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SC verdict on Jallikattu :सुप्रीम कोर्ट ने 'जल्लीकट्टू' को मंजूरी देने वाले कानून की वैधता बरकरार रखी

शीर्ष अदालत ने पहले तमिलनाडु सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें राज्य में जल्लीकट्टू आयोजनों और देश भर में बैलगाड़ी दौड़ में सांडों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने के 2014 के फैसले की समीक्षा की मांग की गई थी. जिसके बाद तमिलनाडु और महाराष्ट्र ने केंद्रीय कानून, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 में संशोधन किया था और क्रमशः जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ को कानूनी रूप से अनुमति दी थी.

SC verdict
प्रतिकात्मक तस्वीर
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Published : May 18, 2023, 8:41 AM IST

Updated : May 18, 2023, 3:56 PM IST

नई दिल्ली : तमिलनाडु और महाराष्ट्र सरकार के कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं की एक समूह पर सुप्रीम कोर्ट आज अपना फैसला सुना दिया है. कोर्ट ने कहा कि जब विधायिका ने घोषणा की है कि जल्लीकट्टू तमिलनाडु राज्य की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है, तो न्यायपालिका अलग दृष्टिकोण नहीं रख सकती है. यह तय करने के लिए विधायिका सबसे उपयुक्त है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारी राय में तमिलनाडु संशोधन अधिनियम अनुच्छेद 51A (g) और (j) के विपरीत नहीं है और संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 का उल्लंघन नहीं करता है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि यह तय करना कोर्ट का काम नहीं है कि क्या जल्लीकट्टू तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है.

पांच न्यायाधीशों की बेंच ने कहा कि हम 2014 के फैसले से असहमत हैं कि जल्लीकेट्टू सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा नहीं है. बता दें कि इन याचिकाओं में तमिलनाडु और महाराष्ट्र सरकार के द्वारा 'जल्लीकट्टू' और बैलगाड़ी दौड़ को अनुमति देने के लिए बनाये गये कानून को चुनौती दी गई थी. जस्टिस केएम जोसेफ, अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, ऋषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार की पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले में अपना फैसला सुनाया.

तमिलनाडु सरकार ने 'जल्लीकट्टू' के आयोजन का बचाव किया है. राज्य सरकार ने शीर्ष अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि खेल का आयोजन एक सांस्कृतिक कार्यक्रम है. सरकार ने कहा कि 'जल्लीकट्टू' के आयोजन में सांडों पर कोई क्रूरता नहीं होती. राज्य ने सु्प्रीम कोर्ट से कहा कि यह एक गलत धारणा है कि 'जल्लीकट्टू' का कोई सांस्कृतिक मूल्य नहीं है क्योंकि यह एक खेल है और इससे लोगों का मनोरंजन होता है. राज्य सरकार ने इस मामले में अपना पक्ष रखते हुए पेरू, कोलंबिया और स्पेन जैसे देशों का उदाहरण दिया.

उन्होंने कहा कि ये देश बुल फाइटिंग को अपनी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा मानते हैं. तमिलनाडु सरकार ने कहा कि 'जल्लीकट्टू' में शामिल होने वाले साढ़ों को किसान सालों की मेहनत से तैयार करते हैं. इससे पहले शीर्ष अदालत ने तमिलनाडु सरकार से पूछा था कि क्या जल्लीकट्टू जैसे खेलों में इंसानों के मनोरंजन के लिए किसी जानवर का इस्तेमाल कितना सही है और सांडों की देशी नस्ल के संरक्षण में यह खेल कैसे मदद करता है.

तमिलनाडु सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि 'जल्लीकट्टू' केवल मनोरंजन साधन नहीं है. यह एक महान ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व वाला आयोजन है.
जल्लीकट्टू का आयोजन पोंगल त्योहार के दौरान अच्छी फसल के लिए देवता को धन्यवाद देने के रूप में किया जाता है. इसके बाद मंदिरों में त्योहार आयोजित किए जाते हैं, जो दर्शाता है कि इस कार्यक्रम का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है.

पढ़ें : तमिलनाडु में जल्लीकट्टू के अलग-अलग आयोजनों में दो की मौत, मुख्यमंत्री ने की मुआवजे की घोषणा

पढ़ें : Tamil Nadu Jallikattu: तमिलनाडु में पोंगल की धूम, जल्लीकट्टू कार्यक्रम के दौरान 19 लोग घायल

(एएनआई)

नई दिल्ली : तमिलनाडु और महाराष्ट्र सरकार के कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं की एक समूह पर सुप्रीम कोर्ट आज अपना फैसला सुना दिया है. कोर्ट ने कहा कि जब विधायिका ने घोषणा की है कि जल्लीकट्टू तमिलनाडु राज्य की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है, तो न्यायपालिका अलग दृष्टिकोण नहीं रख सकती है. यह तय करने के लिए विधायिका सबसे उपयुक्त है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारी राय में तमिलनाडु संशोधन अधिनियम अनुच्छेद 51A (g) और (j) के विपरीत नहीं है और संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 का उल्लंघन नहीं करता है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि यह तय करना कोर्ट का काम नहीं है कि क्या जल्लीकट्टू तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है.

पांच न्यायाधीशों की बेंच ने कहा कि हम 2014 के फैसले से असहमत हैं कि जल्लीकेट्टू सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा नहीं है. बता दें कि इन याचिकाओं में तमिलनाडु और महाराष्ट्र सरकार के द्वारा 'जल्लीकट्टू' और बैलगाड़ी दौड़ को अनुमति देने के लिए बनाये गये कानून को चुनौती दी गई थी. जस्टिस केएम जोसेफ, अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, ऋषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार की पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले में अपना फैसला सुनाया.

तमिलनाडु सरकार ने 'जल्लीकट्टू' के आयोजन का बचाव किया है. राज्य सरकार ने शीर्ष अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि खेल का आयोजन एक सांस्कृतिक कार्यक्रम है. सरकार ने कहा कि 'जल्लीकट्टू' के आयोजन में सांडों पर कोई क्रूरता नहीं होती. राज्य ने सु्प्रीम कोर्ट से कहा कि यह एक गलत धारणा है कि 'जल्लीकट्टू' का कोई सांस्कृतिक मूल्य नहीं है क्योंकि यह एक खेल है और इससे लोगों का मनोरंजन होता है. राज्य सरकार ने इस मामले में अपना पक्ष रखते हुए पेरू, कोलंबिया और स्पेन जैसे देशों का उदाहरण दिया.

उन्होंने कहा कि ये देश बुल फाइटिंग को अपनी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा मानते हैं. तमिलनाडु सरकार ने कहा कि 'जल्लीकट्टू' में शामिल होने वाले साढ़ों को किसान सालों की मेहनत से तैयार करते हैं. इससे पहले शीर्ष अदालत ने तमिलनाडु सरकार से पूछा था कि क्या जल्लीकट्टू जैसे खेलों में इंसानों के मनोरंजन के लिए किसी जानवर का इस्तेमाल कितना सही है और सांडों की देशी नस्ल के संरक्षण में यह खेल कैसे मदद करता है.

तमिलनाडु सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि 'जल्लीकट्टू' केवल मनोरंजन साधन नहीं है. यह एक महान ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व वाला आयोजन है.
जल्लीकट्टू का आयोजन पोंगल त्योहार के दौरान अच्छी फसल के लिए देवता को धन्यवाद देने के रूप में किया जाता है. इसके बाद मंदिरों में त्योहार आयोजित किए जाते हैं, जो दर्शाता है कि इस कार्यक्रम का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है.

पढ़ें : तमिलनाडु में जल्लीकट्टू के अलग-अलग आयोजनों में दो की मौत, मुख्यमंत्री ने की मुआवजे की घोषणा

पढ़ें : Tamil Nadu Jallikattu: तमिलनाडु में पोंगल की धूम, जल्लीकट्टू कार्यक्रम के दौरान 19 लोग घायल

(एएनआई)

Last Updated : May 18, 2023, 3:56 PM IST
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