नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. 16 दिनों तक चली सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ में न्यायमूर्ति एसके कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत शामिल थे.
इस दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, राजीव धवन, गोपाल सुब्रमण्यम, दुष्यंत दवे, जफर शाह, गोपाल शंकरनारायणन ने कोर्ट के सामने याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व किया. वहीं केंद्र का प्रतिनिधित्व अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने किया. इसके अलावा कई हस्तक्षेपकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने भी कोर्ट के समक्ष मामले में अपनी दलीलें पेश कीं.
इसी क्रम में सज्जाद लोने के नेतृत्व वाली जम्मू कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस का प्रतिनिधित्व करने वाले धवन ने तर्क दिया था कि भारत को ऐतिहासिक, कानूनी और संवैधानिक रूप से अपने वादे को तोड़ने से रोक दिया गया. उन्होंने कहा था कि दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने के बाद जम्मू-कश्मीर को आंतरिक संप्रभुता देने के लिए भारत और जम्मू-कश्मीर के संविधान में समवर्ती प्रतिबिंब पाता है. इसमें यह तर्क दिया गया कि अन्य रियासतों के विपरीत, जम्मू-कश्मीर ने विलय समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए जिसके बाद आईओए पर हस्ताक्षर किए गए.
गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने 2 अगस्त को याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें सुनना शुरू किया. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि केंद्र और राज्य के बीच यह सहमति है कि संविधान सभा भविष्य की कार्रवाई तय करेगी कि अनुच्छेद 370 को निरस्त किया जाना चाहिए या नहीं. उन्होंने जोर देकर कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोग भारत के साथ हैं लेकिन एक विशेष संबंध है जो अनुच्छेद 370 में निहित है. शीर्ष अदालत द्वारा मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखने के बाद आज याचिकाकर्ता पक्ष ने जवाबी बहस पूरी की.
वहीं सांसद मोहम्मद अकबर लोन के कथित बयानों को उजागर करने वाले एक हलफनामे पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्याय तक पहुंच को यह कहकर नहीं रोका जा सकता कि कोई किसी एजेंडे का पालन कर रहा है. अकबर लोन, विभिन्न अवसरों पर भारत के खिलाफ अलगाववादी एजेंडे को आगे बढ़ाने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता भी हैं. कथित तौर पर, लोन ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा के पटल पर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी या सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से यह नहीं सुना है कि इन याचिकाओं को इस आधार पर खारिज कर दिया जाना चाहिए कि ये अलगाववादी एजेंडा हैं.
सुनवाई की शुरुआत में, एक वकील ने पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि उन्होंने भारत के खिलाफ अलगाववादी एजेंडे को आगे बढ़ाने वाले लोन के बयानों को उजागर करते हुए एक अतिरिक्त हलफनामा दायर किया है. वहीं केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से हलफनामे में उद्धृत लोन द्वारा दिए गए तीन बयानों को देखने का आग्रह किया. हलफनामे से लोन के बयान का हवाला देते हुए मेहता ने कहा कि भारत को ऐसे संदर्भित किया जाता है जैसे कि यह एक विदेशी देश है और इस बात पर जोर दिया कि लोन को शीर्ष अदालत में अपने हलफनामे में यह कहना होगा कि वह इन बयानों को वापस लेते हैं. साथ ही वह आतंकवाद और किसी भी अलगाववादी गतिविधि का समर्थन नहीं करते हैं. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि श्री शंकरनारायणन, मुझे लगता है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है. कोई ऐसा नहीं कह सकता क्योंकि अनुच्छेद 32 के तहत एक याचिका दायर की गई है...अभी तक किसी ने यह नहीं कहा है कि याचिका दायर करना अलगाववादी एजेंडा है...'
इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा संविधान के दायरे में नागरिकों की शिकायतों को सुनने के लिए हमारी अदालत तक पहुंच अपने आप में एक संवैधानिक अधिकार है. साथ ही उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 32 के तहत न्याय पाने वाले किसी भी व्यक्ति को इस आधार पर बाहर नहीं किया जा सकता कि आप इस एजेंडे या उस एजेंडे का पालन कर रहे हैं. योग्यता के आधार पर, किसी भी व्यक्तिगत याचिका पर अलग करना अदालत पर है लेकिन हमने सरकार को नहीं सुना है.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हमने अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल को नहीं सुना है कि इन याचिकाओं को इस आधार पर खारिज कर दिया जाना चाहिए कि ये अलगाववादी एजेंडा है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मामले पर योग्यता और संवैधानिक शर्तों पर बहस की गई है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि न्यायाधीश जानते हैं कि उस परिदृश्य से कैसे निपटना है जहां किसी मामले में हस्तक्षेप करने वालों द्वारा पीड़ा व्यक्त की जाती है. सुनवाई के अंत में, मेहता ने शीर्ष अदालत में लोन के हलफनामे का जिक्र करते हुए अदालत के समक्ष दलील दी कि हलफनामा देश को पहले ही लगी चोट का अपमान है और अदालत को इस बारे में कुछ कहना चाहिए. मेहता ने कहा कि महाराज आपको वह पढ़ना चाहिए जो नहीं लिखा गया है (जो लोन ने हलफनामे में नहीं लिखने का फैसला किया है). इस पर कोर्ट ने कहा कि वह इसकी जांच करेगी. बता दें कि एक पन्ने के हलफनामे में लोन ने कहा था कि वह भारत संघ के एक जिम्मेदार और कर्तव्यनिष्ठ नागरिक हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि मैं संसद सदस्य के रूप में शपथ लेते समय संविधान के प्रावधानों को संरक्षित करने और बनाए रखने के लिए भारत और राष्ट्र की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने की शपथ को दोहराता हूं.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम यहां बस इतना कहना चाहते हैं कि हमारे पास जो भी लोग हैं, क्योंकि हमारे पास जम्मू-कश्मीर में सभी राजनीतिक लोग हैं, यह स्वागत योग्य है. लेकिन वे सभी एक भावना से आए हैं, वह यह है कि वे भारत की अखंडता का पालन करते हैं. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि जब लोन अनुच्छेद 32 के तहत अदालत के अधिकार क्षेत्र का हवाला देते हैं तो उन्हें इस पर विश्वास करना होगा और एक हलफनामा देना होगा. वहीं कश्मीरी पंडितों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक प्रमुख संगठन 'रूट्स इन कश्मीर' ने दावा किया है कि लोन जम्मू-कश्मीर में सक्रिय अलगाववादी ताकतों के एक ज्ञात समर्थक हैं और अतीत में, उन्होंने जम्मू-कश्मीर विधानसभा के पटल पर पाकिस्तान समर्थक नारे भी लगाए हैं.
बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 370 पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता था, इसको सरकार ने पांच अगस्त 2019 को खत्म कर दिया था. इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो भागों में बांट दिया था. वहीं दोनों को अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था.
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