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सार्वजनिक स्थानों पर संविधान की प्रस्तावना के प्रदर्शन की मांग संबंधी याचिका खारिज

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Published : Sep 30, 2022, 6:09 PM IST

याचिका में सार्वजनिक स्थानों और सरकारी कार्यालयों में स्थानीय नागरिकों द्वारा समझी जाने वाली भाषाओं में भाईचारे की भावना और स्वतंत्रता, समानता और धर्मनिरपेक्षता के विचारों को बढ़ाने के लिए प्रस्तावना की सामग्री प्रदर्शित (display of Preamble at public places) करने का अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की गई थी.

display of Preamble at public places
display of Preamble at public places

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को संविधान की प्रस्तावना को स्थानीय भाषाओं में सार्वजनिक स्थानों (display of Preamble at public places) और सरकारी कार्यालयों में बंधुत्व की भावना को बढ़ाने के लिए प्रदर्शित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी. शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसा सरकार को करना है. अदालत ने कहा कि कुछ तो सरकार पर छोड़ दिया जाना चाहिए कि इस पर कैसे अमल किया जाए.

न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति एएस ओका की पीठ ने महाराष्ट्र निवासी याचिकाकर्ता को बताया, कुछ लोग वास्तव में उद्यमी होते हैं. निर्वाचित हो जाइए और यह कीजिए. यह जगह इसके लिए नहीं है. पीठ ने कहा, 'अगर हम इसमें उतरें....प्रस्तावना कहां प्रदर्शित की जाएगी, कहां संविधान का प्रदर्शन होगा. यह हमारा काम नहीं है.'

याचिकाकर्ता जेडएएन पीरजादे की तरफ से पेश हुए वकील से पीठ ने कहा कि या तो आप याचिका वापस ले लें या अदालत उसे खारिज कर देगी. वकील ने कहा कि वह याचिका वापस ले लेंगे. याचिका अधिवक्ता एमआर शाह के जरिए दायर की गई थी. याचिका में सार्वजनिक स्थानों और सरकारी कार्यालयों में स्थानीय नागरिकों द्वारा समझी जाने वाली भाषाओं में भाईचारे की भावना और स्वतंत्रता, समानता और धर्मनिरपेक्षता के विचारों को बढ़ाने के लिए प्रस्तावना की सामग्री प्रदर्शित करने का अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की गई थी. अदालत ने व्यंगपूर्वक पूछा, 'पूरे देश में संविधान का प्रदर्शन क्यों नहीं करते?' पीठ ने कहा, 'यह काम सरकार को करना है.'

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को संविधान की प्रस्तावना को स्थानीय भाषाओं में सार्वजनिक स्थानों (display of Preamble at public places) और सरकारी कार्यालयों में बंधुत्व की भावना को बढ़ाने के लिए प्रदर्शित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी. शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसा सरकार को करना है. अदालत ने कहा कि कुछ तो सरकार पर छोड़ दिया जाना चाहिए कि इस पर कैसे अमल किया जाए.

न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति एएस ओका की पीठ ने महाराष्ट्र निवासी याचिकाकर्ता को बताया, कुछ लोग वास्तव में उद्यमी होते हैं. निर्वाचित हो जाइए और यह कीजिए. यह जगह इसके लिए नहीं है. पीठ ने कहा, 'अगर हम इसमें उतरें....प्रस्तावना कहां प्रदर्शित की जाएगी, कहां संविधान का प्रदर्शन होगा. यह हमारा काम नहीं है.'

याचिकाकर्ता जेडएएन पीरजादे की तरफ से पेश हुए वकील से पीठ ने कहा कि या तो आप याचिका वापस ले लें या अदालत उसे खारिज कर देगी. वकील ने कहा कि वह याचिका वापस ले लेंगे. याचिका अधिवक्ता एमआर शाह के जरिए दायर की गई थी. याचिका में सार्वजनिक स्थानों और सरकारी कार्यालयों में स्थानीय नागरिकों द्वारा समझी जाने वाली भाषाओं में भाईचारे की भावना और स्वतंत्रता, समानता और धर्मनिरपेक्षता के विचारों को बढ़ाने के लिए प्रस्तावना की सामग्री प्रदर्शित करने का अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की गई थी. अदालत ने व्यंगपूर्वक पूछा, 'पूरे देश में संविधान का प्रदर्शन क्यों नहीं करते?' पीठ ने कहा, 'यह काम सरकार को करना है.'

(पीटीआई-भाषा)

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