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सीमेन या सेममैन : टाइप की एक गलती जिसके कारण बरी हो गया यौन अपराधी - जिसके कारण बरी हो गया यौन अपराधी

एक अजीब तरह के मामले में टाइप की एक छोटी सी गलती ने रेप के आरोपी को बरी कर दिया. हालांकि निचली अदालत के फैसले को तमिलनाडु उच्च न्यायालय ने पलट दिया है.

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Published : Jul 17, 2021, 2:12 PM IST

चेन्नई : यह घटना 2017 की है, जब एक मां अपनी दो साल की बेटी को किराने का खरीदने के लिए पड़ोसी के पास छोड़कर गई थी. वापस लौटने पर मां ने पाया कि उस व्यक्ति ने बच्ची के साथ दुष्कर्म किया है जो कि मेडिकल जांच में भी सामने आया.

इस बीच निचली अदालत ने आरोपपत्र में टाइपो त्रुटि के कारण आरोपी को बरी कर दिया. दरअसल, आरोप पत्र में सीमेन यानि (वीर्य) शब्द को सेममेन टाइप कर दिया गया था जिसका अर्थ तमिल में लाल मिट्टी होता है. टाइप की यह गलती आरोपी को लाभ दे गई और परिणामस्वरूप निचली अदालत ने उसे बरी कर दिया.

हालांकि मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस वेलमुरुगन की बेंच ने निचली अदालत के फैसले को पलट दिया और आरोपी को पांच साल कैद की सजा सुनाई है. अदालत ने तमिलनाडु सरकार को पीड़िता को मुआवजे के तौर पर एक लाख रुपये देने का आदेश भी दिया है.

यह भी पढ़ें-हंगामेदार होगा संसद का मॉनसून सत्र, यह प्रमुख मुद्दे हो सकते हैं हावी

उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि अदालतें भी कभी-कभी अपना दिमाग नहीं लगाती हैं और वे केवल संदेह से परे सबूत खोज रहे हैं और जांच में दोष का फायदा उठाकर आरोपी को संदेह का लाभ दे रहे हैं.

चेन्नई : यह घटना 2017 की है, जब एक मां अपनी दो साल की बेटी को किराने का खरीदने के लिए पड़ोसी के पास छोड़कर गई थी. वापस लौटने पर मां ने पाया कि उस व्यक्ति ने बच्ची के साथ दुष्कर्म किया है जो कि मेडिकल जांच में भी सामने आया.

इस बीच निचली अदालत ने आरोपपत्र में टाइपो त्रुटि के कारण आरोपी को बरी कर दिया. दरअसल, आरोप पत्र में सीमेन यानि (वीर्य) शब्द को सेममेन टाइप कर दिया गया था जिसका अर्थ तमिल में लाल मिट्टी होता है. टाइप की यह गलती आरोपी को लाभ दे गई और परिणामस्वरूप निचली अदालत ने उसे बरी कर दिया.

हालांकि मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस वेलमुरुगन की बेंच ने निचली अदालत के फैसले को पलट दिया और आरोपी को पांच साल कैद की सजा सुनाई है. अदालत ने तमिलनाडु सरकार को पीड़िता को मुआवजे के तौर पर एक लाख रुपये देने का आदेश भी दिया है.

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उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि अदालतें भी कभी-कभी अपना दिमाग नहीं लगाती हैं और वे केवल संदेह से परे सबूत खोज रहे हैं और जांच में दोष का फायदा उठाकर आरोपी को संदेह का लाभ दे रहे हैं.

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