमबीर सिंह के पत्र के घालमेल में सरकार का पांव निश्चित तौर पर फंसा. वह दोबारा न फंसे. अधिकारियों ने सरकार को मुश्किल में डाला. वाझे नामक एक सामान्य पुलिस अधिकारी, रश्मि शुक्ला नामक वरिष्ठ आईपीएस. परमबीर सिंह उनसे भी वरिष्ठ. अधिकारियों पर निर्भर रहने का परिणाम राज्य सरकार भुगत रही है. अपने ही पसंदीदा अधिकारियों की नियुक्ति की प्रथा नए सिरे से शुरू हुई. ये पसंदीदा अधिकारी ही डुबने की वजह बने!'

Last Updated : Mar 28, 2021, 3:39 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.