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सामना के संपादकीय में शिवसेना का हमला-गीले अकाल के रास्ते!

फडणवीस 5 साल राज्य के मुख्यमंत्री थे इसलिए राज्य की कृषि संबंधित समस्याओं व आर्थिक दिक्कतों के संदर्भ में उन्हें अच्छी जानकारी है. बाढ़, सूखा, हादसों के मौकों पर विपक्ष ऐसे दौरे करता है तो उसमें राजनीति ही अधिक होती है.

सामना के संपादकीय में शिवसेना का हमला
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Published : Oct 4, 2021, 9:17 AM IST

मुंबई: शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' के संपादकीय में पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर हमला बोला है. सामना में शिवसेना ने लिखा कि महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में मूसलाधार बारिश से किसानों का भारी नुकसान हुआ है. पहले कोकण में महाप्रलय, भूस्खलन जैसी घटनाएं घटीं. इसके बाद उत्तर महाराष्ट्र के जलगांव आदि क्षेत्र जलमग्न हो गए. अब विदर्भ-मराठवाड़ा में बाढ़ जैसे हालातों से किसान पस्त हो गया है. विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस, प्रवीण दरेकर मराठवाड़ा-विदर्भ के बाढ़ग्रस्त इलाकों में गए. उन्होंने किसानों की समस्या सुनीं. इस तरह से विपक्ष ने अपना कर्तव्य निभाया है.

फडणवीस 5 साल राज्य के मुख्यमंत्री थे इसलिए राज्य की कृषि संबंधित समस्याओं व आर्थिक दिक्कतों के संदर्भ में उन्हें अच्छी जानकारी है. बाढ़, सूखा, हादसों के मौकों पर विपक्ष ऐसे दौरे करता है तो उसमें राजनीति ही अधिक होती है. आपदाग्रस्त ऐसे मौकों पर आंसुओं का बांध तोड़कर राहत महसूस करते हैं. तो वहीं विपक्ष उनके आंसुओं का उपयोग सरकार को कटघरे में खड़ा करने के अवसर के रूप में करता है. विपक्ष के नेताओं ने हालात का 'आंखों देखा हाल' देखा व अब इस बारे में उन्हें जो लगता है, वह उनको सरकार से कहना चाहिए.

सामना के संपादकीय में शिवसेना का हमला
सामना के संपादकीय में शिवसेना का हमला

कृषि का नुकसान हुआ ही है. खेतों में, घरों में बाढ़ का पानी भरने से हाहाकार मचा. यह एक तरह से गीला अकाल है और इन तमाम किसानों की तुरंत मदद की जाए ऐसी मांग फडणवीस ने की, जो कि उचित ही है. महाराष्ट्र में बाढ़ की चपेट में आए किसान राजनीति का मुद्दा नहीं हैं. मराठवाड़ा के कई हिस्सों में किसानों के घर, मवेशी बह गए. इंसानों से भरी 'एसटी' बस बह गई. मकान उजड़ गए. बारिश से चूल्हे भी बुझ गए. वहां की जनता की पीड़ा बेचैन करनेवाली है. किसानों की नाराजगी बीमा कंपनियों के खिलाफ है. दो-दो बार फसल का बीमा कराने के बाद भी नुकसान की भरपाई के रूप में किसानों के हाथ फूटी कौड़ी भी नहीं आई.

बीमा कंपनियों की इसी मनमानी के खिलाफ शिवसेना ने आंदोलन किया था और कुछ हिस्सों में बीमा कंपनियों के कार्यालय के शीशे तोड़े थे. उस समय बीमा कंपनियों के अधिकारियों ने शिवसेना के समक्ष घुटने टेकते हुए किसानों की फसल बीमा के दावों का निपटारा करेंगे, ऐसा वचन दिया था, लेकिन आज भी किसानों के हाथ में कुछ नहीं आया है तो सरकार को इन कंपनियों को डंडा दिखाना ही चाहिए. नुकसान का पंचनामा अभी तक नहीं हुआ है. पंचनामा नहीं हुआ, यह बहाना बनाकर बीमा कंपनियों की व सरकारी मदद नकार दी जाती है. सरकारी नियमों के अनुसार फसलों का पंचनामा करना हो तो उपज क्षेत्र की एक बाय एक मीटर की फसल का औसत निकालना होता है.

सोयाबीन फसल का नुकसान हुआ है तो उस फसल की एक बाय एक मीटर क्षेत्र की सोयाबीन का औसत निकाला जाता है. एक वर्ग मीटर में इतना नुकसान हुआ तो एक हेक्टेयर में कितना नुकसान हुआ, इसका प्रमाण तय किया जाता है. इस तरह से फसल के नुकसान का प्रतिशत तय होता है अर्थात 33 फीसदी से ज्यादा नुकसान हुआ होगा तो ही किसान मुआवजे के लिए पात्र होता है. परंतु बीमा कंपनियां और सरकार के प्रतिनिधि बांध से उतरकर पंचनामा नहीं करते इसलिए वास्तविक पंचनामा व सही नुकसान के मामले में गड़बड़ी होती है. प्राकृतिक आपदा के कारण फसल का नुकसान होता है तब फसल बीमा का कवच किसानों के लिए तारणहार साबित होता है. परंतु इस कवच में ही कई सुराख हैं.

मक्का, बाजरा, ज्वार, मूंगफली, सोयाबीन, मूंग आदि फसलों का नुकसान हुआ है. दो महीने पहले कोल्हापुर में आई बाढ़ के कारण किसानों का भारी नुकसान हुआ है, परंतु केंद्रीय निरीक्षण दल समय पर नहीं आया इसलिए किसानों को अभी तक मदद नहीं मिल पाई है. कोल्हापुर के किसान क्या कहते हैं, विपक्ष के नेताओं को यह भी समझना चाहिए. फडणवीस और दरेकर ने कहा कि उनसे कुछ किसानों ने कहा है कि 'हमें अब सिर्फ आपसे ही उम्मीद है.' इसका मतलब ये है कि केंद्र की मोदी सरकार किसानों के आंसू पोंछने में ठाकरे सरकार की खुले हाथों से मदद करे.

फडणवीस दिल्ली जाकर महाराष्ट्र के लिए मदद मांगें व अपने वजन का इस्तेमाल करके राज्य का रुका हुआ पैसा ले आएं. किसान चिंताग्रस्त है ही. संकट आसमानी है व उससे एकजुट होकर लड़ना होगा. 'हमारे मराठवाड़ा क्षेत्र के बाढ़ग्रस्त इलाकों का दौरा सिर्फ प्रशासन को जगाने, किसानों की व्यथा सरकार तक पहुंचाकर प्रशासन से उन्हें मदद दिलाने के लिए है.' ऐसा विपक्ष के नेता श्री फडणवीस ने घोषित किया. इस रचनात्मक भूमिका के लिए उनकी जितनी भी सराहना की जाए, उतना कम है. प्रधानमंत्री मोदी, विरोधियों से हमेशा रचनात्मक भूमिका की अपेक्षा करते हैं. विपक्ष बौद्धिक बेईमानी कर रहा है. राजनीतिक जालसाजी में भी उनके आगे होने का ज्वलंत तर्क श्री मोदी ने हाल ही में दिया था.

विपक्ष लोगों को फंसाए नहीं व गड़बड़ी न करे, ऐसी सलाह प्रधानमंत्री मोदी ने दी. उस आदेश के अनुसार राज्य के विपक्ष ने बर्ताव करने का निर्णय लिया होगा तो उसमें उनका और राज्य का भी हित है, परंतु ऐसा होगा क्या, यह सवाल ही है क्योंकि मराठवाड़ा की बाढ़ के संबंध में एक संयमी भूमिका व्यक्त करनेवाले फडणवीस ने तुरंत ही देगलूर-बिलोली विधानसभा उपचुनाव के उपलक्ष्य में दलीय राजनीति दिखा ही दी. मतलब बाढ़ग्रस्तों को सांत्वना एक 'मुखौटा' था और इसकी आड़ में छिपी राजनीति यह 'चेहरा' था क्या? फडणवीस का बाढ़ग्रस्त इलाकों का दौरा भी आखिर 'वाया गीला अकाल' राजनीति के रूप में ही हुआ, ऐसा कहना चाहिए.

मुंबई: शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' के संपादकीय में पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर हमला बोला है. सामना में शिवसेना ने लिखा कि महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में मूसलाधार बारिश से किसानों का भारी नुकसान हुआ है. पहले कोकण में महाप्रलय, भूस्खलन जैसी घटनाएं घटीं. इसके बाद उत्तर महाराष्ट्र के जलगांव आदि क्षेत्र जलमग्न हो गए. अब विदर्भ-मराठवाड़ा में बाढ़ जैसे हालातों से किसान पस्त हो गया है. विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस, प्रवीण दरेकर मराठवाड़ा-विदर्भ के बाढ़ग्रस्त इलाकों में गए. उन्होंने किसानों की समस्या सुनीं. इस तरह से विपक्ष ने अपना कर्तव्य निभाया है.

फडणवीस 5 साल राज्य के मुख्यमंत्री थे इसलिए राज्य की कृषि संबंधित समस्याओं व आर्थिक दिक्कतों के संदर्भ में उन्हें अच्छी जानकारी है. बाढ़, सूखा, हादसों के मौकों पर विपक्ष ऐसे दौरे करता है तो उसमें राजनीति ही अधिक होती है. आपदाग्रस्त ऐसे मौकों पर आंसुओं का बांध तोड़कर राहत महसूस करते हैं. तो वहीं विपक्ष उनके आंसुओं का उपयोग सरकार को कटघरे में खड़ा करने के अवसर के रूप में करता है. विपक्ष के नेताओं ने हालात का 'आंखों देखा हाल' देखा व अब इस बारे में उन्हें जो लगता है, वह उनको सरकार से कहना चाहिए.

सामना के संपादकीय में शिवसेना का हमला
सामना के संपादकीय में शिवसेना का हमला

कृषि का नुकसान हुआ ही है. खेतों में, घरों में बाढ़ का पानी भरने से हाहाकार मचा. यह एक तरह से गीला अकाल है और इन तमाम किसानों की तुरंत मदद की जाए ऐसी मांग फडणवीस ने की, जो कि उचित ही है. महाराष्ट्र में बाढ़ की चपेट में आए किसान राजनीति का मुद्दा नहीं हैं. मराठवाड़ा के कई हिस्सों में किसानों के घर, मवेशी बह गए. इंसानों से भरी 'एसटी' बस बह गई. मकान उजड़ गए. बारिश से चूल्हे भी बुझ गए. वहां की जनता की पीड़ा बेचैन करनेवाली है. किसानों की नाराजगी बीमा कंपनियों के खिलाफ है. दो-दो बार फसल का बीमा कराने के बाद भी नुकसान की भरपाई के रूप में किसानों के हाथ फूटी कौड़ी भी नहीं आई.

बीमा कंपनियों की इसी मनमानी के खिलाफ शिवसेना ने आंदोलन किया था और कुछ हिस्सों में बीमा कंपनियों के कार्यालय के शीशे तोड़े थे. उस समय बीमा कंपनियों के अधिकारियों ने शिवसेना के समक्ष घुटने टेकते हुए किसानों की फसल बीमा के दावों का निपटारा करेंगे, ऐसा वचन दिया था, लेकिन आज भी किसानों के हाथ में कुछ नहीं आया है तो सरकार को इन कंपनियों को डंडा दिखाना ही चाहिए. नुकसान का पंचनामा अभी तक नहीं हुआ है. पंचनामा नहीं हुआ, यह बहाना बनाकर बीमा कंपनियों की व सरकारी मदद नकार दी जाती है. सरकारी नियमों के अनुसार फसलों का पंचनामा करना हो तो उपज क्षेत्र की एक बाय एक मीटर की फसल का औसत निकालना होता है.

सोयाबीन फसल का नुकसान हुआ है तो उस फसल की एक बाय एक मीटर क्षेत्र की सोयाबीन का औसत निकाला जाता है. एक वर्ग मीटर में इतना नुकसान हुआ तो एक हेक्टेयर में कितना नुकसान हुआ, इसका प्रमाण तय किया जाता है. इस तरह से फसल के नुकसान का प्रतिशत तय होता है अर्थात 33 फीसदी से ज्यादा नुकसान हुआ होगा तो ही किसान मुआवजे के लिए पात्र होता है. परंतु बीमा कंपनियां और सरकार के प्रतिनिधि बांध से उतरकर पंचनामा नहीं करते इसलिए वास्तविक पंचनामा व सही नुकसान के मामले में गड़बड़ी होती है. प्राकृतिक आपदा के कारण फसल का नुकसान होता है तब फसल बीमा का कवच किसानों के लिए तारणहार साबित होता है. परंतु इस कवच में ही कई सुराख हैं.

मक्का, बाजरा, ज्वार, मूंगफली, सोयाबीन, मूंग आदि फसलों का नुकसान हुआ है. दो महीने पहले कोल्हापुर में आई बाढ़ के कारण किसानों का भारी नुकसान हुआ है, परंतु केंद्रीय निरीक्षण दल समय पर नहीं आया इसलिए किसानों को अभी तक मदद नहीं मिल पाई है. कोल्हापुर के किसान क्या कहते हैं, विपक्ष के नेताओं को यह भी समझना चाहिए. फडणवीस और दरेकर ने कहा कि उनसे कुछ किसानों ने कहा है कि 'हमें अब सिर्फ आपसे ही उम्मीद है.' इसका मतलब ये है कि केंद्र की मोदी सरकार किसानों के आंसू पोंछने में ठाकरे सरकार की खुले हाथों से मदद करे.

फडणवीस दिल्ली जाकर महाराष्ट्र के लिए मदद मांगें व अपने वजन का इस्तेमाल करके राज्य का रुका हुआ पैसा ले आएं. किसान चिंताग्रस्त है ही. संकट आसमानी है व उससे एकजुट होकर लड़ना होगा. 'हमारे मराठवाड़ा क्षेत्र के बाढ़ग्रस्त इलाकों का दौरा सिर्फ प्रशासन को जगाने, किसानों की व्यथा सरकार तक पहुंचाकर प्रशासन से उन्हें मदद दिलाने के लिए है.' ऐसा विपक्ष के नेता श्री फडणवीस ने घोषित किया. इस रचनात्मक भूमिका के लिए उनकी जितनी भी सराहना की जाए, उतना कम है. प्रधानमंत्री मोदी, विरोधियों से हमेशा रचनात्मक भूमिका की अपेक्षा करते हैं. विपक्ष बौद्धिक बेईमानी कर रहा है. राजनीतिक जालसाजी में भी उनके आगे होने का ज्वलंत तर्क श्री मोदी ने हाल ही में दिया था.

विपक्ष लोगों को फंसाए नहीं व गड़बड़ी न करे, ऐसी सलाह प्रधानमंत्री मोदी ने दी. उस आदेश के अनुसार राज्य के विपक्ष ने बर्ताव करने का निर्णय लिया होगा तो उसमें उनका और राज्य का भी हित है, परंतु ऐसा होगा क्या, यह सवाल ही है क्योंकि मराठवाड़ा की बाढ़ के संबंध में एक संयमी भूमिका व्यक्त करनेवाले फडणवीस ने तुरंत ही देगलूर-बिलोली विधानसभा उपचुनाव के उपलक्ष्य में दलीय राजनीति दिखा ही दी. मतलब बाढ़ग्रस्तों को सांत्वना एक 'मुखौटा' था और इसकी आड़ में छिपी राजनीति यह 'चेहरा' था क्या? फडणवीस का बाढ़ग्रस्त इलाकों का दौरा भी आखिर 'वाया गीला अकाल' राजनीति के रूप में ही हुआ, ऐसा कहना चाहिए.

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