नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने आज भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (देशद्रोह कानून) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को संविधान पीठ के पास भेज दिया. पीठ ने कहा कि पांच-न्यायाधीश संदर्भ को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं. इसके साथ ही अदालत ने आईपीसी की धारा 124ए के तहत राजद्रोह प्रावधान की वैधता की जांच को नया कानून बनने तक स्थगित करने के केंद्र के अनुरोध पर विचार करने से इनकार कर दिया.
सीजेआई की नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि पांच जजों की पीठ इस मामले के कार्यान्वयन के बेहतर तरीके को प्रतिबंधित कर सकते हैं. पीठ ने कहा कि संविधान पीठ या तो इसे वर्तमान विकास के अनुरूप लाने के लिए केदारनाथ सिंह मामले में पूर्व के फैसले की व्याख्या कर सकती है या इसे 7-न्यायाधीशों की पीठ को भेज सकती है.
बता दें कि मंगलवार को शीर्ष अदालत राजद्रोह कानून (भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि आईपीसी की जगह लेने वाला एक संभावित नया कानून इस तथ्य को नहीं बदलेगा कि धारा 124ए के तहत कई आपराधिक कार्यवाही लंबित हैं.
बता दें कि, धारा 124ए आईपीसी का हिस्सा है. मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इसके उपयोग को स्थगित कर दिया गया था. कोर्ट ने सरकार को राजद्रोह कानून पर फिर से विचार करने का समय दिया था. मंगलवार को सुनवाई के दौरान, अटॉर्नी जनरल (एजी) आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व किया. केंद्र के वकील ने तर्क दिया कि नए प्रस्तावित दंड संहिता में राजद्रोह प्रावधान को संशोधित किया गया है, जो वर्तमान में संसदीय स्थायी समिति के विचाराधीन है.
नये भारतीय न्याय संहिता विधेयक में स्पष्ट रूप से धारा 124ए नहीं है, लेकिन इसमें धारा 150 है. नए विधेयक में यह प्रस्तावित प्रावधान 'देशद्रोह' शब्द का उपयोग नहीं करता है लेकिन इस अपराध को 'भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाला' बताता है. अदालत ने कहा कि भले ही नया कानून अस्तित्व में आ जाए यह पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं होगा. संक्षेप में, नए कानून के बावजूद धारा 124ए के तहत मौजूदा आपराधिक कार्यवाही जारी रहेगी.
पीठ, जिसमें सीजेआई के साथ न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे, ने कहा कि हमें यह बताया गया है कि राजद्रोह पर एक नया कानून स्थायी समिति को भेजा गया है. मंगलवार को सुनवाई की शुरुआत में, याचिकाकर्ताओं में से एक का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि केदारनाथ सिंह मामले पर हुए फैसले पर पुर्नविचार के लिए इसे पांच न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजा जा सकता है या तीन न्यायाधीशों की वर्तमान पीठ भी इसका निर्णय स्वयं कर सकती है.
इसके जवाब में पीठ ने कहा कि उसे 5 न्यायाधीशों की पीठ का गठन करना होगा क्योंकि इससे पूर्व हुए 5 न्यायाधीशों की पीठ का फैसला उसके लिए बाध्यकारी है. एजी ने कहा कि नया कानून तैयार है. जिसे संसदीय स्थायी समिति के पास भेजा गया है. सिब्बल ने कहा कि नया कानून बहुत खराब है. इसके तहत पुराने मुकदमे चलते रहेंगे. एजी ने जोर देकर कहा कि संसदीय समिति इसे देख रही है और ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर अदालत इंतजार कर सकती है.
सिब्बल ने कहा कि 5 जजों की बेंच को मामले की सुनवाई करने दें और तय करें कि क्या इसकी सुनवाई सात जजों की बेंच को करने की जरूरत है. वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने कहा कि मामले को सात न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष रखा जाए और इस पर हमेशा के लिए फैसला कराया जाए. एक वकील ने कहा कि विधेयक की धारा 356 पुराने मामलों में पहले के कानून की तरह अभियोजन जारी रखने की अनुमति देती है.
दलीलें सुनने के बाद, पीठ ने कहा कि हमारे विचार में, कार्रवाई का उचित तरीका सीजेआई के समक्ष कागजात रखना होगा ताकि मामले की सुनवाई कम से कम पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा की जा सके, क्योंकि केदारनाथ सिंह मामले की सुनवाई एक संविधान पीठ ने की थी. हम रजिस्ट्री को दिशानिर्देश के लिए कागजात सीजेआई के समक्ष रखने का निर्देश देते हैं.