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SC का निजी स्कूलों को वार्षिक शुल्क वसूलने पर रोक लगाने से इनकार

निजी स्कूलों द्वारा वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क वसूलने के मामले में दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट को झटका लगा है. शीर्ष अदालत ने गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को छात्रों से वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क लगाने की अनुमति पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Jun 28, 2021, 1:29 PM IST

Updated : Jun 28, 2021, 9:42 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी में गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को छात्रों से वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क लगाने की अनुमति दी गई थी.

न्यायमूर्ति एएम खानविलकर (AM Khanwilkar) की अध्यक्षता वाली पीठ दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय (डीओई) की इस दलील से सहमत नहीं थी कि छात्रों के अभिभावकों को राहत देने के लिए अधिसूचना को रद्द करने के आदेश पर फिलहाल रोक लगाई जाए.

हालांकि, शीर्ष अदालत ने यह स्पष्ट किया कि दिल्ली सरकार की सभी दलीलें हाई कोर्ट की खंडपीठ द्वारा निर्णय के लिए खुली रहेंगी, क्योंकि यहां याचिका को खारिज करना गुण-दोष के आधार पर नहीं था.

यह भी पढ़ें- 'निजी स्कूलों की नहीं थम रही मनमानी, उनका ऑडिट कर की जाए कार्रवाई'

हाई कोर्ट की एकल पीठ ने 31 मई को दिल्ली सरकार के डीओई द्वारा जारी अप्रैल और अगस्त 2020 के आदेश को रद्द कर दिया था, जिसके जरिए वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क के संग्रह पर रोक लगाई गई थी. दिल्ली सरकार ने एकल न्यायाधीश के फैसले को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष अपील दाखिल की.

दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश में कहा गया था कि कोरोना महामारी के कारण प्रदेश में लगे लॉकडाउन की वजह से स्कूलों में सुविधाएं अप्रयुक्त रही हैं. इसके कारण स्कूलों में 15% कटौती के साथ सालाना फीस वसूली जाएगी. शीर्ष अदालत को बताया गया कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के ही एक पुराने आदेश का संदर्भ लेते हुए स्कूलों को फीस लेने की अनुमति दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में राजस्थान के स्कूलों को फीस लेने की अनुमति दी थी.

दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग करते हुए कहा कि छात्रों से केवल ट्यूशन फीस ली जा रही है. इसका सुझाव दुग्गल समिति (Duggal Committee) ने दिया था. केवल वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क नहीं लिया जा रहा है. विकास सिंह ने तर्क दिया कि चूंकि दिल्ली में स्कूल नहीं खुले थे इसलिए राजस्थान के स्कूलों के संदर्भ में पारित सुप्रीम कोर्ट का आदेश यहां लागू नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि दिल्ली में स्कूल खुले थे.

पढ़ें : निजी स्कूलों को वार्षिक और विकास शुल्क वसूलने की अनुमति देने वाले आदेश पर रोक से इनकार

सिंह ने तर्क दिया कि अदालत में लाखों अभिभावकों का प्रतिनिधित्व कौन करेगा? इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह मामले की सुनवाई के लिए इच्छुक नहीं है. शीर्ष अदालत ने कहा कि दिल्ली सरकार चाहे, तो हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष लंबित मामले में अपना पक्ष रख सकती है.

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी में गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को छात्रों से वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क लगाने की अनुमति दी गई थी.

न्यायमूर्ति एएम खानविलकर (AM Khanwilkar) की अध्यक्षता वाली पीठ दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय (डीओई) की इस दलील से सहमत नहीं थी कि छात्रों के अभिभावकों को राहत देने के लिए अधिसूचना को रद्द करने के आदेश पर फिलहाल रोक लगाई जाए.

हालांकि, शीर्ष अदालत ने यह स्पष्ट किया कि दिल्ली सरकार की सभी दलीलें हाई कोर्ट की खंडपीठ द्वारा निर्णय के लिए खुली रहेंगी, क्योंकि यहां याचिका को खारिज करना गुण-दोष के आधार पर नहीं था.

यह भी पढ़ें- 'निजी स्कूलों की नहीं थम रही मनमानी, उनका ऑडिट कर की जाए कार्रवाई'

हाई कोर्ट की एकल पीठ ने 31 मई को दिल्ली सरकार के डीओई द्वारा जारी अप्रैल और अगस्त 2020 के आदेश को रद्द कर दिया था, जिसके जरिए वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क के संग्रह पर रोक लगाई गई थी. दिल्ली सरकार ने एकल न्यायाधीश के फैसले को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष अपील दाखिल की.

दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश में कहा गया था कि कोरोना महामारी के कारण प्रदेश में लगे लॉकडाउन की वजह से स्कूलों में सुविधाएं अप्रयुक्त रही हैं. इसके कारण स्कूलों में 15% कटौती के साथ सालाना फीस वसूली जाएगी. शीर्ष अदालत को बताया गया कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के ही एक पुराने आदेश का संदर्भ लेते हुए स्कूलों को फीस लेने की अनुमति दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में राजस्थान के स्कूलों को फीस लेने की अनुमति दी थी.

दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग करते हुए कहा कि छात्रों से केवल ट्यूशन फीस ली जा रही है. इसका सुझाव दुग्गल समिति (Duggal Committee) ने दिया था. केवल वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क नहीं लिया जा रहा है. विकास सिंह ने तर्क दिया कि चूंकि दिल्ली में स्कूल नहीं खुले थे इसलिए राजस्थान के स्कूलों के संदर्भ में पारित सुप्रीम कोर्ट का आदेश यहां लागू नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि दिल्ली में स्कूल खुले थे.

पढ़ें : निजी स्कूलों को वार्षिक और विकास शुल्क वसूलने की अनुमति देने वाले आदेश पर रोक से इनकार

सिंह ने तर्क दिया कि अदालत में लाखों अभिभावकों का प्रतिनिधित्व कौन करेगा? इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह मामले की सुनवाई के लिए इच्छुक नहीं है. शीर्ष अदालत ने कहा कि दिल्ली सरकार चाहे, तो हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष लंबित मामले में अपना पक्ष रख सकती है.

Last Updated : Jun 28, 2021, 9:42 PM IST
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