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किसान आंदोलन पर राष्ट्रपति से मिलेंगे पवार, मोदी सरकार को दी 'चेतावनी' - राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी

पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा है कि केंद्र सरकार ने अगर कृषि कानूनों पर जारी गतिरोध का जल्द समाधान नहीं किया तो यह आंदोलन देशव्यापी बन सकता है. उन्होंने कहा कि कानून पारित करने में जल्दबाजी की गई है और अब सरकार के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई है. एनसीपी कार्यालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि पवार 9 दिसंबर को राष्ट्रपति कोविंद से भेंट करेंगे.

कृषि कानूनों पर गतिरोध
कृषि कानूनों पर गतिरोध
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Published : Dec 6, 2020, 4:27 PM IST

Updated : Dec 6, 2020, 7:30 PM IST

मुंबई : केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 11 दिनों के किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. दिल्ली हरियाणा सीमा पर सिंघु बॉर्डर और टिकरी बॉर्डर पर जमे किसानों ने 8 दिसंबर को भारत बंद का आह्वान भी किया है. इसी बीच शरद पवार ने केंद्र सरकार को आगाह किया है. उन्होंने कहा है कि अभी आंदोलन में प्रमुख रूप से पंडाब और हरियाणा कि किसान शामिल हैं, लेकिन जल्द ही यह देशव्यापी आंदोलन बन सकता है. एनसीपी की ओर से एक बयान में कहा गया है कि किसानों के आंदोलन के मुद्दे पर पवार 9 दिसंबर को दिल्ली में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलेंगे.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) पवार ने मुंबई में एक बयान में कहा कि जब सरकार संसद से बिल पारिक कराने की तैयारियां कर रही थी, उस समय हमने सरकार से जल्दबाजी न करने की अपील की थी. उन्होंने कहा कि हमने इन विधेयकों को स्थायी संसदीय समिति में भेजने की अपील की थी. उन्होंने कहा कि इन विधेयकों पर विस्तृत चर्चा की जरूरत थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और विधेयकों को जल्दबाजी में पारित कराया गया.

बकौल पवार, सरकार ने कृषि कानूनों को जल्दबाजी में पारित कराया है और अब उनके सामने इसी कारण से समस्या खड़ी हो गई है. उन्होंने कहा कि पंजाब और हरियाणा के किसान गेहूं और धान के मुख्य उत्पादक हैं, और वे विरोध कर रहे हैं. अगर जल्द ही स्थिति का हल नहीं किया गया, तो हम देशभर के किसान उनके साथ प्रदर्शन में शामिल हो सकते हैं.

आज रविवार को कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन का 11वां दिन है. विरोध प्रदर्शन के दौरान किसान नेताओं ने कहा कि सरकार को कानून वापस लेना ही पड़ेगा. किसान यूनियन के प्रतिनिधियों ने सिंघु बॉर्डर पर बैठक भी की. भारतीय पर्यटक परिवहनकर्ता एसोसिएशन (ITTA) और दिल्ली गुड्स ट्रांसपोर्ट असोसिएशन ने 8 दिसंबर को दिल्ली में किसानों के प्रदर्शन का समर्थन करते हुए हड़ताल का आह्वान किया है. ITTA के अध्यक्ष सतीश शेरावत ने कहा कि किसानों के समर्थन में 51 यूनियन हैं.

यह भी पढ़ें: कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध प्रदर्शन का 11वां दिन

हालांकि, किसानों को लेकर केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने कहा, सरकार ने कहा है, एमएसपी जारी रहेगा. हम इसे लिखित में भी दे सकते हैं. मुझे लगता है कि कांग्रेस सरकार (राज्यों में) और विपक्ष किसानों को भड़काने की कोशिश कर रही है. राष्ट्र के किसान इन कानूनों के पक्ष में हैं, लेकिन कुछ राजनीतिक लोग आग में घी डालने की कोशिश कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें: केंद्रीय मंत्री बोले- असली किसान खेत में हैं, विपक्ष कर रहा राजनीति

इससे पहले शनिवार को किसानों के प्रतिनिधियों और केंद्र सरकार के बीच पांचवें दौर की वार्चा हुई. पांचवें दौर की वार्ता में सरकार ने किसानों के लिखित आश्वासन देने की बात कही, लेकिन किसानों ने केवल हां, या ना में जवाब देने को कहा. कृषि मंत्री ने भी किसानों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मुद्दे पर कई बार आश्वस्त किया है, लेकिन किसान कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं. बैठक के बाद 9 दिसंबर को छठे दौर वार्ता करने पर सहमति बनी है.

यह भी पढ़ें: कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध प्रदर्शन का 10वां दिन

गौरतलब है कि किसानों के विरोध प्रदर्शन को ममता बनर्जी ने भी समर्थन दिया है. बीते दिनों उन्होंने एक ट्वीट में कहा था, 'भारत सरकार हर चीज बेच रही है. आप रेलवे, एयर इंडिया, कोयला, बीएसएनएल, बीएचईएल, बैंक, रक्षा इत्यादि को नहीं बेच सकते. गलत नीयत से लाई गई विनिवेश और निजीकरण की नीति वापस लीजिए. हम अपने राष्ट्र के खजाने को भाजपा की व्यक्तिगत संपत्ति नहीं बनने देंगे.'

यह भी पढ़ें: किसान आंदोलन : अमित शाह की अपील, सरकार बातचीत के लिए तैयार

गौरतलब है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने किसानों को वार्ता के लिए आमंत्रित करते हुए कहा था कि सरकार सभी मुद्दों पर बातचीत के लिए तैयार है. उन्होंने गतिरोध खत्म करने और बुराड़ी मैदान में जाने की अपील की थी.

यह भी पढ़ें:

राजद और वाम नेताओं का समर्थन

राजनीतिक पार्टियों ने केंद्रीय कृषि कानून को लेकर अपना स्टैंड बहुत ही साफ नहीं रखा है. चुनाव के दौरान भी इसे नहीं उठाया गया. राजद ने चुनाव प्रचार के दौरान कृषि कानून को माइग्रेशन और बेरोजगारी से जोड़ा. राजद नेता तेजस्वी ने कहा कि क्योंकि 2006 में एपीएमसी एक्ट समाप्त कर दिया गया, इसलिए यहां के किसान चले गए. उन्हें सही कीमत नहीं मिल रही है.

यह भी पढ़ें: किसान नए कृषि कानूनों को पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं : नीति आयोग सदस्य

ताजा विरोध को राजद और वाम नेताओं ने समर्थन दिया है. वाम नेताओं ने कहा कि वे बिहार के किसानों के बीच कृषि कानून को लेकर जागरूकता अभियान चलाएंगे.

कहां से पनपना शुरू हुआ असंतोष

बीते 17 सितंबर को विधेयकों के पारित होने के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि अब किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा, किसान को उत्पाद सीधे बेचने की आजादी मिलेगी. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था भी जारी रहेगी.

यह भी पढ़ें: किसानों से जुड़े विधेयक पर मोदी सरकार के खिलाफ आक्रोश, जानिए पक्ष-विपक्ष

कृषि सुधार विधेयकों को लेकर पीएम मोदी का कहना है कि विपक्ष किसानों को गुमराह कर रहा है. उनके अनुसार इन विधेयकों के पारित हो जाने के बाद किसानों की न सिर्फ आमदनी बढ़ेगी, बल्कि उनके सामने कई विकल्प भी मौजूद होंगे.

मुंबई : केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 11 दिनों के किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. दिल्ली हरियाणा सीमा पर सिंघु बॉर्डर और टिकरी बॉर्डर पर जमे किसानों ने 8 दिसंबर को भारत बंद का आह्वान भी किया है. इसी बीच शरद पवार ने केंद्र सरकार को आगाह किया है. उन्होंने कहा है कि अभी आंदोलन में प्रमुख रूप से पंडाब और हरियाणा कि किसान शामिल हैं, लेकिन जल्द ही यह देशव्यापी आंदोलन बन सकता है. एनसीपी की ओर से एक बयान में कहा गया है कि किसानों के आंदोलन के मुद्दे पर पवार 9 दिसंबर को दिल्ली में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलेंगे.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) पवार ने मुंबई में एक बयान में कहा कि जब सरकार संसद से बिल पारिक कराने की तैयारियां कर रही थी, उस समय हमने सरकार से जल्दबाजी न करने की अपील की थी. उन्होंने कहा कि हमने इन विधेयकों को स्थायी संसदीय समिति में भेजने की अपील की थी. उन्होंने कहा कि इन विधेयकों पर विस्तृत चर्चा की जरूरत थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और विधेयकों को जल्दबाजी में पारित कराया गया.

बकौल पवार, सरकार ने कृषि कानूनों को जल्दबाजी में पारित कराया है और अब उनके सामने इसी कारण से समस्या खड़ी हो गई है. उन्होंने कहा कि पंजाब और हरियाणा के किसान गेहूं और धान के मुख्य उत्पादक हैं, और वे विरोध कर रहे हैं. अगर जल्द ही स्थिति का हल नहीं किया गया, तो हम देशभर के किसान उनके साथ प्रदर्शन में शामिल हो सकते हैं.

आज रविवार को कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन का 11वां दिन है. विरोध प्रदर्शन के दौरान किसान नेताओं ने कहा कि सरकार को कानून वापस लेना ही पड़ेगा. किसान यूनियन के प्रतिनिधियों ने सिंघु बॉर्डर पर बैठक भी की. भारतीय पर्यटक परिवहनकर्ता एसोसिएशन (ITTA) और दिल्ली गुड्स ट्रांसपोर्ट असोसिएशन ने 8 दिसंबर को दिल्ली में किसानों के प्रदर्शन का समर्थन करते हुए हड़ताल का आह्वान किया है. ITTA के अध्यक्ष सतीश शेरावत ने कहा कि किसानों के समर्थन में 51 यूनियन हैं.

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हालांकि, किसानों को लेकर केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने कहा, सरकार ने कहा है, एमएसपी जारी रहेगा. हम इसे लिखित में भी दे सकते हैं. मुझे लगता है कि कांग्रेस सरकार (राज्यों में) और विपक्ष किसानों को भड़काने की कोशिश कर रही है. राष्ट्र के किसान इन कानूनों के पक्ष में हैं, लेकिन कुछ राजनीतिक लोग आग में घी डालने की कोशिश कर रहे हैं.

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इससे पहले शनिवार को किसानों के प्रतिनिधियों और केंद्र सरकार के बीच पांचवें दौर की वार्चा हुई. पांचवें दौर की वार्ता में सरकार ने किसानों के लिखित आश्वासन देने की बात कही, लेकिन किसानों ने केवल हां, या ना में जवाब देने को कहा. कृषि मंत्री ने भी किसानों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मुद्दे पर कई बार आश्वस्त किया है, लेकिन किसान कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं. बैठक के बाद 9 दिसंबर को छठे दौर वार्ता करने पर सहमति बनी है.

यह भी पढ़ें: कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध प्रदर्शन का 10वां दिन

गौरतलब है कि किसानों के विरोध प्रदर्शन को ममता बनर्जी ने भी समर्थन दिया है. बीते दिनों उन्होंने एक ट्वीट में कहा था, 'भारत सरकार हर चीज बेच रही है. आप रेलवे, एयर इंडिया, कोयला, बीएसएनएल, बीएचईएल, बैंक, रक्षा इत्यादि को नहीं बेच सकते. गलत नीयत से लाई गई विनिवेश और निजीकरण की नीति वापस लीजिए. हम अपने राष्ट्र के खजाने को भाजपा की व्यक्तिगत संपत्ति नहीं बनने देंगे.'

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गौरतलब है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने किसानों को वार्ता के लिए आमंत्रित करते हुए कहा था कि सरकार सभी मुद्दों पर बातचीत के लिए तैयार है. उन्होंने गतिरोध खत्म करने और बुराड़ी मैदान में जाने की अपील की थी.

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राजद और वाम नेताओं का समर्थन

राजनीतिक पार्टियों ने केंद्रीय कृषि कानून को लेकर अपना स्टैंड बहुत ही साफ नहीं रखा है. चुनाव के दौरान भी इसे नहीं उठाया गया. राजद ने चुनाव प्रचार के दौरान कृषि कानून को माइग्रेशन और बेरोजगारी से जोड़ा. राजद नेता तेजस्वी ने कहा कि क्योंकि 2006 में एपीएमसी एक्ट समाप्त कर दिया गया, इसलिए यहां के किसान चले गए. उन्हें सही कीमत नहीं मिल रही है.

यह भी पढ़ें: किसान नए कृषि कानूनों को पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं : नीति आयोग सदस्य

ताजा विरोध को राजद और वाम नेताओं ने समर्थन दिया है. वाम नेताओं ने कहा कि वे बिहार के किसानों के बीच कृषि कानून को लेकर जागरूकता अभियान चलाएंगे.

कहां से पनपना शुरू हुआ असंतोष

बीते 17 सितंबर को विधेयकों के पारित होने के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि अब किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा, किसान को उत्पाद सीधे बेचने की आजादी मिलेगी. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था भी जारी रहेगी.

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कृषि सुधार विधेयकों को लेकर पीएम मोदी का कहना है कि विपक्ष किसानों को गुमराह कर रहा है. उनके अनुसार इन विधेयकों के पारित हो जाने के बाद किसानों की न सिर्फ आमदनी बढ़ेगी, बल्कि उनके सामने कई विकल्प भी मौजूद होंगे.

Last Updated : Dec 6, 2020, 7:30 PM IST
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