अमरावती : दुनिया भर में जल संसाधनों (water resources) की कमी मानव अस्तित्व ( human survival) के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर रही है. फिलहाल पानी का इस्तेमाल किफायती हो रहा है और रीसाइक्लिंग पर प्रयोग हो रहे हैं. आंध्र प्रदेश में गुंटूर जिले ( Guntur district in Andhra Pradesh) के वडलामुडी में स्थित विग्नान विश्वविद्यालय (VIGNAN University) ने इस दिशा में एक कदम उठाया है.
विश्वविद्यालय ने प्राकृतिक रूप से पानी को शुद्ध (purify water naturally) करने के लिए एक परियोजना तैयार की. आइए देखें कि परियोजना का महत्व और यह कैसे फायदेमंद है.इस परियोजना के तहत विज्ञान विश्वविद्यालय रोजाना 5 लाख लीटर पानी की खपत करता है.
विश्वविद्यालय प्रशासन ने जल संसाधनों का उपयोग करने के इरादे से एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (sewage treatment plant) तैयार किया है. यहां सीवेज के पानी को तीन चरणों में शुद्ध किया जा रहा है.
परिसर में सभी अपशिष्ट जल को पहले से टैंकों तक पहुंचाने की योजना है. इसके लिए एक लाख लीटर की क्षमता वाले 7 टैंक बनाए गए हैं. इनमें एक के बाद एक टंकी में पानी पहुंच जाता है.
इसी क्रम में पानी में भारी धातुएं और रसायन (heavier metals and chemicals) नीचे तक जाते हैं. इन टैंकों में लाभकारी बैक्टीरिया पहले से जमा होते हैं.
बैक्टीरिया दूषित पदार्थों को अवशोषित करते हैं जो पानी के तल तक पहुंचते हैं. टैंकों में पानी को फिर आसन्न आर्द्रभूमि (adjacent wetlands) में भेजा जाता है. यहां की जमीन करीब 2 फीट गहरी बजरी से भरी हुई है. इसमें सात प्रकार के प्लांट लगाए गए हैं.
इन सभी में विभिन्न प्रकार के रसायनों को जड़ों के माध्यम से अवशोषित करने की प्रकृति भी होती है. हवा को बाहर पंप किया जाता है ताकि प्रक्रिया सुचारू रूप से चल सके.
इस प्रक्रिया को वातन (aeration) कहा जाता है. यह प्रक्रिया पानी से नाइट्रेट्स, सल्फेट्स और लेड जैसे हानिकारक पदार्थों को निकालती है.
वातन प्रक्रिया के दौरान प्लांट द्वारा शुद्ध किया गया सारा पानी खुले टैंक में पहुंच जाता है. यहां पानी के शुद्धिकरण के तीसरे चरण के हिस्से के रूप में ओजोनेशन (ozonation) किया जाता है. जानकारों का कहना है कि इससे पानी पूरी तरह से शुद्ध हो जाता है.
पिछले सीवेज उपचार संयंत्रों के विपरीत, इसे हरित प्रौद्योगिकी विचार (green technology idea) के साथ स्थापित किया गया था. यह बहुत कम बिजली की खपत और बिना कीचड़ के डिजाइन किया गया है. इसके बाद विश्वविद्यालय में विभिन्न स्थानों पर इस्तेमाल होने वाला पानी गुरुत्वाकर्षण के आधार पर प्लांट तक पहुंचता है.
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इसके बाद रिफाइनिंग की प्रक्रिया (refining process) शुरू होती है. यहां केवल मोटरों को वातन प्रक्रिया के लिए काम करने की आवश्यकता होती है. इसके लिए ही बिजली का उपयोग किया जाता है. कॉलेज प्रबंधन का कहना है कि अन्य सभी प्रक्रियाएं स्वाभाविक रूप से होती हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि सिक्वेन्शल बैच रिएक्टर ( Sequential batch reactor) और मैंब्रांस बैच रिएक्टर (Membranes batch reactor) प्रौद्योगिकियों का उपयोग वर्तमान दिनों में कई लोगों द्वारा किया जाता है, लेकिन इससे हमें नुकसान होता है. प्राकृतिक रूप से निर्मित आर्द्र भूमि (Natural constructed wet land) सभी को ज्ञात है. उन्हें पृथ्वी के गुर्दे (earth kidneys ) के रूप में कहा जाता है.
विश्विद्यालय के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के एचओडी डॉ नेरेला रूबेन कहना है कि उन्होंने निर्मित गीली भूमि को उत्तेजित किया और इससे प्रतिदिन 7 लाख लीटर पानी शुद्ध किया जाता है.
वहीं इस बारे में प्रोफेसर डॉ एमवी राजू ने कहा कि सिक्वेन्शल बैच रिएक्टर और मैंब्रांस बैच रिएक्टर प्रौद्योगिकियों के साथ अधिक बिजली की खपत होगी. सीवेज वाटर ट्रीटमेंट प्लांट प्रक्रिया के लिए बहुत कम बिजली की खपत होती है, बिजली की खपत केवल वातन के लिए होती है. कोई उच्च उपकरण और किसी भी रसायन का उपयोग नहीं किया जाता है. जल उपचार पूरी तरह से प्राकृतिक प्रक्रिया से किया जाता है. अच्छी तरह से शुद्ध किए गए पानी में किसी भी तरह के रसायन होने की कोई गुंजाइश नहीं है. ऐसे में पानी का इस्तेमाल घरेलू कामों में किया जा सकता है.