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अनाथ बच्चों की मदद का मामला : राज्य सरकारों पर SC सख्त, पूछा- क्यों नहीं पूरा कर पाए काम ?

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Published : Jan 17, 2022, 4:18 PM IST

Updated : Jan 17, 2022, 6:44 PM IST

राज्यों की सरकारें कोरोना महामारी के कारण अपने माता-पिता को खोने वाले बच्चों की पहचान कर पाने में नाकाम रही हैं. सरकारों की इस नाकामी पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाई है. शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे बच्चों के संबंध में एनसीपीसीआर के दिशा-निर्देश के साथ राज्यों में एक नीति तैयार की जाए. जस्टिस एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति सूर्यकांत (Justice L Nageswara Rao and Justice Surya Kant) की पीठ ने तीन सप्ताह में स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश भी दिया. मामले की अगली सुनवाई 4 सप्ताह बाद तय की गई है.

sc
सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली : कोरोना महामारी के दौरान निराश्रित और अनाथ हुए बच्चों की पहचान करने का पहला चरण भी पूरा नहीं हुआ है. सड़कों पर रहने वाले और माता-पिता को खोने वाले बच्चों की पहचान न कर पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चों की देखभाल के लिए निर्देश पारित हुए 4 महीने हो गए हैं. लेकिन राज्यों ने अभी तक बच्चों की पहचान तक नहीं की है.

दरअसल, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति सूर्यकांत (Justice L Nageswara Rao and Justice Surya Kant) की पीठ ने स्वत: संज्ञान लिया है. पीठ ने ऐसे बच्चों की दशा पर संज्ञान लिया है जिन्हें सुरक्षा और देखभाल की जरूरत है. अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अधिकारियों से जरूरतमंद बच्चों के पुनर्वास के लिए तत्काल कदम उठाने और स्टेटस रिपोर्ट जमा करने को कहा था.

अनाथ बच्चों की स्थिति के संबंध में असम ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि राज्य सरकार को एनसीपीसीआर की ओर से कोई मेल नहीं मिला है. असम सरकार ने कहा कि उसे अपनी मेल आईडी अपडेट करनी होगी जिससे एनसीपीसीआर की ओर से उसे जानकारी मिल सके. महाराष्ट्र और दिल्ली सरकार के लचर रवैये को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इनकी भी खिंचाई की. इन राज्यों पर बच्चों की वास्तविक संख्या छिपाने का आरोप है. महाराष्ट्र ने 3257 बच्चों की पहचान की और दिल्ली ने 428 की पहचान की. कोर्ट ने दिल्ली सरकार को लताड़ा और पूछा, किसी संगठन ने 70,000 बच्चों की पहचान की है और सरकार केवल 428 बच्चों की पहचान कर सकी है ?

जस्टिस नागेश्वर राव ने दोनों राज्यों की खिंचाई करते हुए कहा, 'कोविड-19 की जैसी स्थिति का हम सामना कर रहे हैं, वह बच्चों के लिए और भी विकट है. हमारे आसपास ऐसे बच्चे हैं, जिनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं.' जस्टिस राव ने कहा, ठंड में यह स्थिति और खराब होगी, जरा सोचिए बच्चे कितना कष्ट भोग रहे हैं. राज्य सरकारों को आइना दिखाते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, यह आपका कर्तव्य है. हमें आपको यह बताने की जरूरत नहीं होनी चाहिए.

यूपी सरकार ने अदालत को सूचित किया कि एनजीओ ने 30,082 बच्चों की पहचान की है. इनका पता लगाने की कोशिश की जा रही है. एनजीओ की ओर से सरकार को बच्चों का पता नहीं दिया गया. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि बच्चों के बारे में पता लगाने के लिए कई टीमें और एजेंसियां ​​भेजी गई हैं. इस पर कोर्ट ने सुझाव दिया कि इस काम में ट्रैफिक पुलिस की मदद भी ली जा सकती है, क्योंकि ज्यादातर बच्चे ट्रैफिक सिग्नल पर भीख मांगते हैं.

मध्य प्रदेश सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि सरकार ने 704 बच्चों की पहचान की है. अधिकारियों के लचर रवैये के लिए अदालत को सख्ती दिखाने का सुझाव भी दिया गया. मध्य प्रदेश सरकार ने कहा कि अधिकारियों को कुशलता से काम नहीं करने के लिए दंडित किया जाए. इस पर अदालत ने कहा कि वह विभागों से अवमानना ​​​​की धमकी के तहत काम करने की उम्मीद नहीं करती. अदालत इस स्तर पर अपनी शक्तियों का प्रयोग नहीं करेगी.

हालांकि, मध्य प्रदेश के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 का हवाला भी दिया. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि बच्चों के बारे में जानकारी नहीं देना एक अपराध है और दोषी को जेल भेजे जाने का प्रावधान है.

सुप्रीम कोर्ट ने जिलाधिकारी (डीएम) को बच्चों के बारे में जानकारी जमा करने और बिना किसी देरी के उनका पुनर्वास करने के लिए जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण और स्वयंसेवी संगठनों की सहायता लेने का निर्देश भी दिया. अदालत ने बच्चों के ब्योरे बाल स्वराज पोर्टल (Bal Swaraj portal) पर भरने का निर्देश भी दिया.

इससे पहले राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि एक अप्रैल, 2020 से अब तक कुल 1,47,492 बच्चों ने कोविड-19 और अन्य कारणों से अपने माता या पिता में से किसी एक या दोनों को खो दिया है.

कोविड-19 महामारी के दौरान माता-पिता को खो चुके बच्चों की देखभाल और सुरक्षा को लेकर स्वत: संज्ञान वाले मामले में एनसीपीसीआर ने कहा कि इसके आंकड़े राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अपने 'बाल स्वराज पोर्टल- कोविड केयर' पर 11 जनवरी तक अपलोड किए गए आंकड़ों पर आधारित हैं.

अधिवक्ता स्वरूपमा चतुर्वेदी के माध्यम से दायर हलफनामे में कहा गया है कि 11 जनवरी तक अपलोड किए गए डेटा से पता चलता है कि देखभाल और सुरक्षा की जरूरत वाले बच्चों की कुल संख्या 1,47,492 हैं, जिनमें अनाथ बच्चों की संख्या 10,094 और माता या पिता में से किसी एक को खोने वाले बच्चों की संख्या 1,36,910 और परित्यक्त बच्चों की संख्या 488 हैं. आयोग के अनुसार, लिंग के आधार पर 1,47,492 बच्चों में से 76,508 लड़के, 70,980 लड़कियां और चार ट्रांसजेंडर हैं.

हलफनामे में कहा गया है कि कुल बच्चों में से सबसे अधिक 59,010 बच्चे आठ से 13 साल आयु वर्ग के हैं, जबकि दूसरे स्थान पर चार से सात वर्ष के बच्चे हैं, जिनकी कुल संख्या 26,080 है. आंकड़े बताते हैं कि 14 से 15 साल के बच्चों की कुल संख्या 22,763 और 16 से 18 वर्ष आयुवर्ग के बच्चों की कुल संख्या 22,626 है.

11 हजार से अधिक बच्चे परिजनों के साथ
आयोग ने बच्चों के आश्रय की वर्तमान स्थिति की भी जानकारी दी है, जिसके अनुसार अधिकतम बच्चे (1,25,205) माता या पिता में से किसी एक के साथ हैं, जबकि 11,272 बच्चे परिवार के सदस्यों के साथ और 8,450 बच्चे अभिभावकों के साथ हैं. हलफनामे में कहा गया है कि 1,529 बच्चे बाल गृहों में, 19 खुले आश्रय गृहों में, दो अवलोकन गृहों में, 188 अनाथालयों में, 66 विशेष गोद लेने वाली एजेंसियों में और 39 छात्रावासों में हैं.

क्षेत्रवार बैठकें कर बच्चों की पहचान का प्रयास
अप्रैल 2020 से कोविड और अन्य कारणों से अपने माता या पिता या माता-पिता दोनों को खोने वाले बच्चों का राज्यवार विवरण देते हुए आयोग ने कहा कि ऐसे बच्चों की अधिकतम संख्या ओडिशा (24,405) से है, इसके बाद महाराष्ट्र (19,623), गुजरात (14,770), तमिलनाडु (11,014), उत्तर प्रदेश (9,247), आंध्र प्रदेश (8,760), मध्य प्रदेश (7,340), पश्चिम बंगाल (6,835) दिल्ली (6,629) और राजस्थान (6,827) का स्थान आता है. आयोग ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि वह प्रत्येक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के एससीपीसीआर के साथ क्षेत्रवार बैठकें कर रहा है और उत्तर-पूर्वी राज्यों के साथ एक आभासी बैठक 19 जनवरी को होने वाली है.

नई दिल्ली : कोरोना महामारी के दौरान निराश्रित और अनाथ हुए बच्चों की पहचान करने का पहला चरण भी पूरा नहीं हुआ है. सड़कों पर रहने वाले और माता-पिता को खोने वाले बच्चों की पहचान न कर पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चों की देखभाल के लिए निर्देश पारित हुए 4 महीने हो गए हैं. लेकिन राज्यों ने अभी तक बच्चों की पहचान तक नहीं की है.

दरअसल, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति सूर्यकांत (Justice L Nageswara Rao and Justice Surya Kant) की पीठ ने स्वत: संज्ञान लिया है. पीठ ने ऐसे बच्चों की दशा पर संज्ञान लिया है जिन्हें सुरक्षा और देखभाल की जरूरत है. अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अधिकारियों से जरूरतमंद बच्चों के पुनर्वास के लिए तत्काल कदम उठाने और स्टेटस रिपोर्ट जमा करने को कहा था.

अनाथ बच्चों की स्थिति के संबंध में असम ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि राज्य सरकार को एनसीपीसीआर की ओर से कोई मेल नहीं मिला है. असम सरकार ने कहा कि उसे अपनी मेल आईडी अपडेट करनी होगी जिससे एनसीपीसीआर की ओर से उसे जानकारी मिल सके. महाराष्ट्र और दिल्ली सरकार के लचर रवैये को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इनकी भी खिंचाई की. इन राज्यों पर बच्चों की वास्तविक संख्या छिपाने का आरोप है. महाराष्ट्र ने 3257 बच्चों की पहचान की और दिल्ली ने 428 की पहचान की. कोर्ट ने दिल्ली सरकार को लताड़ा और पूछा, किसी संगठन ने 70,000 बच्चों की पहचान की है और सरकार केवल 428 बच्चों की पहचान कर सकी है ?

जस्टिस नागेश्वर राव ने दोनों राज्यों की खिंचाई करते हुए कहा, 'कोविड-19 की जैसी स्थिति का हम सामना कर रहे हैं, वह बच्चों के लिए और भी विकट है. हमारे आसपास ऐसे बच्चे हैं, जिनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं.' जस्टिस राव ने कहा, ठंड में यह स्थिति और खराब होगी, जरा सोचिए बच्चे कितना कष्ट भोग रहे हैं. राज्य सरकारों को आइना दिखाते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, यह आपका कर्तव्य है. हमें आपको यह बताने की जरूरत नहीं होनी चाहिए.

यूपी सरकार ने अदालत को सूचित किया कि एनजीओ ने 30,082 बच्चों की पहचान की है. इनका पता लगाने की कोशिश की जा रही है. एनजीओ की ओर से सरकार को बच्चों का पता नहीं दिया गया. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि बच्चों के बारे में पता लगाने के लिए कई टीमें और एजेंसियां ​​भेजी गई हैं. इस पर कोर्ट ने सुझाव दिया कि इस काम में ट्रैफिक पुलिस की मदद भी ली जा सकती है, क्योंकि ज्यादातर बच्चे ट्रैफिक सिग्नल पर भीख मांगते हैं.

मध्य प्रदेश सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि सरकार ने 704 बच्चों की पहचान की है. अधिकारियों के लचर रवैये के लिए अदालत को सख्ती दिखाने का सुझाव भी दिया गया. मध्य प्रदेश सरकार ने कहा कि अधिकारियों को कुशलता से काम नहीं करने के लिए दंडित किया जाए. इस पर अदालत ने कहा कि वह विभागों से अवमानना ​​​​की धमकी के तहत काम करने की उम्मीद नहीं करती. अदालत इस स्तर पर अपनी शक्तियों का प्रयोग नहीं करेगी.

हालांकि, मध्य प्रदेश के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 का हवाला भी दिया. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि बच्चों के बारे में जानकारी नहीं देना एक अपराध है और दोषी को जेल भेजे जाने का प्रावधान है.

सुप्रीम कोर्ट ने जिलाधिकारी (डीएम) को बच्चों के बारे में जानकारी जमा करने और बिना किसी देरी के उनका पुनर्वास करने के लिए जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण और स्वयंसेवी संगठनों की सहायता लेने का निर्देश भी दिया. अदालत ने बच्चों के ब्योरे बाल स्वराज पोर्टल (Bal Swaraj portal) पर भरने का निर्देश भी दिया.

इससे पहले राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि एक अप्रैल, 2020 से अब तक कुल 1,47,492 बच्चों ने कोविड-19 और अन्य कारणों से अपने माता या पिता में से किसी एक या दोनों को खो दिया है.

कोविड-19 महामारी के दौरान माता-पिता को खो चुके बच्चों की देखभाल और सुरक्षा को लेकर स्वत: संज्ञान वाले मामले में एनसीपीसीआर ने कहा कि इसके आंकड़े राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अपने 'बाल स्वराज पोर्टल- कोविड केयर' पर 11 जनवरी तक अपलोड किए गए आंकड़ों पर आधारित हैं.

अधिवक्ता स्वरूपमा चतुर्वेदी के माध्यम से दायर हलफनामे में कहा गया है कि 11 जनवरी तक अपलोड किए गए डेटा से पता चलता है कि देखभाल और सुरक्षा की जरूरत वाले बच्चों की कुल संख्या 1,47,492 हैं, जिनमें अनाथ बच्चों की संख्या 10,094 और माता या पिता में से किसी एक को खोने वाले बच्चों की संख्या 1,36,910 और परित्यक्त बच्चों की संख्या 488 हैं. आयोग के अनुसार, लिंग के आधार पर 1,47,492 बच्चों में से 76,508 लड़के, 70,980 लड़कियां और चार ट्रांसजेंडर हैं.

हलफनामे में कहा गया है कि कुल बच्चों में से सबसे अधिक 59,010 बच्चे आठ से 13 साल आयु वर्ग के हैं, जबकि दूसरे स्थान पर चार से सात वर्ष के बच्चे हैं, जिनकी कुल संख्या 26,080 है. आंकड़े बताते हैं कि 14 से 15 साल के बच्चों की कुल संख्या 22,763 और 16 से 18 वर्ष आयुवर्ग के बच्चों की कुल संख्या 22,626 है.

11 हजार से अधिक बच्चे परिजनों के साथ
आयोग ने बच्चों के आश्रय की वर्तमान स्थिति की भी जानकारी दी है, जिसके अनुसार अधिकतम बच्चे (1,25,205) माता या पिता में से किसी एक के साथ हैं, जबकि 11,272 बच्चे परिवार के सदस्यों के साथ और 8,450 बच्चे अभिभावकों के साथ हैं. हलफनामे में कहा गया है कि 1,529 बच्चे बाल गृहों में, 19 खुले आश्रय गृहों में, दो अवलोकन गृहों में, 188 अनाथालयों में, 66 विशेष गोद लेने वाली एजेंसियों में और 39 छात्रावासों में हैं.

क्षेत्रवार बैठकें कर बच्चों की पहचान का प्रयास
अप्रैल 2020 से कोविड और अन्य कारणों से अपने माता या पिता या माता-पिता दोनों को खोने वाले बच्चों का राज्यवार विवरण देते हुए आयोग ने कहा कि ऐसे बच्चों की अधिकतम संख्या ओडिशा (24,405) से है, इसके बाद महाराष्ट्र (19,623), गुजरात (14,770), तमिलनाडु (11,014), उत्तर प्रदेश (9,247), आंध्र प्रदेश (8,760), मध्य प्रदेश (7,340), पश्चिम बंगाल (6,835) दिल्ली (6,629) और राजस्थान (6,827) का स्थान आता है. आयोग ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि वह प्रत्येक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के एससीपीसीआर के साथ क्षेत्रवार बैठकें कर रहा है और उत्तर-पूर्वी राज्यों के साथ एक आभासी बैठक 19 जनवरी को होने वाली है.

Last Updated : Jan 17, 2022, 6:44 PM IST

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