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Bilkis Bano Case : SC ने बिलकिस बानो मामले में दोषियों से उसकी मंजूरी के बिना जुर्माना जमा करने पर सवाल उठाया - depositing fine without getting its nod

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बिलकिस बानो मामले में दोषियों से अंतरिम आवेदन पर फैसले से पहले ही बिना जुर्माना जमा करने को लेकर सवाल उठाया है. कोर्ट मामले में अगली सुनवाई 14 सितंबर को करेगी.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 31, 2023, 7:15 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ) ने गुरुवार को बिलकिस बानो मामले में दोषियों से उनके अंतरिम आवेदन पर फैसले का इंतजार किए बिना जुर्माना जमा करने पर सवाल उठाया, खासकर तब, जब गुजरात सरकार के खिलाफ दायर याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई चल रही हो. गुजरात सरकार ने बिलकिस के साथ सामूहिक दुष्‍कर्म और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के मामले में दोषियों को समय से पहले रिहाई की अनुमति दी थी.

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्‍ना और न्यायमूर्ति उज्‍ज्‍वल भुइयां की पीठ को अवगत कराया कि दोषियों ने मुंबई में ट्रायल कोर्ट से संपर्क किया है और उन पर लगाया गया जुर्माना जमा कर दिया है. उन्होंने तर्क दिया कि हालांकि जुर्माना जमा न करने से छूट के फैसले पर कोई असर नहीं पड़ता है, लेकिन उन्होंने अपने ग्राहकों को विवाद को कम करने के लिए जुर्माना जमा करने की सलाह दी थी.

हालांकि, पीठ ने अदालत के समक्ष दायर उनके आवेदन के नतीजे का इंतजार किए बिना जुर्माना जमा करने पर सवाल उठाया. इसने पूछा, 'आप अनुमति मांगते हैं और फिर अनुमति प्राप्त किए बिना ही जमा कर देते हैं?' शीर्ष अदालत ने कहा कि जब गुजरात सरकार ने पिछले साल 15 अगस्त को अपनी माफी नीति के तहत इन 11 दोषियों को रिहा करने की अनुमति दी थी, तब जुर्माना नहीं भरा गया था. लूथरा ने शीर्ष अदालत को बताया कि मुंबई की सत्र अदालत ने उनकी आशंकाओं के विपरीत जुर्माने को सामान्य रूप से स्वीकार कर लिया. उन्होंने बार-बार तर्क दिया कि जुर्माना जमा करने या न करने का किसी दोषी को छूट देने में कोई कानूनी महत्व नहीं होता.

उन्होंने दोहराया कि तय समय से पहले रिहाई की मांग करने वाले आवेदनों पर शीर्ष अदालत के पहले के आदेश के अनुसार, गुजरात सरकार द्वारा विचार किया गया था और न्यायिक आदेश को संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका दायर करके चुनौती नहीं दी जा सकती. इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह बताया गया था कि दोषियों ने उन पर लगाए गए जुर्माने का भुगतान नहीं किया है और ऐसे में जुर्माना न चुकाने से छूट का आदेश अवैध हो जाता है.

अदालत ने अगली सुनवाई 14 सितंबर को तय की और दोषियों को उस दिन अपनी दलीलें पूरी करने को कहा. केंद्र, गुजरात सरकार और दोषियों ने मकापा नेता सुभाषिनी अली, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन, आसमां शफीक शेख और अन्य द्वारा दायर जनहित याचिकाओं (पीआईएल) का विरोध करते हुए कहा है कि पीड़िता ने स्वयं अदालत का दरवाजा खटखटाया है, ऐसे में दूसरों को आपराधिक मामले में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने तर्क दिया था कि सजा में छूट का मतलब सजा में कमी करना है और सजा के सवाल पर जनहित याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा था, जहां तक सजा की मात्रा का सवाल है, इसमें कोई तीसरा पक्ष दखल नहीं दे सकता. मामले में दोषी ठहराए गए 11 लोगों को पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया था. गुजरात सरकार ने अपनी छूट नीति के तहत उनकी रिहाई की अनुमति दी थी और कहा था कि दोषियों ने जेल में 15 साल पूरे कर लिए थे.

ये भी पढ़ें - SC On Fake Website: फर्जी वेबसाइट से हो रही ठगी की कोशिश, शेयर न करें पर्सनल इंफॉर्मेशन: सुप्रीम कोर्ट

(आईएएनएस)

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ) ने गुरुवार को बिलकिस बानो मामले में दोषियों से उनके अंतरिम आवेदन पर फैसले का इंतजार किए बिना जुर्माना जमा करने पर सवाल उठाया, खासकर तब, जब गुजरात सरकार के खिलाफ दायर याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई चल रही हो. गुजरात सरकार ने बिलकिस के साथ सामूहिक दुष्‍कर्म और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के मामले में दोषियों को समय से पहले रिहाई की अनुमति दी थी.

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्‍ना और न्यायमूर्ति उज्‍ज्‍वल भुइयां की पीठ को अवगत कराया कि दोषियों ने मुंबई में ट्रायल कोर्ट से संपर्क किया है और उन पर लगाया गया जुर्माना जमा कर दिया है. उन्होंने तर्क दिया कि हालांकि जुर्माना जमा न करने से छूट के फैसले पर कोई असर नहीं पड़ता है, लेकिन उन्होंने अपने ग्राहकों को विवाद को कम करने के लिए जुर्माना जमा करने की सलाह दी थी.

हालांकि, पीठ ने अदालत के समक्ष दायर उनके आवेदन के नतीजे का इंतजार किए बिना जुर्माना जमा करने पर सवाल उठाया. इसने पूछा, 'आप अनुमति मांगते हैं और फिर अनुमति प्राप्त किए बिना ही जमा कर देते हैं?' शीर्ष अदालत ने कहा कि जब गुजरात सरकार ने पिछले साल 15 अगस्त को अपनी माफी नीति के तहत इन 11 दोषियों को रिहा करने की अनुमति दी थी, तब जुर्माना नहीं भरा गया था. लूथरा ने शीर्ष अदालत को बताया कि मुंबई की सत्र अदालत ने उनकी आशंकाओं के विपरीत जुर्माने को सामान्य रूप से स्वीकार कर लिया. उन्होंने बार-बार तर्क दिया कि जुर्माना जमा करने या न करने का किसी दोषी को छूट देने में कोई कानूनी महत्व नहीं होता.

उन्होंने दोहराया कि तय समय से पहले रिहाई की मांग करने वाले आवेदनों पर शीर्ष अदालत के पहले के आदेश के अनुसार, गुजरात सरकार द्वारा विचार किया गया था और न्यायिक आदेश को संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका दायर करके चुनौती नहीं दी जा सकती. इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह बताया गया था कि दोषियों ने उन पर लगाए गए जुर्माने का भुगतान नहीं किया है और ऐसे में जुर्माना न चुकाने से छूट का आदेश अवैध हो जाता है.

अदालत ने अगली सुनवाई 14 सितंबर को तय की और दोषियों को उस दिन अपनी दलीलें पूरी करने को कहा. केंद्र, गुजरात सरकार और दोषियों ने मकापा नेता सुभाषिनी अली, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन, आसमां शफीक शेख और अन्य द्वारा दायर जनहित याचिकाओं (पीआईएल) का विरोध करते हुए कहा है कि पीड़िता ने स्वयं अदालत का दरवाजा खटखटाया है, ऐसे में दूसरों को आपराधिक मामले में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने तर्क दिया था कि सजा में छूट का मतलब सजा में कमी करना है और सजा के सवाल पर जनहित याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा था, जहां तक सजा की मात्रा का सवाल है, इसमें कोई तीसरा पक्ष दखल नहीं दे सकता. मामले में दोषी ठहराए गए 11 लोगों को पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया था. गुजरात सरकार ने अपनी छूट नीति के तहत उनकी रिहाई की अनुमति दी थी और कहा था कि दोषियों ने जेल में 15 साल पूरे कर लिए थे.

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(आईएएनएस)

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