मदुरई (तमिलनाडु) : मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि सहमति से यौन संबंध बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता है, लेकिन यह देखा गया है कि इसके बाद जो बच्चा पैदा हुआ है वह पीड़ित होता है. अदालत ने एक व्यक्ति को बलात्कार के आरोप से मुक्त करते हुए उसे धोखाधड़ी के आरोप में एक साल की सजा सुनाई और सजा के तीन महीने के भीतर 5 लाख रुपये का जुर्माना भरने का निर्देश दिया. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि जुर्माना राशि किसी भी राष्ट्रीयकृत बैंक में बच्चे के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट के रूप में जमा की जाएगी.
मदुरै बेंच रामनाथपुरम के रहने वाले मलाईसामी की अपील पर सुनवाई कर रही थी. मलाईसामी ने फास्ट ट्रैक महिला कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी, जिसने उसे आईपीसी की धारा 376 और 417 के तहत शादी के वादे पर एक लड़की के साथ बलात्कार करने और उसे गर्भवती करने के आरोप में 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी.
2010 में, मलाइसामी महिला के साथ रिलेशनशिप में था और उसने शादी का वादा करके उसके साथ छह महीने से अधिक समय तक शारीरिक संबंध बनाए. महिला के गर्भवती होने पर मलाइसामी ने शादी करने से इनकार कर दिया, जिसके बाद परिवार ने पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई. मलाइसामी पर आईपीसी की धारा 376 के तहत बलात्कार और धारा 417 के तहत धोखाधड़ी और तमिलनाडु महिला उत्पीड़न निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत मामला दर्ज किया गया था. ट्रायल कोर्ट ने उसे तमिलनाडु महिला उत्पीड़न निषेध अधिनियम की धारा 4 से बरी कर दिया, लेकिन उसे आईपीसी की धारा 376 और धारा 417 के तहत दोषी पाया. इस बीच महिला ने बच्चे को जन्म दिया और अहम सबूत के तौर पर डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट कोर्ट में पेश की गई.
हाईकोर्ट के जज जस्टिस आर पोंगियप्पन ने मामले की सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया कि शुरुआत में महिला ने अपनी सहमति दी. एक वयस्क होने के नाते, परिणाम जानते हुए, आरोपी को छह महीने तक शारीरिक संबंध बनाने की अनुमति देने से पता चलता है कि वह आरोपी द्वारा किए गए कथित अपराध के लिए एक सहमति थी.
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अदालत ने कहा कि महिला और आरोपी द्वारा किए गए कृत्य के कारण बच्चा वैध होने का दर्जा खो देता है. इसलिए, पीड़ित बच्चे को मुआवजा दिया जाना चाहिए. अदालत ने कहा, धोखाधड़ी के लिए आईपीसी की धारा 417 के तहत दोषी पाए गए आरोपी मलाइसामी को एक साल के कठोर कारावास की सजा भुगतनी होगी. उसे तीन महीने के भीतर फास्ट ट्रैक महिला न्यायालय के सत्र न्यायाधीश के पास 5 लाख रुपये जमा करने होंगे. सत्र न्यायाधीश को नाबालिग बच्चे के पक्ष में किसी भी राष्ट्रीयकृत बैंक में इस पैसे को फिक्स्ड डिपॉजिट के रूप में जमा करने का निर्देश दिया है.