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SC ने भाजपा-कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों पर लगाया जुर्माना

सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा-कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक दलों पर लगाया जुर्माना लगाया है. कोर्ट ने यह कार्रवाई अपने-अपने उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामलों को सार्वजनिक नहीं करने के बाद की है.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Aug 10, 2021, 4:45 PM IST

Updated : Aug 10, 2021, 10:35 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल (यूनाइटेड) सहित नौ राजनीतिक दलों को 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में उसके एक आदेश का पालन नहीं करने के लिए मंगलवार को अवमानना ​​का दोषी ठहराया. न्यायालय ने कहा कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले और राजनीति के अपराधीकरण में शामिल लोगों को कानून निर्माता (सांसद, विधायक) बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.

शीर्ष अदालत के एक आदेश के अनुरूप इन राजनीतिक दलों को उम्मीदवारों के चयन के 48 घंटे के भीतर या नामांकन पत्र दाखिल करने से कम से कम दो सप्ताह पहले उनके अतीत का ब्योरा प्रकाशित करने की जरूरत थी.

राजनीतिक दलों पर अलग-अलग जुर्माना लगाते हुए शीर्ष अदालत ने राजनीतिक व्यवस्था को अपराध से मुक्त करने के लिए कदम नहीं उठाने पर सरकार की विधायी शाखा की उदासीनता पर अफसोस जताया.

न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा, 'राष्ट्र निरंतर इंतजार कर रहा है, और धैर्य खो रहा है. राजनीति की प्रदूषित धारा को साफ करना स्पष्ट रूप से सरकार की विधायी शाखा की तात्कालिक चिंताओं में शामिल नहीं है.'

पीठ ने दो राजनीतिक दलों-भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) पर पांच-पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए कहा कि उन्होंने 'इस अदालत द्वारा जारी निर्देशों का बिल्कुल भी पालन नहीं किया है. जनता दल (यूनाइटेड), राष्ट्रीय जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी, कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया और उनसे आठ सप्ताह के भीतर निर्वाचन आयोग में रकम जमा करने को कहा. राष्ट्रीय लोक समता पार्टी पर जुर्माना नहीं लगाया गया.

निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने कहा था कि बिहार विधानसभा चुनाव में 10 राजनीतिक दलों ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले 469 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. पीठ ने कहा कि केवल जीत के आधार पर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों का चयन शीर्ष अदालत के 13 फरवरी 2020 के निर्देश का उल्लंघन है.

शीर्ष अदालत ने निर्वाचन आयोग को हर मतदाता को उसके जानने के अधिकार और सभी चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के आपराधिक अतीत के बारे में जानकारी की उपलब्धता के बारे में जागरूक करने के लिए एक व्यापक जागरूकता अभियान चलाने का निर्देश दिया. आदेश में कहा गया, 'यह सोशल मीडिया, वेबसाइट, टीवी विज्ञापनों, प्राइम टाइम डिबेट, पर्चा आदि सहित विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर किया जाएगा. इस उद्देश्य के लिए चार सप्ताह की अवधि के भीतर एक कोष बनाया जाना चाहिए, जिसमें अदालत की अवमानना के लिए जुर्माना अदा किया जाएगा.'

फैसले में कहा गया कि कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में अपराधीकरण का खतरा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है. पीठ ने कहा, 'साथ ही, कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि राजनीतिक व्यवस्था की शुद्धता बनाए रखने के लिए, आपराधिक अतीत वाले व्यक्तियों और राजनीतिक व्यवस्था के अपराधीकरण में शामिल लोगों को कानून बनाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. एकमात्र सवाल यह है कि क्या यह न्यायालय ऐसे निर्देश जारी करके ऐसा कर सकता है जिनका वैधानिक प्रावधानों में आधार नहीं है.'

यह भी पढ़ें- उम्मीदवारों के चयन के 48 घंटे के भीतर पार्टियों को देनी होगी मुकदमों की जानकारी

आदेश में कहा गया, 'नौ राजनीतिक दलों को 13 फरवरी, 2020 के आदेश की अवमानना करने का दोषी पाया गया है, लेकिन इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए एक उदार दृष्टिकोण अपनाया गया है कि ये पहले चुनाव थे, जो निर्देश जारी होने के बाद आयोजित किए गए थे.'

न्यायमूर्ति नरीमन ने पीठ के लिए 71 पेज का फैसले में कहा, 'हालांकि, हम उन्हें चेतावनी देते हैं कि उन्हें भविष्य में सतर्क रहना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस न्यायालय के साथ-साथ निर्वाचन आयोग द्वारा जारी निर्देशों का अक्षरश: पालन किया जाए.'

पीठ ने उम्मीदवारों के आपराधिक अतीत के बारे में विवरण प्रस्तुत करने के अपने पहले के निर्देशों में से एक को संशोधित किया. फैसले में कहा गया है कि शीर्ष अदालत बार-बार देश के कानून निर्माताओं से अपील करती रही है कि वे आवश्यक संशोधन लाने के लिए कदम उठाएं ताकि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों की राजनीति में भागीदारी निषिद्ध हो सके.

पीठ ने कहा, 'ये सभी अपीलें बहरे कानों के सामने अनसुनी रह गयी हैं. राजनीतिक दल गहरी नींद से नहीं जाग रहे हैं. शक्तियों के बंटवारे की संवैधानिक व्यवस्था के मद्देनजर, हम चाहते हैं कि इस मामले में तत्काल कुछ करने की आवश्यकता है, लेकिन हमारे हाथ बंधे हुए हैं और हम राज्य की विधायी शाखा के लिए आरक्षित क्षेत्र में अतिक्रमण नहीं कर सकते हैं.'

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल (यूनाइटेड) सहित नौ राजनीतिक दलों को 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में उसके एक आदेश का पालन नहीं करने के लिए मंगलवार को अवमानना ​​का दोषी ठहराया. न्यायालय ने कहा कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले और राजनीति के अपराधीकरण में शामिल लोगों को कानून निर्माता (सांसद, विधायक) बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.

शीर्ष अदालत के एक आदेश के अनुरूप इन राजनीतिक दलों को उम्मीदवारों के चयन के 48 घंटे के भीतर या नामांकन पत्र दाखिल करने से कम से कम दो सप्ताह पहले उनके अतीत का ब्योरा प्रकाशित करने की जरूरत थी.

राजनीतिक दलों पर अलग-अलग जुर्माना लगाते हुए शीर्ष अदालत ने राजनीतिक व्यवस्था को अपराध से मुक्त करने के लिए कदम नहीं उठाने पर सरकार की विधायी शाखा की उदासीनता पर अफसोस जताया.

न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा, 'राष्ट्र निरंतर इंतजार कर रहा है, और धैर्य खो रहा है. राजनीति की प्रदूषित धारा को साफ करना स्पष्ट रूप से सरकार की विधायी शाखा की तात्कालिक चिंताओं में शामिल नहीं है.'

पीठ ने दो राजनीतिक दलों-भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) पर पांच-पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए कहा कि उन्होंने 'इस अदालत द्वारा जारी निर्देशों का बिल्कुल भी पालन नहीं किया है. जनता दल (यूनाइटेड), राष्ट्रीय जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी, कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया और उनसे आठ सप्ताह के भीतर निर्वाचन आयोग में रकम जमा करने को कहा. राष्ट्रीय लोक समता पार्टी पर जुर्माना नहीं लगाया गया.

निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने कहा था कि बिहार विधानसभा चुनाव में 10 राजनीतिक दलों ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले 469 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. पीठ ने कहा कि केवल जीत के आधार पर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों का चयन शीर्ष अदालत के 13 फरवरी 2020 के निर्देश का उल्लंघन है.

शीर्ष अदालत ने निर्वाचन आयोग को हर मतदाता को उसके जानने के अधिकार और सभी चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के आपराधिक अतीत के बारे में जानकारी की उपलब्धता के बारे में जागरूक करने के लिए एक व्यापक जागरूकता अभियान चलाने का निर्देश दिया. आदेश में कहा गया, 'यह सोशल मीडिया, वेबसाइट, टीवी विज्ञापनों, प्राइम टाइम डिबेट, पर्चा आदि सहित विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर किया जाएगा. इस उद्देश्य के लिए चार सप्ताह की अवधि के भीतर एक कोष बनाया जाना चाहिए, जिसमें अदालत की अवमानना के लिए जुर्माना अदा किया जाएगा.'

फैसले में कहा गया कि कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में अपराधीकरण का खतरा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है. पीठ ने कहा, 'साथ ही, कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि राजनीतिक व्यवस्था की शुद्धता बनाए रखने के लिए, आपराधिक अतीत वाले व्यक्तियों और राजनीतिक व्यवस्था के अपराधीकरण में शामिल लोगों को कानून बनाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. एकमात्र सवाल यह है कि क्या यह न्यायालय ऐसे निर्देश जारी करके ऐसा कर सकता है जिनका वैधानिक प्रावधानों में आधार नहीं है.'

यह भी पढ़ें- उम्मीदवारों के चयन के 48 घंटे के भीतर पार्टियों को देनी होगी मुकदमों की जानकारी

आदेश में कहा गया, 'नौ राजनीतिक दलों को 13 फरवरी, 2020 के आदेश की अवमानना करने का दोषी पाया गया है, लेकिन इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए एक उदार दृष्टिकोण अपनाया गया है कि ये पहले चुनाव थे, जो निर्देश जारी होने के बाद आयोजित किए गए थे.'

न्यायमूर्ति नरीमन ने पीठ के लिए 71 पेज का फैसले में कहा, 'हालांकि, हम उन्हें चेतावनी देते हैं कि उन्हें भविष्य में सतर्क रहना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस न्यायालय के साथ-साथ निर्वाचन आयोग द्वारा जारी निर्देशों का अक्षरश: पालन किया जाए.'

पीठ ने उम्मीदवारों के आपराधिक अतीत के बारे में विवरण प्रस्तुत करने के अपने पहले के निर्देशों में से एक को संशोधित किया. फैसले में कहा गया है कि शीर्ष अदालत बार-बार देश के कानून निर्माताओं से अपील करती रही है कि वे आवश्यक संशोधन लाने के लिए कदम उठाएं ताकि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों की राजनीति में भागीदारी निषिद्ध हो सके.

पीठ ने कहा, 'ये सभी अपीलें बहरे कानों के सामने अनसुनी रह गयी हैं. राजनीतिक दल गहरी नींद से नहीं जाग रहे हैं. शक्तियों के बंटवारे की संवैधानिक व्यवस्था के मद्देनजर, हम चाहते हैं कि इस मामले में तत्काल कुछ करने की आवश्यकता है, लेकिन हमारे हाथ बंधे हुए हैं और हम राज्य की विधायी शाखा के लिए आरक्षित क्षेत्र में अतिक्रमण नहीं कर सकते हैं.'

Last Updated : Aug 10, 2021, 10:35 PM IST
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