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न्यायमूर्ति अशोक भूषण रिटायरमेंट : प्रवासी मजदूरों के केस में पीठ की अध्यक्षता की, अन्य फैसले भी ऐतिहासिक

सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अशोक भूषण चार जुलाई (Supreme Court Justice Ashok Bhushan) को रिटायर हो रहे है. यूपी के जौनपुर निवासी न्यायमूर्ति भूषण ने ऐतिहासिक अयोध्या भूमि विवाद मामले में सक्रिय भूमिका निभाई थी. इसके अलावा वह बायोमेट्रिक आईडी आधार की वैधता को बरकरार रखने समेत कई महत्वपूर्ण फैसलों का हिस्सा रहे हैं. इसके अलावा कोरोना संकट के दौरान प्रवासी मजदूरों का जो मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था, इस पीठ की अध्यक्षता भी जस्टिस अशोक भूषण ने की थी.

अशोक भूषण
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Published : Jul 2, 2021, 9:28 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अशोक भूषण (Supreme Court judge Justice Ashok Bhushan) चार जुलाई को सेवानिवृत्त होंगे. न्यायमूर्ति भूषण ऐतिहासिक अयोध्या भूमि विवाद मामले (historic Ayodhya land dispute case) से लेकर बायोमेट्रिक आईडी आधार (biometric ID Aadhaar0 की वैधता को बरकरार रखने समेत कई महत्वपूर्ण फैसलों का हिस्सा रहे हैं. वह उस फैसले का भी हिस्सा रहे थे, जिसमें कहा गया था कि भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) 'मास्टर ऑफ रोस्टर' होता है और उनके पास मामलों को आवंटित करने का विशेषाधिकार और प्राधिकार होता है.

शीर्ष अदालत के छठे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति भूषण के सेवानिवृत्त होने से वहां न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या (सीजेआई सहित) 34 के मुकाबले कम होकर 26 रह जायेगी. न्यायमूर्ति भूषण पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने नवंबर 2019 में अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ कर दिया था और केंद्र को मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ का भूखंड आवंटित करने का निर्देश दिया था.

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में 13 मई 2016 को पदोन्नत, न्यायमूर्ति भूषण पांच-न्यायाधीशों की उस पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने सितंबर 2018 में केंद्र की प्रमुख आधार योजना को संवैधानिक रूप से वैध घोषित किया था, लेकिन इसके कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया था जिसमें बैंक खातों, मोबाइल फोन और स्कूल में दाखिले के साथ इसे जोड़ना शामिल था.

न्यायमूर्ति भूषण जुलाई 2018 के उस फैसले का हिस्सा थे जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा था कि दिल्ली को एक राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है, लेकिन साथ ही कहा था कि उपराज्यपाल को दिल्ली की निर्वाचित सरकार के साथ मिलकर काम करना होगा.

न्यायमूर्ति भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने नौकरियों और शिक्षा में प्रवेश के लिये सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गो के लिये आरक्षण की व्यवस्था के राज्यों के अधिकार से संबंधित संविधान के 102वें संशोधन पर पांच मई के बहुमत के निर्णय पर पुनर्विचार के लिए केंद्र की याचिका खारिज कर दी थी. न्यायालय ने पांच मई के फैसले में व्यवस्था दी थी कि संविधान में 102वें संशोधन के बाद नौकरियों और दाखिलों के लिए सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की घोषणा करने की शक्ति राज्यों के पास नहीं रही है.

यह भी पढ़ें- जानें न्यायमूर्ति अशोक भूषण के विदाई पर क्या कहा सीजेआई ने

न्यायमूर्ति भूषण, 1956 में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में पैदा हुए थे और उन्होंने 1979 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की थी और 6 अप्रैल, 1979 को उत्तर प्रदेश की बार काउंसिल में एक वकील के रूप में नामांकित हुए थे. उन्हें 24 अप्रैल, 2001 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था. उन्होंने 10 जुलाई, 2014 को केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी. न्यायमूर्ति भूषण ने मार्च 2015 में केरल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी.

(पीटीआई भाषा)

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अशोक भूषण (Supreme Court judge Justice Ashok Bhushan) चार जुलाई को सेवानिवृत्त होंगे. न्यायमूर्ति भूषण ऐतिहासिक अयोध्या भूमि विवाद मामले (historic Ayodhya land dispute case) से लेकर बायोमेट्रिक आईडी आधार (biometric ID Aadhaar0 की वैधता को बरकरार रखने समेत कई महत्वपूर्ण फैसलों का हिस्सा रहे हैं. वह उस फैसले का भी हिस्सा रहे थे, जिसमें कहा गया था कि भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) 'मास्टर ऑफ रोस्टर' होता है और उनके पास मामलों को आवंटित करने का विशेषाधिकार और प्राधिकार होता है.

शीर्ष अदालत के छठे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति भूषण के सेवानिवृत्त होने से वहां न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या (सीजेआई सहित) 34 के मुकाबले कम होकर 26 रह जायेगी. न्यायमूर्ति भूषण पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने नवंबर 2019 में अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ कर दिया था और केंद्र को मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ का भूखंड आवंटित करने का निर्देश दिया था.

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में 13 मई 2016 को पदोन्नत, न्यायमूर्ति भूषण पांच-न्यायाधीशों की उस पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने सितंबर 2018 में केंद्र की प्रमुख आधार योजना को संवैधानिक रूप से वैध घोषित किया था, लेकिन इसके कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया था जिसमें बैंक खातों, मोबाइल फोन और स्कूल में दाखिले के साथ इसे जोड़ना शामिल था.

न्यायमूर्ति भूषण जुलाई 2018 के उस फैसले का हिस्सा थे जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा था कि दिल्ली को एक राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है, लेकिन साथ ही कहा था कि उपराज्यपाल को दिल्ली की निर्वाचित सरकार के साथ मिलकर काम करना होगा.

न्यायमूर्ति भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने नौकरियों और शिक्षा में प्रवेश के लिये सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गो के लिये आरक्षण की व्यवस्था के राज्यों के अधिकार से संबंधित संविधान के 102वें संशोधन पर पांच मई के बहुमत के निर्णय पर पुनर्विचार के लिए केंद्र की याचिका खारिज कर दी थी. न्यायालय ने पांच मई के फैसले में व्यवस्था दी थी कि संविधान में 102वें संशोधन के बाद नौकरियों और दाखिलों के लिए सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की घोषणा करने की शक्ति राज्यों के पास नहीं रही है.

यह भी पढ़ें- जानें न्यायमूर्ति अशोक भूषण के विदाई पर क्या कहा सीजेआई ने

न्यायमूर्ति भूषण, 1956 में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में पैदा हुए थे और उन्होंने 1979 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की थी और 6 अप्रैल, 1979 को उत्तर प्रदेश की बार काउंसिल में एक वकील के रूप में नामांकित हुए थे. उन्हें 24 अप्रैल, 2001 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था. उन्होंने 10 जुलाई, 2014 को केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी. न्यायमूर्ति भूषण ने मार्च 2015 में केरल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी.

(पीटीआई भाषा)

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