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Football Wala Gaon फुटबॉल का जोश, जुनून और दीवानियां, यहां हर घर से 1 लड़की नेशनल चैंपियन - विचारपुर में नेशनल फुटबॉल प्लेयर

इन दिनों पूरी दुनिया फुटबॉल फीवर में डूबी हुई है, या यूं कहें कि फुटबॉल वर्ल्ड कप 2022 का रोमांच लोगों के सिर पर चढ़ कर बोल रहा है. भले ही फुटबॉल वर्ल्ड कप में भारत की दावेदारी नहीं है, लेकिन फुटबॉल की दीवानगी या यूं कहें कि फुटबॉल की दीवानियां यहां भी कम नहीं हैं. हम आपको शहडोल के एक ऐसे आदिवासी गांव के बारे में बताने जा रहे हैं जहां सिर्फ फुटबॉल का रोमांच देखने को मिलता है, क्रिकेट का नहीं गांव छोटे-छोटे बच्चे और लड़के ही नहीं यहां कि लड़कियां भी फुटबॉल की दीवानी हैं. ये दिवानगी इस कदर है कि गांव के लगभग हर घर से एक लड़की नेशनल फुटबॉल चैपियन है.

tribal village highest number football player
शहडोल का विचारपुर फुटबॉल वाला गांव
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Published : Nov 30, 2022, 10:14 PM IST

शहडोल। मध्य प्रदेश का आदिवासी बाहुल्य जिला है शहडोल. यहां जिला मुख्यालय से सटा हुआ एक आदिवासी गांव है विचारपुर, जिसकी पहचान सिर्फ और सिर्फ फुटबॉल से है. इस गांव को अगर हर कोई जानता है तो इसलिए की यहां के ग्रामीणों की रग-रग में फुटबॉल का खेल बसता है, इस गांव में आप पहुंचेंगे तो यहां लड़कों को ही नहीं लड़कियों को भी फुटबॉल खेलते पाएंगे. गांव में कोई क्रिकेट नहीं खेलता है और ना ही क्रिकेट के बारे में कोई जानता.

शहडोल का विचारपुर फुटबॉल वाला गांव

हर घर में फुटबॉल के नेशनल प्लेयर: भारत में यूं तो क्रिकेट का बोलबाला है, देश की गली मोहल्ले में आपको क्रिकेट के खेलते हुए बच्चे और युवा मिल जाएंगे, लेकिन शहडोल जिले का विचारपुर गांव एक ऐसा गांव है जहां पर आपको लगभग हर दूसरे घर में मौजूद लड़कियों में कोई एक फुटबॉल की नेशनल प्लेयर है. गांव के ही कुछ खिलाड़ी तो ऐसे हैं कि एक दो नहीं बल्कि 10 से 12 बार नेशनल लेवल पर खेल चुके हैं. छोटे से इस गांव में गर्ल्स और बॉयज मिलाकर 25-30 फुटबॉल के नेशनल प्लेयर हैं.खास बात यह है कि इनमें लड़कियों की संख्या ज्यादा है.

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शहडोल का विचारपुर फुटबॉल वाला गांव

इसलिए है फुटबॉल का क्रेज: विचारपुर गांव में कोई भी युवा खिलाड़ी क्रिकेट खेलना क्यों नहीं चाहता, वो भी इसके बावजूद जब नेशनल लेवल पर फुटबॉल खेलने के बाद भी उन्हें करियर में कोई विशेष सफलता नहीं मिली है. विचारपुर के ही फुटबॉल मैदान में लड़कियों को फुटबॉल की कोचिंग दे रहीं यशोदा सिंह खुद 6 बार नेशनल लेवल पर पार्टिसिपेट कर चुकी हैं, लक्ष्मी 9 बार नेशनल खेल चुकी हैं. इतने नेशनल खेलने के बाद भी उन्हें इसका कोई फायदा नहीं हुआ, बस मेडल और सर्टिफिकेट के अलावा उन्हें कुछ नहीं मिला. यशोदा सिंह तो यह भी कहती हैं कि फुटबॉल में नेशनल खेलने के बावजूद इस खेल में कोई करियर ही नहीं है. इसके बाद भी यहां के लोगों में फुटबॉल का एक अलग ही नशा है और यहां इसके अलावा कोई गेम नहीं खेला जाता. इसकी वजह वे बताती हैं कि यहां के लोगों ने गांव के दूसरे लोगों को भी छोटी उम्र से ही फुटबॉल खेलते देखा है, इसलिए सभी का रुझान फुटबॉल की ही है. यहां फुटबॉल का अलग ही क्रेज है, अलग ही माहौल है, यहां का बच्चा-बच्चा फुटबॉल खेलता है.

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शहडोल का विचारपुर फुटबॉल वाला गांव

Bhopal के नन्हें खिलाड़ियों पर छाया मेसी और रोनाल्डो का जादू, उन्हीं की तरह जर्सी पहनकर खेलते हैं फुटबॉल

यहां क्रिकेट कोई नहीं खेलता: विचारपुर गांव के ही रहने वाले केतराम सिंह जिनकी उम्र 58 साल हो चुकी है वह भी कभी-कभी बच्चों के साथ मैदान पर फुटबॉल खेलने के लिए उतर जाते हैं. केतराम बताते हैं कि अपने समय में वे भी नेशनल खेल चुके हैं और उन्होंने बचपन से ही विचारपुर में फुटबॉल खेलते हुए देखा है. यहां के फुटबॉल खिलाड़ियों का फुटबॉल के प्रति क्रेज इसी से देखा जा सकता है कि उन्हें विशेष सुविधा नहीं मिलती है और ना ही कहीं से कोई आर्थिक मदद मिलती है, गरीब घरों से खिलाड़ी हैं फिर भी वह फुटबॉल के लिए क्रेजी रहते हैं, यहां हर दिन फुटबॉल की प्रैक्टिस होती है. इस गांव में कोई क्रिकेट नहीं खेलता है और ना ही यहां के युवा क्रिकेट खेलना चाहते हैं. केतराम कहते हैं कि अगर यहां के युवाओं को आगे बढ़ाया जाए और उन्हें सही मार्गदर्शन मिले तो आने वाले समय में ये खिलाड़ी देश के लिए बड़े फुटबॉल प्लेयर बन सकते हैं.

लड़के लड़कियां सभी फुटबॉल में माहिर: विचारपुर भले ही आदिवासी गांव है लेकिन यहां की एक खास बात और है कि आदिवासी गांव होने के बाद भी विचारपुर में लड़के हों या लड़कियां फुटबॉल के खेल में सभी साथ साथ हाथ आजमाते हैं. जितनी तादाद में यहां के लड़के फुटबॉल के नेशनल खिलाड़ी हैं उससे ज्यादा तादात में लड़कियां भी फुटबॉल की नेशनल खिलाड़ी हैं. इन लोगों की फुटबॉल के प्रति यही दीवानगी है कि आज भी बड़ी संख्या में लड़कियां फुटबॉल खेलने के लिए रोजाना मैदान में पहुंचती हैं.

शहडोल। मध्य प्रदेश का आदिवासी बाहुल्य जिला है शहडोल. यहां जिला मुख्यालय से सटा हुआ एक आदिवासी गांव है विचारपुर, जिसकी पहचान सिर्फ और सिर्फ फुटबॉल से है. इस गांव को अगर हर कोई जानता है तो इसलिए की यहां के ग्रामीणों की रग-रग में फुटबॉल का खेल बसता है, इस गांव में आप पहुंचेंगे तो यहां लड़कों को ही नहीं लड़कियों को भी फुटबॉल खेलते पाएंगे. गांव में कोई क्रिकेट नहीं खेलता है और ना ही क्रिकेट के बारे में कोई जानता.

शहडोल का विचारपुर फुटबॉल वाला गांव

हर घर में फुटबॉल के नेशनल प्लेयर: भारत में यूं तो क्रिकेट का बोलबाला है, देश की गली मोहल्ले में आपको क्रिकेट के खेलते हुए बच्चे और युवा मिल जाएंगे, लेकिन शहडोल जिले का विचारपुर गांव एक ऐसा गांव है जहां पर आपको लगभग हर दूसरे घर में मौजूद लड़कियों में कोई एक फुटबॉल की नेशनल प्लेयर है. गांव के ही कुछ खिलाड़ी तो ऐसे हैं कि एक दो नहीं बल्कि 10 से 12 बार नेशनल लेवल पर खेल चुके हैं. छोटे से इस गांव में गर्ल्स और बॉयज मिलाकर 25-30 फुटबॉल के नेशनल प्लेयर हैं.खास बात यह है कि इनमें लड़कियों की संख्या ज्यादा है.

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शहडोल का विचारपुर फुटबॉल वाला गांव

इसलिए है फुटबॉल का क्रेज: विचारपुर गांव में कोई भी युवा खिलाड़ी क्रिकेट खेलना क्यों नहीं चाहता, वो भी इसके बावजूद जब नेशनल लेवल पर फुटबॉल खेलने के बाद भी उन्हें करियर में कोई विशेष सफलता नहीं मिली है. विचारपुर के ही फुटबॉल मैदान में लड़कियों को फुटबॉल की कोचिंग दे रहीं यशोदा सिंह खुद 6 बार नेशनल लेवल पर पार्टिसिपेट कर चुकी हैं, लक्ष्मी 9 बार नेशनल खेल चुकी हैं. इतने नेशनल खेलने के बाद भी उन्हें इसका कोई फायदा नहीं हुआ, बस मेडल और सर्टिफिकेट के अलावा उन्हें कुछ नहीं मिला. यशोदा सिंह तो यह भी कहती हैं कि फुटबॉल में नेशनल खेलने के बावजूद इस खेल में कोई करियर ही नहीं है. इसके बाद भी यहां के लोगों में फुटबॉल का एक अलग ही नशा है और यहां इसके अलावा कोई गेम नहीं खेला जाता. इसकी वजह वे बताती हैं कि यहां के लोगों ने गांव के दूसरे लोगों को भी छोटी उम्र से ही फुटबॉल खेलते देखा है, इसलिए सभी का रुझान फुटबॉल की ही है. यहां फुटबॉल का अलग ही क्रेज है, अलग ही माहौल है, यहां का बच्चा-बच्चा फुटबॉल खेलता है.

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शहडोल का विचारपुर फुटबॉल वाला गांव

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यहां क्रिकेट कोई नहीं खेलता: विचारपुर गांव के ही रहने वाले केतराम सिंह जिनकी उम्र 58 साल हो चुकी है वह भी कभी-कभी बच्चों के साथ मैदान पर फुटबॉल खेलने के लिए उतर जाते हैं. केतराम बताते हैं कि अपने समय में वे भी नेशनल खेल चुके हैं और उन्होंने बचपन से ही विचारपुर में फुटबॉल खेलते हुए देखा है. यहां के फुटबॉल खिलाड़ियों का फुटबॉल के प्रति क्रेज इसी से देखा जा सकता है कि उन्हें विशेष सुविधा नहीं मिलती है और ना ही कहीं से कोई आर्थिक मदद मिलती है, गरीब घरों से खिलाड़ी हैं फिर भी वह फुटबॉल के लिए क्रेजी रहते हैं, यहां हर दिन फुटबॉल की प्रैक्टिस होती है. इस गांव में कोई क्रिकेट नहीं खेलता है और ना ही यहां के युवा क्रिकेट खेलना चाहते हैं. केतराम कहते हैं कि अगर यहां के युवाओं को आगे बढ़ाया जाए और उन्हें सही मार्गदर्शन मिले तो आने वाले समय में ये खिलाड़ी देश के लिए बड़े फुटबॉल प्लेयर बन सकते हैं.

लड़के लड़कियां सभी फुटबॉल में माहिर: विचारपुर भले ही आदिवासी गांव है लेकिन यहां की एक खास बात और है कि आदिवासी गांव होने के बाद भी विचारपुर में लड़के हों या लड़कियां फुटबॉल के खेल में सभी साथ साथ हाथ आजमाते हैं. जितनी तादाद में यहां के लड़के फुटबॉल के नेशनल खिलाड़ी हैं उससे ज्यादा तादात में लड़कियां भी फुटबॉल की नेशनल खिलाड़ी हैं. इन लोगों की फुटबॉल के प्रति यही दीवानगी है कि आज भी बड़ी संख्या में लड़कियां फुटबॉल खेलने के लिए रोजाना मैदान में पहुंचती हैं.

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