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West Bengal News : 80 साल पहले बहन से जुदा हुई थीं माया, अब परिवार से ऐसे मिलीं

अस्सी साल पहले अपनी बहन से बिछड़ी एक महिला हम रेडियो की मदद से अपनी बहन के परिवार के साथ फिर से जुड़ी है. हालांकि बहन की मौत हो चुकी है लेकिन अस्सी साल के बाद इस तरह अपनों से मिलना दिल को सुकून देने वाला है.

Maya Chakraborty with her son
माया चक्रवर्ती अपने बेटे के साथ
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Published : Mar 7, 2023, 6:48 PM IST

कोलकाता: एक ऐसी दुनिया में जो तेजी से राजनीतिक और भौगोलिक सीमाओं से विभाजित हो रही है, अस्सी वर्षीय माया चक्रवर्ती की कहानी बॉर्डर और सीमाओं को पार कर प्रेम और परिवार की शक्ति का एक उदाहरण है.

माया की कहानी 1940 की है जब वह अपनी बहन बीनापानी के साथ बांग्लादेश के शल्यत से कोलकाता आई थी. उन्हें नहीं, पता था कि यह यात्रा उन्हें हमेशा के लिए जुदा कर देगी. बीनापानी (Binapani) के परिवार ने विभाजन के दौरान बांग्लादेश लौटने का फैसला किया, जबकि माया का परिवार नवनिर्मित पश्चिम बंगाल में बस गया.

वीडियो कॉल के जरिए की बात
वीडियो कॉल के जरिए की बात

लगभग अस्सी वर्षों से माया अपनी बहन की तलाश कर रही थीं. आखिरकार अपने बेटे सुवेंदु चक्रवर्ती और हैम रेडियो की मदद से ही वह अंततः बांग्लादेश में अपनी उनको खोजने में सफल रहीं. पश्चिम बंगाल पुलिस के साइबर विभाग में काम करने वाले सुवेंदु ने बांग्लादेश में लोगों तक पहुंचने के लिए अपने पेशेवर कनेक्शन का इस्तेमाल किया, लेकिन कुछ भी काम नहीं आया. बांग्लादेश हम रेडियो (Bangladesh Ham Radio) के सोहेल राणा के संपर्क में आने के बाद ही चीजें ठीक होने लगीं.

माया के बेटे सुवेंदु ने बताया कि 'मेरी मां की आखिरी इच्छा अपनी बहन से मिलने की थी. मैं काफी समय से कोशिश कर रहा था. अपने पेशेवर संपर्कों का उपयोग करते हुए, मैंने बांग्लादेश में लोगों से संपर्क करने की कोशिश की ताकि वे मेरी मौसी को खोजने में हमारी मदद कर सकें लेकिन कुछ भी काम नहीं आया. फिर मैं आखिरकार हम रेडियो के संपर्क में आया और इसने अद्भुत काम किया. मैं अपनी मौसी के परिवार के साथ संपर्क स्थापित करने में सक्षम हुआ.'

हम रेडियो के अंबरीश चक्रवर्ती ने ईटीवी भारत को बताया कि 'मेरा काम आसान नहीं था क्योंकि न तो हमारे पास उनकी कोई तस्वीर थी और न ही कोई पता था. बांग्लादेश हम रेडियो के सोहेल राणा ने हमारी बहुत मदद की. अंत में, कुछ दिन पहले, हम बीनापानी के बेटे रणजीत चक्रवर्ती से संपर्क करने में सक्षम हुए और यह हम सभी के लिए खुशी का क्षण था.'

हालांकि माया की बहन बीनापानी की मौत 15 साल पहले हो गई थी, लेकिन उत्तरी कोलकाता के काशीपुर के चक्रवर्ती परिवार बांग्लादेश के हबीपुर के चक्रवर्ती परिवार के साथ संबंध स्थापित करने में सफल रहे.

सुवेंदु ने कहा 'जब मेरी मां को मौसी की मौत के बारे में पता चला तो वह परेशान हो गईं लेकिन हमने उन्हें यह अहसास कराने की कोशिश की कि यह हमारे लिए बहुत बड़ा क्षण है. आज सुबह मैंने अपने भाई और उसके परिवार से वीडियो कॉलिंग पर बात की. वे भी प्रफुल्लित थे. मेरी मां भी बहुत खुश हैं. मैं खुश हूं क्योंकि मैं अपनी मां की आखिरी इच्छा पूरी कर सका.'

माया की कहानी प्रेम और परिवार की शक्ति का उदाहरण है, जो हमें याद दिलाती है कि जीवन वास्तव में कल्पना से अधिक अजनबी है. एक ऐसी दुनिया में जहां संचार तेजी से स्मार्ट हो गया है, माया चक्रवर्ती की कहानी एक मानचित्र पर खींची गई मनमानी रेखाओं पर मानवीय भावना की विजय का एक दिल को छू लेने वाला उदाहरण है.

पढ़ें- विभाजन के समय बिछड़े थे, 92 वर्षीय सरवन सिंह अब पाकिस्तान में रिश्तेदारों से मिले

कोलकाता: एक ऐसी दुनिया में जो तेजी से राजनीतिक और भौगोलिक सीमाओं से विभाजित हो रही है, अस्सी वर्षीय माया चक्रवर्ती की कहानी बॉर्डर और सीमाओं को पार कर प्रेम और परिवार की शक्ति का एक उदाहरण है.

माया की कहानी 1940 की है जब वह अपनी बहन बीनापानी के साथ बांग्लादेश के शल्यत से कोलकाता आई थी. उन्हें नहीं, पता था कि यह यात्रा उन्हें हमेशा के लिए जुदा कर देगी. बीनापानी (Binapani) के परिवार ने विभाजन के दौरान बांग्लादेश लौटने का फैसला किया, जबकि माया का परिवार नवनिर्मित पश्चिम बंगाल में बस गया.

वीडियो कॉल के जरिए की बात
वीडियो कॉल के जरिए की बात

लगभग अस्सी वर्षों से माया अपनी बहन की तलाश कर रही थीं. आखिरकार अपने बेटे सुवेंदु चक्रवर्ती और हैम रेडियो की मदद से ही वह अंततः बांग्लादेश में अपनी उनको खोजने में सफल रहीं. पश्चिम बंगाल पुलिस के साइबर विभाग में काम करने वाले सुवेंदु ने बांग्लादेश में लोगों तक पहुंचने के लिए अपने पेशेवर कनेक्शन का इस्तेमाल किया, लेकिन कुछ भी काम नहीं आया. बांग्लादेश हम रेडियो (Bangladesh Ham Radio) के सोहेल राणा के संपर्क में आने के बाद ही चीजें ठीक होने लगीं.

माया के बेटे सुवेंदु ने बताया कि 'मेरी मां की आखिरी इच्छा अपनी बहन से मिलने की थी. मैं काफी समय से कोशिश कर रहा था. अपने पेशेवर संपर्कों का उपयोग करते हुए, मैंने बांग्लादेश में लोगों से संपर्क करने की कोशिश की ताकि वे मेरी मौसी को खोजने में हमारी मदद कर सकें लेकिन कुछ भी काम नहीं आया. फिर मैं आखिरकार हम रेडियो के संपर्क में आया और इसने अद्भुत काम किया. मैं अपनी मौसी के परिवार के साथ संपर्क स्थापित करने में सक्षम हुआ.'

हम रेडियो के अंबरीश चक्रवर्ती ने ईटीवी भारत को बताया कि 'मेरा काम आसान नहीं था क्योंकि न तो हमारे पास उनकी कोई तस्वीर थी और न ही कोई पता था. बांग्लादेश हम रेडियो के सोहेल राणा ने हमारी बहुत मदद की. अंत में, कुछ दिन पहले, हम बीनापानी के बेटे रणजीत चक्रवर्ती से संपर्क करने में सक्षम हुए और यह हम सभी के लिए खुशी का क्षण था.'

हालांकि माया की बहन बीनापानी की मौत 15 साल पहले हो गई थी, लेकिन उत्तरी कोलकाता के काशीपुर के चक्रवर्ती परिवार बांग्लादेश के हबीपुर के चक्रवर्ती परिवार के साथ संबंध स्थापित करने में सफल रहे.

सुवेंदु ने कहा 'जब मेरी मां को मौसी की मौत के बारे में पता चला तो वह परेशान हो गईं लेकिन हमने उन्हें यह अहसास कराने की कोशिश की कि यह हमारे लिए बहुत बड़ा क्षण है. आज सुबह मैंने अपने भाई और उसके परिवार से वीडियो कॉलिंग पर बात की. वे भी प्रफुल्लित थे. मेरी मां भी बहुत खुश हैं. मैं खुश हूं क्योंकि मैं अपनी मां की आखिरी इच्छा पूरी कर सका.'

माया की कहानी प्रेम और परिवार की शक्ति का उदाहरण है, जो हमें याद दिलाती है कि जीवन वास्तव में कल्पना से अधिक अजनबी है. एक ऐसी दुनिया में जहां संचार तेजी से स्मार्ट हो गया है, माया चक्रवर्ती की कहानी एक मानचित्र पर खींची गई मनमानी रेखाओं पर मानवीय भावना की विजय का एक दिल को छू लेने वाला उदाहरण है.

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