ETV Bharat / bharat

मोदी से पहले इन प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल का सातवां वर्ष रहा चुनौतीपूर्ण

जनता के लोकप्रिय रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल का सातवां साल विवादों से घिरा रहा. सिर्फ नरेंद्र मोदी ही नहीं, बल्कि भारत के कुछ अन्य प्रधानमंत्रियों के लिए भी सातवां साल चुनौतीपूर्ण के साथ कहीं न कहीं विवादों से घिरा रहा है. आइए जानते हैं वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की इस रिपोर्ट में...

author img

By

Published : May 27, 2021, 9:38 PM IST

Updated : May 28, 2021, 1:41 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

नई दिल्ली : साल 2014 में 26 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के प्रधानमंत्री की शपथ ली थी और इससे पहले बीजेपी को इतनी भारी संख्या में सीटें लोकसभा चुनाव में कभी नहीं मिली थीं. यह सिलसिला 2019 में भी जारी रहा और जनता ने नरेंद्र मोदी के प्रति और भी ज्यादा विश्वास जताते हुए 2014 से भी ज्यादा सीटें बीजेपी को दीं. बीजेपी को ये सीटें सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर ही मिली थीं.

सुदेश वर्मा

अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छह साल के कार्यकाल को देखा जाए तो पार्टी को गिनाने के लिए उपलब्धियां ही उपलब्धियां थीं, मगर पिछले एक साल के कार्यकाल को देखें तो प्रधानमंत्री की सारी दिक्कतें सातवें साल में ही शुरू हुईं.

देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने त्राहिमाम मचा दी. हालांकि इससे पहले तक मोदी को एक अच्छा प्रशासक माना जाता रहा था. मगर कोरोना की दूसरी लहर ने कहीं न कहीं मोदी की इमेज पर भी सवालिया निशान खड़ा कर दिया.

राष्ट्रीय मीडिया ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मोदी सरकार की जमकर खिंचाई की गई. अब तक जो अंतरराष्ट्रीय मीडिया उन्हें मजबूत प्रधानमंत्री और प्रशासक के तौर पर लिखता आ रहा था, उसने भी प्रधानमंत्री मोदी के ऊपर कोरोना की दूसरी लहर को नजरअंदाज करने और पश्चिम बंगाल में चुनावी रैली करने का आरोप लगाया.

जबकि इससे पहले तक नरेंद्र मोदी के नाम की चर्चा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही थी और महामारी की पहली लहर में अमेरिका जैसे देशों को भी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन जैसी दवाइयां भारत की ओर से उपलब्ध कराया जाना एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही थी, लेकिन यह उपलब्धियां कोरोना के दूसरी लहर यानी सरकार के सातवें साल में आते आते त्राहिमाम हो गईं.

सिर्फ मीडिया ही नहीं बल्कि सोशल मीडिया पर भी विश्लेषकों और विपक्षी पार्टियों ने लामबंद होकर प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया करनी शुरू कर दी और इस बार सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऊपर सवाल उठाए गए.

2014 के बाद पहली बार मोदी की क्षमता पर उठे सवाल
सातवें साल में एनडीए सरकार और प्रधानमंत्री की इमेज की जमकर फजीहत हुई. विपक्ष की ओर से कभी चीन और गलवान घाटी के विवाद को लेकर संसद में सवाल उठाए गए और सीधे-सीधे नरेंद्र मोदी की विदेश नीति पर सवाल किया गया. तो कभी किसान आंदोलन को लेकर सरकार की संवेदनहीनता और प्रधानमंत्री की चुप्पी पर विपक्ष चीख चीख कर सवाल करता रहा.

रही सही कसर टि्वटर और व्हॉट्सएप विवाद ने पूरी कर दी, जिसको लेकर विपक्षी पार्टियों ने मोदी सरकार पर तानाशाह होने और अभिव्यक्ति की आजादी छीनने का आरोप लगाया.

खुद को सशक्त प्रशासक और जनता के सेवादार कहने वाले नरेंद्र मोदी की छवि को न सिर्फ राष्ट्रीय मीडिया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी नुकसान पहुंचाई. जिसे लेकर सत्ताधारी पार्टी काफी चिंतित भी नजर आई और लगातार पार्टी के नेता यह आरोप लगाते रहे कि विपक्ष अंतरराष्ट्रीय मीडिया के साथ मिलकर प्रधानमंत्री की छवि बिगाड़ने की हरसंभव कोशिश कर रहा है और इसमें अंतरराष्ट्रीय मीडिया को फंड भी आवंटित किए गए हैं.

चीन और गलवान घाटी विवाद, कोरोना महामारी में कुप्रबंधन और किसान आंदोलन में प्रधानमंत्री की भूमिका को लेकर तमाम सवाल किए गए और इसके बाद पश्चिम बंगाल के चुनाव में बीजेपी की हार ने रही सही कसर पूरी कर दी.

अन्य प्रधानमंत्रियों का सातवां साल रहा चुनौतीपूर्ण
कुल मिलाकर देखा जाए तो प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी का सातवां साल विवादों में घिरा रहा, लेकिन ऐसा नहीं है कि सातवें साल में सिर्फ मोदी ही परेशान रहे. इतिहास के पन्नों को पलट कर देखा जाए तो देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल का सातवां साल भी चुनौतियों से भरा था. नेहरू जब 1947 में पहले प्रधानमंत्री बने, उसके बाद सातवें साल में चीन ने तिब्बत पर हमला कर दिया था और नेहरू इसपर चुप रहे, जिस पर संसद में विपक्षी दलों ने काफी हंगामा किया.

इसी तरह पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल के सातवें साल में 12 जून, 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उनके 1971 के निर्वाचन को रद्द कर दिया था और इस के बाद देश में जेपी मूवमेंट की शुरुआत हुई, और 1975 में ही जून में देश में इमरजेंसी लगा दी गई, जिसे आज भी कांग्रेस के लिए काला अध्याय के तौर पर देखा जाता है.

इसी तरह पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के भी सातवें साल के कार्यकाल तक उनकी फजीहत शुरू हो गई थी. कभी कैग की रिपोर्ट तो कभी निर्भया कांड, यही नहीं कांग्रेस ने लोकपाल के मुद्दे के बाद मनमोहन सिंह का साथ देना छोड़ दिया था और वह एक बेहद कमजोर प्रधानमंत्री की छवि में घिरते जा रहे थे.

इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी अगर कहा जाए तो उनके कार्यकाल का सातवां साल चुनौतीपूर्ण रहा है. हालांकि सत्ताधारी पार्टी इस बात को मानने के लिए कतई तैयार नहीं है. मगर विपक्षी पार्टियां लामबंद होकर यह आरोप लगा रही हैं.

'नरेंद्र मोदी पर सवाल उठाने वाले तथ्य से अनजान'
इस बाबत जब भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुदेश वर्मा से ईटीवी भारत ने सवाल किया तो उनका कहना है कि जो लोग नरेंद्र मोदी को कटघरे में खड़े करने का प्रयास कर रहे हैं वह लोग तथ्य से अनजान हैं. यदि लोग तथ्य देखें तो पिछले सात साल की बात नहीं करूंगा, क्योंकि यदि बीजेपी पिछले सात साल की बात करती है तो हर उन चीजों पर बात करना पड़ेगा जो पिछली सरकारों ने नहीं किया.

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने कोरोना वायरस को लेकर किस तरह से काम किया और किस तरह से देश को तैयार किया, यह सभी जानते हैं. इस महामारी में अमेरिका जैसे देश का भी इंफ्रास्ट्रक्चर चरमरा गया था. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 80 करोड़ लोगों को इस महामारी के दौरान मुफ्त भोजन उपलब्ध करवाया और यह कार्य सरकार ने आठ महीने से शुरू किया हुआ है.

यह भी पढ़ें- पीएम ने की एनडीएचएम की प्रगति की समीक्षा, तेजी से कदम उठाने के दिए निर्देश

बीजेपी प्रवक्ता का कहना है कि दूसरी लहर तीव्र गति से आई थी और इसका किसी को अनुमान नहीं था. हमारे सारे हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर उसके लिए सक्षम नहीं थे और लोगों ने तैयारियां भी नहीं की थीं. फिर भी प्रधानमंत्री ने तमाम सहयोग मुहैया कराने की कोशिश की. ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर विदेशों से मंगाए गए और देश को इसके लिए तैयार किया गया.

उन्होंने कहा कि जो लोग नरेंद्र मोदी को कटघरे में खड़ा करना चाह रहे हैं, उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि भारत आज विश्व में सबसे पहले कोरोना वैक्सीन तैयार करने में सफल हुआ. यह इससे पहले कभी नहीं हुआ था. इसीलिए जो इस तरह प्रधानमंत्री की छवि खराब करने की साजिश कर रहे हैं, उन्हें यह बातें पता होनी चाहिए.

नई दिल्ली : साल 2014 में 26 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के प्रधानमंत्री की शपथ ली थी और इससे पहले बीजेपी को इतनी भारी संख्या में सीटें लोकसभा चुनाव में कभी नहीं मिली थीं. यह सिलसिला 2019 में भी जारी रहा और जनता ने नरेंद्र मोदी के प्रति और भी ज्यादा विश्वास जताते हुए 2014 से भी ज्यादा सीटें बीजेपी को दीं. बीजेपी को ये सीटें सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर ही मिली थीं.

सुदेश वर्मा

अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छह साल के कार्यकाल को देखा जाए तो पार्टी को गिनाने के लिए उपलब्धियां ही उपलब्धियां थीं, मगर पिछले एक साल के कार्यकाल को देखें तो प्रधानमंत्री की सारी दिक्कतें सातवें साल में ही शुरू हुईं.

देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने त्राहिमाम मचा दी. हालांकि इससे पहले तक मोदी को एक अच्छा प्रशासक माना जाता रहा था. मगर कोरोना की दूसरी लहर ने कहीं न कहीं मोदी की इमेज पर भी सवालिया निशान खड़ा कर दिया.

राष्ट्रीय मीडिया ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मोदी सरकार की जमकर खिंचाई की गई. अब तक जो अंतरराष्ट्रीय मीडिया उन्हें मजबूत प्रधानमंत्री और प्रशासक के तौर पर लिखता आ रहा था, उसने भी प्रधानमंत्री मोदी के ऊपर कोरोना की दूसरी लहर को नजरअंदाज करने और पश्चिम बंगाल में चुनावी रैली करने का आरोप लगाया.

जबकि इससे पहले तक नरेंद्र मोदी के नाम की चर्चा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही थी और महामारी की पहली लहर में अमेरिका जैसे देशों को भी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन जैसी दवाइयां भारत की ओर से उपलब्ध कराया जाना एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही थी, लेकिन यह उपलब्धियां कोरोना के दूसरी लहर यानी सरकार के सातवें साल में आते आते त्राहिमाम हो गईं.

सिर्फ मीडिया ही नहीं बल्कि सोशल मीडिया पर भी विश्लेषकों और विपक्षी पार्टियों ने लामबंद होकर प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया करनी शुरू कर दी और इस बार सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऊपर सवाल उठाए गए.

2014 के बाद पहली बार मोदी की क्षमता पर उठे सवाल
सातवें साल में एनडीए सरकार और प्रधानमंत्री की इमेज की जमकर फजीहत हुई. विपक्ष की ओर से कभी चीन और गलवान घाटी के विवाद को लेकर संसद में सवाल उठाए गए और सीधे-सीधे नरेंद्र मोदी की विदेश नीति पर सवाल किया गया. तो कभी किसान आंदोलन को लेकर सरकार की संवेदनहीनता और प्रधानमंत्री की चुप्पी पर विपक्ष चीख चीख कर सवाल करता रहा.

रही सही कसर टि्वटर और व्हॉट्सएप विवाद ने पूरी कर दी, जिसको लेकर विपक्षी पार्टियों ने मोदी सरकार पर तानाशाह होने और अभिव्यक्ति की आजादी छीनने का आरोप लगाया.

खुद को सशक्त प्रशासक और जनता के सेवादार कहने वाले नरेंद्र मोदी की छवि को न सिर्फ राष्ट्रीय मीडिया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी नुकसान पहुंचाई. जिसे लेकर सत्ताधारी पार्टी काफी चिंतित भी नजर आई और लगातार पार्टी के नेता यह आरोप लगाते रहे कि विपक्ष अंतरराष्ट्रीय मीडिया के साथ मिलकर प्रधानमंत्री की छवि बिगाड़ने की हरसंभव कोशिश कर रहा है और इसमें अंतरराष्ट्रीय मीडिया को फंड भी आवंटित किए गए हैं.

चीन और गलवान घाटी विवाद, कोरोना महामारी में कुप्रबंधन और किसान आंदोलन में प्रधानमंत्री की भूमिका को लेकर तमाम सवाल किए गए और इसके बाद पश्चिम बंगाल के चुनाव में बीजेपी की हार ने रही सही कसर पूरी कर दी.

अन्य प्रधानमंत्रियों का सातवां साल रहा चुनौतीपूर्ण
कुल मिलाकर देखा जाए तो प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी का सातवां साल विवादों में घिरा रहा, लेकिन ऐसा नहीं है कि सातवें साल में सिर्फ मोदी ही परेशान रहे. इतिहास के पन्नों को पलट कर देखा जाए तो देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल का सातवां साल भी चुनौतियों से भरा था. नेहरू जब 1947 में पहले प्रधानमंत्री बने, उसके बाद सातवें साल में चीन ने तिब्बत पर हमला कर दिया था और नेहरू इसपर चुप रहे, जिस पर संसद में विपक्षी दलों ने काफी हंगामा किया.

इसी तरह पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल के सातवें साल में 12 जून, 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उनके 1971 के निर्वाचन को रद्द कर दिया था और इस के बाद देश में जेपी मूवमेंट की शुरुआत हुई, और 1975 में ही जून में देश में इमरजेंसी लगा दी गई, जिसे आज भी कांग्रेस के लिए काला अध्याय के तौर पर देखा जाता है.

इसी तरह पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के भी सातवें साल के कार्यकाल तक उनकी फजीहत शुरू हो गई थी. कभी कैग की रिपोर्ट तो कभी निर्भया कांड, यही नहीं कांग्रेस ने लोकपाल के मुद्दे के बाद मनमोहन सिंह का साथ देना छोड़ दिया था और वह एक बेहद कमजोर प्रधानमंत्री की छवि में घिरते जा रहे थे.

इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी अगर कहा जाए तो उनके कार्यकाल का सातवां साल चुनौतीपूर्ण रहा है. हालांकि सत्ताधारी पार्टी इस बात को मानने के लिए कतई तैयार नहीं है. मगर विपक्षी पार्टियां लामबंद होकर यह आरोप लगा रही हैं.

'नरेंद्र मोदी पर सवाल उठाने वाले तथ्य से अनजान'
इस बाबत जब भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुदेश वर्मा से ईटीवी भारत ने सवाल किया तो उनका कहना है कि जो लोग नरेंद्र मोदी को कटघरे में खड़े करने का प्रयास कर रहे हैं वह लोग तथ्य से अनजान हैं. यदि लोग तथ्य देखें तो पिछले सात साल की बात नहीं करूंगा, क्योंकि यदि बीजेपी पिछले सात साल की बात करती है तो हर उन चीजों पर बात करना पड़ेगा जो पिछली सरकारों ने नहीं किया.

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने कोरोना वायरस को लेकर किस तरह से काम किया और किस तरह से देश को तैयार किया, यह सभी जानते हैं. इस महामारी में अमेरिका जैसे देश का भी इंफ्रास्ट्रक्चर चरमरा गया था. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 80 करोड़ लोगों को इस महामारी के दौरान मुफ्त भोजन उपलब्ध करवाया और यह कार्य सरकार ने आठ महीने से शुरू किया हुआ है.

यह भी पढ़ें- पीएम ने की एनडीएचएम की प्रगति की समीक्षा, तेजी से कदम उठाने के दिए निर्देश

बीजेपी प्रवक्ता का कहना है कि दूसरी लहर तीव्र गति से आई थी और इसका किसी को अनुमान नहीं था. हमारे सारे हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर उसके लिए सक्षम नहीं थे और लोगों ने तैयारियां भी नहीं की थीं. फिर भी प्रधानमंत्री ने तमाम सहयोग मुहैया कराने की कोशिश की. ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर विदेशों से मंगाए गए और देश को इसके लिए तैयार किया गया.

उन्होंने कहा कि जो लोग नरेंद्र मोदी को कटघरे में खड़ा करना चाह रहे हैं, उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि भारत आज विश्व में सबसे पहले कोरोना वैक्सीन तैयार करने में सफल हुआ. यह इससे पहले कभी नहीं हुआ था. इसीलिए जो इस तरह प्रधानमंत्री की छवि खराब करने की साजिश कर रहे हैं, उन्हें यह बातें पता होनी चाहिए.

Last Updated : May 28, 2021, 1:41 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.