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कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष पद का चुनाव हारे, लेकिन बहुतों का दिल जीते शशि थरूर

कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष का चयन हो चुका है और अब पार्टी के कप्तान मल्लिकार्जुन खड़गे होंगे. लेकिन इस चुनाव के दूसरे उम्मीदवार शशि थरूर चुनाव तो हार गए, लेकिन कई लोगों का दिल जीत लिया. यहां हम आपको बताने जा रहे हैं शशि थरूर के राजनीतिक सफर के बारे में...

शशि थरूर
शशि थरूर
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Published : Oct 19, 2022, 5:18 PM IST

नयी दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष पद (Congress Party President) के चुनावी मुकाबले में शशि थरूर (Shashi Tharoor) भले ही हार गए, लेकिन उन्होंने अपने चुनावी अभियान और प्रयासों से बहुत सारे लोगों का दिल जीत लिया. जीत और हार के संदर्भ में इस चुनाव का नतीजा वही रहा, जिसकी पहले ही संभावना जताई जा रही थी. मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) जीते और 7897 वोट हासिल किए. थरूर चुनाव हार गए, लेकिन 1,072 वोट हासिल कर बहुत सारे लोगों को चौंका दिया.

कई किताबों के लेखक, संयुक्त राष्ट्र के पूर्व राजनयिक और 83 लाख से अधिक फॉलोअर के साथ सोशल मीडिया की सबसे लोकप्रिय हस्तियों में शुमार थरूर ने वास्तव में यह साबित किया है कि वह किसी 'क्वॉकरवोज़र' (कठपुतली के लिए प्रयुक्त राजनीतिक शब्दावली) के बिल्कुल विपरीत हैं और स्वतंत्र सोच वाले एक ऐसे व्यक्ति हैं, जो अपनी शर्तों पर चलता है. मौजूदा समय में 66 वर्षीय थरूर कांग्रेस में एक बागी नेता के रूप में देखे जाते हैं. वह 2020 में पार्टी संगठन में बड़े पैमाने पर सुधार की मांग को लेकर सोनिया गांधी को पत्र लिखने वाले 'जी-23' समूह के नेताओं में शामिल रहे.

थरूर ने पिछले दिनों 'पीटीआई-भाषा' को दिए विशेष साक्षात्कार में कहा था कि 'कांग्रेस सब कुछ ठीक करने में जितना ज्यादा समय लेगी, हमारे पारंपरिक वोट बैंक के लगातार खिसकने और उसके हमारे राजनीतिक प्रतिस्पर्धियों की ओर आकर्षित होने का जोखिम उतना ही अधिक रहेगा.' उन्होंने कहा था कि 'यही कारण है कि मैं लंबे समय से पार्टी के भीतर निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनाव कराने का मुखर समर्थक रहा हूं, जिसमें अध्यक्ष पद का चुनाव भी शामिल है.'

थरूर के पेशेवर सफर पर करीबी नजर रखने वाले लोग दो बात कहते हैं- वह अप्रत्याशित कदम उठाने से नहीं हिचकिचाते और अपने समक्ष मौजूद बाधाओं से विचलित हुए बिना लड़ाई लड़ने को तैयार रहते हैं. वर्ष 1956 में लंदन में जन्मे थरूर ने दिल्ली के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक किया था. वह सेंट स्टीफंस कॉलेज के छात्र संघ के अध्यक्ष भी थे. उन्होंने अमेरिका के मेडफोर्ड स्थित फ्लेचर स्कूल ऑफ लॉ एंड डिप्लोमेसी से स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1978 में वहां से पीएचडी की डिग्री हासिल की.

थरूर ने राजनीतिक रूढ़िवादिता को तोड़ते हुए संयुक्त राष्ट्र में एक सफल राजनयिक के रूप में पहचान बनाई. संयुक्त राष्ट्र में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने शीत युद्ध के बाद शांति बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई और महासचिव के वरिष्ठ सलाहकार के अलावा संचार और सार्वजनिक सूचना के लिए अपर-महासचिव के रूप सेवाएं दीं. वर्ष 2006 में थरूर को संयुक्त राष्ट्र के महासचिव पद के लिए हुए चुनाव में भारत के आधिकारिक उम्मीदवार के रूप में चुना गया था.

पढ़ें: मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए, सोनिया गांधी ने आवास पर पहुंचकर बधाई दी

इस चुनाव में दक्षिण कोरियाई राजनयिक बान की मून ने जीत दर्ज की थी और थरूर कुल सात उम्मीदवारों में दूसरे स्थान पर रहे थे. बड़ी बाधाओं से विचलित हुए बिना कड़ी लड़ाई लड़ने का थरूर का जज्बा पहली बार इसी चुनाव में प्रदर्शित हुआ था. तीन साल बाद वह एक अंतरराष्ट्रीय सिविल सेवक के रूप में सेवानिवृत्त हुए और 2009 में सक्रिय राजनीति में कदम रखते हुए कांग्रेस के टिकट पर पहली बार तिरुवनंतपुरम से सांसद चुने गए.

थरूर का सियासी सफर भले ही 53 साल की उम्र में शुरू हुआ था, लेकिन लोकसभा चुनाव जीतने के बाद उन्होंने एक राजनेता के रूप में लंबी छलांगें लगाईं. कांग्रेस की केरल इकाई के कुछ नेताओं ने थरूर को बाहरी बताते हुए उनकी उम्मीदवारी का विरोध किया था. हालांकि, थरूर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी पर बड़े अंतर से जीत दर्ज करने में कामयाब रहे थे. उन्हें कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री नियुक्त किया गया था.

थरूर राजनीतिक चर्चाओं के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने की कला में माहिर हैं. साल 2013 तक वह ट्विटर पर भारत के सबसे ज्यादा फॉलो किए जाने वाले नेता थे. इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर सबसे ज्यादा फॉलो किए जाने वाले नेता के रूप में थरूर की जगह ले ली. थरूर एक मुखर नेता के रूप में पहचाने जाते हैं, जो अक्सर अपनी राजनीतिक गतिविधियों और ऐसे शब्दों के इस्तेमाल के कारण सुर्खियों में रहते हैं, जिसका अर्थ समझने के लिए शब्दकोष का सहारा लेना पड़ता है. वह गाहे-बगाहे विवादों से भी घिरे रहते हैं.

मिसाल के तौर पर 2009 में अपने राजनीतिक करियर के शुरुआती दिनों में थरूर ने हवाई यात्रा के संबंध में 'कैटल क्लास' टिप्पणी की थी, जिसके लिए उन्हें माफी भी मांगनी पड़ी थी. थरूर पर मंत्री पद पर रहते हुए केरल के कोच्चि शहर की एक क्रिकेट टीम में संदिग्ध दिलचस्पी रखने का आरोप भी लगाया गया था. उन्होंने अप्रैल 2010 में केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था. जनवरी 2014 में थरूर के निजी जीवन में एक दुखद मोड़ आया, जब उनकी पत्नी सुनंदा पुष्कर दिल्ली के एक लक्जरी होटल के एक कमरे में संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाई गई थीं.

दंपति होटल में ठहरा था, क्योंकि उस समय थरूर के सरकारी बंगले का नवीनीकरण किया जा रहा था. बाद में दिल्ली पुलिस ने थरूर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए (एक महिला के पति या उसके पति के रिश्तेदार द्वारा उसके साथ क्रूरता करना) और 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत आरोप तय किए थे. हालांकि, पिछले साल दिल्ली की एक अदालत ने उन्हें इस मामले में बरी कर दिया. साल 2014 में पत्नी की मौत के दुख से गुजर रहे थरूर ने तिरुवनंतपुरम से दूसरी बार लोकसभा चुनाव जीता.

हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर के बीच इस चुनाव में उनकी जीत का अंतर 2009 के 99,998 मतों से घटकर 15,000 वोटों से कुछ अधिक ही रहा था. इसके बाद 2019 में उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार कुम्मनम राजशेखरन को 99,989 मतों के अंतर से हराकर लगातार तीसरी बार तिरुवनंतपुरम सीट पर जीत दर्ज की. जुलाई 2020 में थरूर के खाते में तिरुवनंतपुरम लोकसभा क्षेत्र का सबसे लंबे समय तक प्रतिनिधित्व करने का रिकॉर्ड जुड़ गया.

पढ़ें: मोदी के कबूतर, चीते छोड़ने के बयान पर ओवैसी का तंज, लिखा- और रेपिस्ट...

उन्होंने कांग्रेस के ए चार्ल्स का रिकॉर्ड तोड़ते हुए यह उपलब्धि हासिल की, जिन्होंने 1984 से 1991 के बीच 4,047 दिन तिरुवनंतपुरम लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था. एक सक्रिय सांसद और सदन के सर्वश्रेष्ठ वक्ताओं में शुमार थरूर संसद की विदेश मामलों की स्थायी समिति के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. कुछ समय पहले तक वह वर्तमान में सूचना एवं प्रौद्योगिकी और संचार से जुड़े संसदीय पैनल के अध्यक्ष थे.

हमेशा अपने मन की बात जाहिर करने के लिए जाने जाने वाले थरूर ने समय-समय पर दोहराया है कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को जी-23 समूह के नेताओं द्वारा भेजे गए पत्र का एक हस्ताक्षरकर्ता होने का उनका एकमात्र मकसद पार्टी संगठन में सुधार लाना है. हालांकि, पार्टी के कई नेताओं ने उन्हें बागी के तौर लिया है और गांधी परिवार के कुछ वफादारों ने उन पर समय-समय पर निशाना साधा है. थरूर एक प्रतिष्ठित लेखक भी रहे हैं और उन्होंने 'द ग्रेट इंडियन नॉवेल', 'एन एरा ऑफ डार्कनेस', 'व्हाई आई एम अ हिंदू' और 'द पैराडॉक्सिकल प्राइम मिनिस्टर' सहित लगभग 23 लोकप्रिय किताबें लिखी हैं.

उन्होंने कई प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान भी हासिल किए हैं, जिनमें 'द ग्रेट इंडियन नॉवेल' के लिए यूरेशियन क्षेत्र में वर्ष की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक के लिए राष्ट्रमंडल लेखक पुरस्कार, स्पेन के महाराजा का कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ चार्ल्स तृतीय सम्मान, 'एन एरा ऑफ डार्कनेस' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार और फ्रांस का शेवेलियर दि ला लीजियन दि'ऑनर शामिल है. कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में थरूर के संघर्ष का सार उर्दू शायर मजरूह सुल्तानपुरी के इस शेर में छुपा हुआ है:

'मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया.' शशि थरूर ने बीते हफ्ते ये शेर खुद ट्वीट किया था.

नयी दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष पद (Congress Party President) के चुनावी मुकाबले में शशि थरूर (Shashi Tharoor) भले ही हार गए, लेकिन उन्होंने अपने चुनावी अभियान और प्रयासों से बहुत सारे लोगों का दिल जीत लिया. जीत और हार के संदर्भ में इस चुनाव का नतीजा वही रहा, जिसकी पहले ही संभावना जताई जा रही थी. मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) जीते और 7897 वोट हासिल किए. थरूर चुनाव हार गए, लेकिन 1,072 वोट हासिल कर बहुत सारे लोगों को चौंका दिया.

कई किताबों के लेखक, संयुक्त राष्ट्र के पूर्व राजनयिक और 83 लाख से अधिक फॉलोअर के साथ सोशल मीडिया की सबसे लोकप्रिय हस्तियों में शुमार थरूर ने वास्तव में यह साबित किया है कि वह किसी 'क्वॉकरवोज़र' (कठपुतली के लिए प्रयुक्त राजनीतिक शब्दावली) के बिल्कुल विपरीत हैं और स्वतंत्र सोच वाले एक ऐसे व्यक्ति हैं, जो अपनी शर्तों पर चलता है. मौजूदा समय में 66 वर्षीय थरूर कांग्रेस में एक बागी नेता के रूप में देखे जाते हैं. वह 2020 में पार्टी संगठन में बड़े पैमाने पर सुधार की मांग को लेकर सोनिया गांधी को पत्र लिखने वाले 'जी-23' समूह के नेताओं में शामिल रहे.

थरूर ने पिछले दिनों 'पीटीआई-भाषा' को दिए विशेष साक्षात्कार में कहा था कि 'कांग्रेस सब कुछ ठीक करने में जितना ज्यादा समय लेगी, हमारे पारंपरिक वोट बैंक के लगातार खिसकने और उसके हमारे राजनीतिक प्रतिस्पर्धियों की ओर आकर्षित होने का जोखिम उतना ही अधिक रहेगा.' उन्होंने कहा था कि 'यही कारण है कि मैं लंबे समय से पार्टी के भीतर निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनाव कराने का मुखर समर्थक रहा हूं, जिसमें अध्यक्ष पद का चुनाव भी शामिल है.'

थरूर के पेशेवर सफर पर करीबी नजर रखने वाले लोग दो बात कहते हैं- वह अप्रत्याशित कदम उठाने से नहीं हिचकिचाते और अपने समक्ष मौजूद बाधाओं से विचलित हुए बिना लड़ाई लड़ने को तैयार रहते हैं. वर्ष 1956 में लंदन में जन्मे थरूर ने दिल्ली के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक किया था. वह सेंट स्टीफंस कॉलेज के छात्र संघ के अध्यक्ष भी थे. उन्होंने अमेरिका के मेडफोर्ड स्थित फ्लेचर स्कूल ऑफ लॉ एंड डिप्लोमेसी से स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1978 में वहां से पीएचडी की डिग्री हासिल की.

थरूर ने राजनीतिक रूढ़िवादिता को तोड़ते हुए संयुक्त राष्ट्र में एक सफल राजनयिक के रूप में पहचान बनाई. संयुक्त राष्ट्र में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने शीत युद्ध के बाद शांति बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई और महासचिव के वरिष्ठ सलाहकार के अलावा संचार और सार्वजनिक सूचना के लिए अपर-महासचिव के रूप सेवाएं दीं. वर्ष 2006 में थरूर को संयुक्त राष्ट्र के महासचिव पद के लिए हुए चुनाव में भारत के आधिकारिक उम्मीदवार के रूप में चुना गया था.

पढ़ें: मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए, सोनिया गांधी ने आवास पर पहुंचकर बधाई दी

इस चुनाव में दक्षिण कोरियाई राजनयिक बान की मून ने जीत दर्ज की थी और थरूर कुल सात उम्मीदवारों में दूसरे स्थान पर रहे थे. बड़ी बाधाओं से विचलित हुए बिना कड़ी लड़ाई लड़ने का थरूर का जज्बा पहली बार इसी चुनाव में प्रदर्शित हुआ था. तीन साल बाद वह एक अंतरराष्ट्रीय सिविल सेवक के रूप में सेवानिवृत्त हुए और 2009 में सक्रिय राजनीति में कदम रखते हुए कांग्रेस के टिकट पर पहली बार तिरुवनंतपुरम से सांसद चुने गए.

थरूर का सियासी सफर भले ही 53 साल की उम्र में शुरू हुआ था, लेकिन लोकसभा चुनाव जीतने के बाद उन्होंने एक राजनेता के रूप में लंबी छलांगें लगाईं. कांग्रेस की केरल इकाई के कुछ नेताओं ने थरूर को बाहरी बताते हुए उनकी उम्मीदवारी का विरोध किया था. हालांकि, थरूर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी पर बड़े अंतर से जीत दर्ज करने में कामयाब रहे थे. उन्हें कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री नियुक्त किया गया था.

थरूर राजनीतिक चर्चाओं के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने की कला में माहिर हैं. साल 2013 तक वह ट्विटर पर भारत के सबसे ज्यादा फॉलो किए जाने वाले नेता थे. इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर सबसे ज्यादा फॉलो किए जाने वाले नेता के रूप में थरूर की जगह ले ली. थरूर एक मुखर नेता के रूप में पहचाने जाते हैं, जो अक्सर अपनी राजनीतिक गतिविधियों और ऐसे शब्दों के इस्तेमाल के कारण सुर्खियों में रहते हैं, जिसका अर्थ समझने के लिए शब्दकोष का सहारा लेना पड़ता है. वह गाहे-बगाहे विवादों से भी घिरे रहते हैं.

मिसाल के तौर पर 2009 में अपने राजनीतिक करियर के शुरुआती दिनों में थरूर ने हवाई यात्रा के संबंध में 'कैटल क्लास' टिप्पणी की थी, जिसके लिए उन्हें माफी भी मांगनी पड़ी थी. थरूर पर मंत्री पद पर रहते हुए केरल के कोच्चि शहर की एक क्रिकेट टीम में संदिग्ध दिलचस्पी रखने का आरोप भी लगाया गया था. उन्होंने अप्रैल 2010 में केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था. जनवरी 2014 में थरूर के निजी जीवन में एक दुखद मोड़ आया, जब उनकी पत्नी सुनंदा पुष्कर दिल्ली के एक लक्जरी होटल के एक कमरे में संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाई गई थीं.

दंपति होटल में ठहरा था, क्योंकि उस समय थरूर के सरकारी बंगले का नवीनीकरण किया जा रहा था. बाद में दिल्ली पुलिस ने थरूर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए (एक महिला के पति या उसके पति के रिश्तेदार द्वारा उसके साथ क्रूरता करना) और 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत आरोप तय किए थे. हालांकि, पिछले साल दिल्ली की एक अदालत ने उन्हें इस मामले में बरी कर दिया. साल 2014 में पत्नी की मौत के दुख से गुजर रहे थरूर ने तिरुवनंतपुरम से दूसरी बार लोकसभा चुनाव जीता.

हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर के बीच इस चुनाव में उनकी जीत का अंतर 2009 के 99,998 मतों से घटकर 15,000 वोटों से कुछ अधिक ही रहा था. इसके बाद 2019 में उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार कुम्मनम राजशेखरन को 99,989 मतों के अंतर से हराकर लगातार तीसरी बार तिरुवनंतपुरम सीट पर जीत दर्ज की. जुलाई 2020 में थरूर के खाते में तिरुवनंतपुरम लोकसभा क्षेत्र का सबसे लंबे समय तक प्रतिनिधित्व करने का रिकॉर्ड जुड़ गया.

पढ़ें: मोदी के कबूतर, चीते छोड़ने के बयान पर ओवैसी का तंज, लिखा- और रेपिस्ट...

उन्होंने कांग्रेस के ए चार्ल्स का रिकॉर्ड तोड़ते हुए यह उपलब्धि हासिल की, जिन्होंने 1984 से 1991 के बीच 4,047 दिन तिरुवनंतपुरम लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था. एक सक्रिय सांसद और सदन के सर्वश्रेष्ठ वक्ताओं में शुमार थरूर संसद की विदेश मामलों की स्थायी समिति के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. कुछ समय पहले तक वह वर्तमान में सूचना एवं प्रौद्योगिकी और संचार से जुड़े संसदीय पैनल के अध्यक्ष थे.

हमेशा अपने मन की बात जाहिर करने के लिए जाने जाने वाले थरूर ने समय-समय पर दोहराया है कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को जी-23 समूह के नेताओं द्वारा भेजे गए पत्र का एक हस्ताक्षरकर्ता होने का उनका एकमात्र मकसद पार्टी संगठन में सुधार लाना है. हालांकि, पार्टी के कई नेताओं ने उन्हें बागी के तौर लिया है और गांधी परिवार के कुछ वफादारों ने उन पर समय-समय पर निशाना साधा है. थरूर एक प्रतिष्ठित लेखक भी रहे हैं और उन्होंने 'द ग्रेट इंडियन नॉवेल', 'एन एरा ऑफ डार्कनेस', 'व्हाई आई एम अ हिंदू' और 'द पैराडॉक्सिकल प्राइम मिनिस्टर' सहित लगभग 23 लोकप्रिय किताबें लिखी हैं.

उन्होंने कई प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान भी हासिल किए हैं, जिनमें 'द ग्रेट इंडियन नॉवेल' के लिए यूरेशियन क्षेत्र में वर्ष की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक के लिए राष्ट्रमंडल लेखक पुरस्कार, स्पेन के महाराजा का कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ चार्ल्स तृतीय सम्मान, 'एन एरा ऑफ डार्कनेस' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार और फ्रांस का शेवेलियर दि ला लीजियन दि'ऑनर शामिल है. कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में थरूर के संघर्ष का सार उर्दू शायर मजरूह सुल्तानपुरी के इस शेर में छुपा हुआ है:

'मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया.' शशि थरूर ने बीते हफ्ते ये शेर खुद ट्वीट किया था.

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