चेन्नई : सत्तारूढ़ द्रमुक भले ही सामाजिक न्याय और समानता की अपनी विचारधारा की बात करता हो और सितंबर को द्रविड़ माह के रूप में मना रहा हो, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ अलग है. तमिलनाडु के तिरुचि जिले में हिंदू धार्मिक और धर्मस्व निधि (एचआर एंड सीई) के तहत आने वाले एक मंदिर ने अनुसूचित जाति समुदाय के लोगों को अपने परिसर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी. इस मामले की जमकर आलोचना हो रही है.
तिरुचि जिले के मुसिरी तालुक के सित्तिलारी पंचायत में रहने वाले और अनुसूचित जाति समुदाय के लोगों ने शिकायत की है कि उन्हें महामरीअम्मन मंदिर में पूजा करने की अनुमति नहीं है. समुदाय के लोगों ने आरोप लगाया कि उनके पक्ष में एक अदालत के फैसले के बाद भी उन्हें मंदिर में प्रवेश से वंचित किया जा रहा है.
अनुसूचित जाति समुदाय के एक व्यक्ति पी. मुरुगप्पन ने 14 जुलाई को मंदिर में अनुसूचित जाति समुदाय के लोगों के प्रवेश से इनकार के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ का रुख किया. याचिकाकर्ता ने कहा कि मंदिर मानव संसाधन और सीई विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण में है, लेकिन फिर भी मंदिर के अधिकारी एससी समुदाय के लोगों को प्रवेश करने से रोकते हैं.
अदालत द्वारा समुदाय के पक्ष में फैसला सुनाए जाने के बावजूद भी अनुसूचित जाति समुदाय के स्थानीय लोगों को मंदिर में प्रवेश से वंचित कर दिया गया है. मुरुगप्पन ने कहा, मंदिर के अधिकारी हमें प्रवेश से वंचित कर रहे हैं और इस क्षेत्र में हिंदू जाति का वर्चस्व है. हमें मंदिर में प्रवेश के लिए पुलिस सुरक्षा की आवश्यकता है और हमारे गांव में जातिगत भेदभाव है.
एचआर एंड सीई अधिकारियों ने मुद्दे पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. हालांकि पंचायत अध्यक्ष बी. बालकुमार ने इस बात को स्वीकार किया कि मंदिर में भेदभाव होता है. उन्होंने कहा कि भले ही वह एक सवर्ण हिंदू हैं, लेकिन मंदिर में एससी समुदाय के लोगों के प्रवेश के संबंध में वह बहुत कुछ नहीं कर पाए. उन्होंने कहा कि सभी समुदायों के लोगों ने उन्हें चुना है और वह मंदिर में जातिगत भेदभाव को स्वीकार नहीं करते हैं.
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