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सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर पर समितियों को 2 महीने का समय दिया, अगली सुनवाई 13 अक्टूबर को - special investigation team

मणिपुर हिंसा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राहत कार्यों की निगरानी के लिए 3 महिला HC जजों का पैनल बना दिया है. इसके साथ ही सीबीआई जांच की निगरानी सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी करेंगे. इन समितियों को दो महीने का समय दिया गया. पढ़ें ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता सुमित सक्सेना की रिपोर्ट.

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Published : Aug 11, 2023, 1:40 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर पर गठित दो पैनलों को दो महीने का समय दिया है. यह समय देते हुए कोर्ट ने टिप्पणी की कि मणिपुर में आतंरिक संघर्ष के दौरान महिलाओं के खिलाफ हुई हिंसा सिर्फ और सिर्फ अत्याचार है. 7 अगस्त की कार्यवाही के आदेश पत्र के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली शीर्ष अदालत की पीठ आगे के निर्देशों के लिए 13 अक्टूबर को समिति के रिपोर्ट पर विचार करेगी.

अपने 36 पन्नों के आदेश में, शीर्ष अदालत ने अन्य कारणों के अलावा एफआईआर दर्ज करने में देरी और गिरफ्तारी न होने का जिक्र करते हुए 'जांच मशीनरी द्वारा जांच की धीमी गति' के लिए एन बीरेन सिंह सरकार की आलोचना की.

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और महाराष्ट्र के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) दत्तात्रेय पडसलगीकर और उच्च न्यायालय की तीन सेवानिवृत्त महिला न्यायाधीशों वाली एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति को सांप्रदायिक हिंसा प्रभावित मणिपुर में जांच और बचाव, राहत और पुनर्वास उपायों की प्रभावशीलता पर अपनी रिपोर्ट देने के लिए दो महीने का समय दिया है. उच्च न्यायालय के तीन पूर्व न्यायाधीशों की सर्व-महिला समिति को महिलाओं के खिलाफ हिंसा की प्रकृति की जांच करने और पीड़ितों को हुए नुकसान के भुगतान के अलावा राहत शिविरों में रखे गए लोगों की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक भलाई सुनिश्चित करने का काम सौंपा गया है.

केंद्र, राज्य सहयोग करेंगे : सुप्रीम कोर्ट ने अपने विस्तृत आदेश में कहा है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार इस जांच को पूरा करने के लिए आवश्यक कोई भी सहायता समितियों को प्रदान करेगी. समिति निष्कर्ष एक रिपोर्ट के रूप में सुप्रीम कोर्ट को प्रस्तुत करेगी. पीठ ने अपने आदेश में कहा कि सांप्रदायिक हिंसा के समय, भीड़ किसी समुदाय को अधीनता का एहसास कराने के लिए यौन हिंसा का इस्तेमाल करती है. संघर्ष के दौरान महिलाओं के खिलाफ इस तरह की भयानक हिंसा एक अत्याचार के अलावा और कुछ नहीं है. लोगों को ऐसी निंदनीय हिंसा करने से रोकना और जिन लोगों को हिंसा निशाना बनाया जा रहा है उनकी रक्षा करना राज्य का परम और महत्वपूर्ण कर्तव्य है.

पडसलगीकर क्या करेंगे? : पडसलगीकर महिलाओं के खिलाफ अपराध के कम से कम 12 मामलों में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा की जाने वाली जांच की देखरेख करेंगे. अदालत के आदेश में स्पष्ट किया गया है कि सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी, पूर्वोत्तर राज्य में हिंसा के संबंध में दर्ज 6,500 से अधिक अन्य प्राथमिक सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) की जांच के लिए मणिपुर सरकार की ओर से गठित 42 विशेष जांच टीमों (एसआईटी) की निगरानी और पर्यवेक्षण भी करेंगे. इसमें कहा गया है कि पडसलगिकर से उन आरोपों की जांच करने का भी अनुरोध किया गया है कि कुछ पुलिस अधिकारियों ने मणिपुर में संघर्ष के दौरान हिंसा (यौन हिंसा सहित) के अपराधियों के साथ मिलीभगत की थी.

सर्व-महिला समिति की भूमिका : अपने 36 पेज के आदेश में, शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय के तीन पूर्व न्यायाधीशों की सर्व-महिला समिति महिलाओं के खिलाफ हिंसा की प्रकृति की जांच करेगी. इससे अलावा यह समिति स्थापित राहत शिविरों की स्थिति, विस्थापित व्यक्तियों के लिए अतिरिक्त शिविरों के सुझाव, हिंसा के पीड़ितों को मुआवजे का भुगतान और क्षतिपूर्ति और राहत शिविरों में लोगों की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य की देखभाल सुनिश्चित करेगी.

फैक्ट फाइंडिंग की आवश्यकता : शीर्ष अदालत ने कहा कि हिंसा के पीड़ितों को उनके समुदाय की परवाह किए बिना उपचारात्मक उपाय प्राप्त होने चाहिए. इसके साथ ही हिंसा के लिए जिम्मेदार अपराधियों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए. अदालत ने कहा कि कुछ गंभीर मामलों में जिनमें गवाहों के बयान लिये गये हैं दर्शाते हैं कि कानून को लागू करने वाली संस्थाएं हिंसा को नियंत्रित करने में विफल रहीं बल्कि कुछ स्थितियों में, उनकी अपराधियों के साथ मिलीभगत का संदेह भी होता है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे आरोपों के लिए ऑब्जेक्टिव फैक्ट फाइंडिंग की है.

न्याय का वादा : अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि राज्य का प्रत्येक अधिकारी या राज्य का अन्य कर्मचारी जो न केवल अपने संवैधानिक और आधिकारिक कर्तव्यों की उपेक्षा का दोषी है, बल्कि अपराधियों के साथ मिलकर स्वयं अपराधी बनने का भी दोषी है, उसे जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए. यह संविधान से इस न्यायालय का किया गया न्याय का वादा है.

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कानून का शासन बहाल हो : शीर्ष अदालत ने कहा कि यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि हिंसा रुके, हिंसा के अपराधियों को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार दंडित किया जाए और इसके परिणामस्वरूप न्याय प्रणाली में समुदाय का विश्वास और भरोसा कायम हो. दूसरा, यह सुनिश्चित करने की अत्यधिक आवश्यकता है कि कानून का शासन बहाल हो और जांच और अभियोजन प्रक्रिया में जनता का विश्वास कायम रहे.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर पर गठित दो पैनलों को दो महीने का समय दिया है. यह समय देते हुए कोर्ट ने टिप्पणी की कि मणिपुर में आतंरिक संघर्ष के दौरान महिलाओं के खिलाफ हुई हिंसा सिर्फ और सिर्फ अत्याचार है. 7 अगस्त की कार्यवाही के आदेश पत्र के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली शीर्ष अदालत की पीठ आगे के निर्देशों के लिए 13 अक्टूबर को समिति के रिपोर्ट पर विचार करेगी.

अपने 36 पन्नों के आदेश में, शीर्ष अदालत ने अन्य कारणों के अलावा एफआईआर दर्ज करने में देरी और गिरफ्तारी न होने का जिक्र करते हुए 'जांच मशीनरी द्वारा जांच की धीमी गति' के लिए एन बीरेन सिंह सरकार की आलोचना की.

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और महाराष्ट्र के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) दत्तात्रेय पडसलगीकर और उच्च न्यायालय की तीन सेवानिवृत्त महिला न्यायाधीशों वाली एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति को सांप्रदायिक हिंसा प्रभावित मणिपुर में जांच और बचाव, राहत और पुनर्वास उपायों की प्रभावशीलता पर अपनी रिपोर्ट देने के लिए दो महीने का समय दिया है. उच्च न्यायालय के तीन पूर्व न्यायाधीशों की सर्व-महिला समिति को महिलाओं के खिलाफ हिंसा की प्रकृति की जांच करने और पीड़ितों को हुए नुकसान के भुगतान के अलावा राहत शिविरों में रखे गए लोगों की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक भलाई सुनिश्चित करने का काम सौंपा गया है.

केंद्र, राज्य सहयोग करेंगे : सुप्रीम कोर्ट ने अपने विस्तृत आदेश में कहा है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार इस जांच को पूरा करने के लिए आवश्यक कोई भी सहायता समितियों को प्रदान करेगी. समिति निष्कर्ष एक रिपोर्ट के रूप में सुप्रीम कोर्ट को प्रस्तुत करेगी. पीठ ने अपने आदेश में कहा कि सांप्रदायिक हिंसा के समय, भीड़ किसी समुदाय को अधीनता का एहसास कराने के लिए यौन हिंसा का इस्तेमाल करती है. संघर्ष के दौरान महिलाओं के खिलाफ इस तरह की भयानक हिंसा एक अत्याचार के अलावा और कुछ नहीं है. लोगों को ऐसी निंदनीय हिंसा करने से रोकना और जिन लोगों को हिंसा निशाना बनाया जा रहा है उनकी रक्षा करना राज्य का परम और महत्वपूर्ण कर्तव्य है.

पडसलगीकर क्या करेंगे? : पडसलगीकर महिलाओं के खिलाफ अपराध के कम से कम 12 मामलों में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा की जाने वाली जांच की देखरेख करेंगे. अदालत के आदेश में स्पष्ट किया गया है कि सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी, पूर्वोत्तर राज्य में हिंसा के संबंध में दर्ज 6,500 से अधिक अन्य प्राथमिक सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) की जांच के लिए मणिपुर सरकार की ओर से गठित 42 विशेष जांच टीमों (एसआईटी) की निगरानी और पर्यवेक्षण भी करेंगे. इसमें कहा गया है कि पडसलगिकर से उन आरोपों की जांच करने का भी अनुरोध किया गया है कि कुछ पुलिस अधिकारियों ने मणिपुर में संघर्ष के दौरान हिंसा (यौन हिंसा सहित) के अपराधियों के साथ मिलीभगत की थी.

सर्व-महिला समिति की भूमिका : अपने 36 पेज के आदेश में, शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय के तीन पूर्व न्यायाधीशों की सर्व-महिला समिति महिलाओं के खिलाफ हिंसा की प्रकृति की जांच करेगी. इससे अलावा यह समिति स्थापित राहत शिविरों की स्थिति, विस्थापित व्यक्तियों के लिए अतिरिक्त शिविरों के सुझाव, हिंसा के पीड़ितों को मुआवजे का भुगतान और क्षतिपूर्ति और राहत शिविरों में लोगों की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य की देखभाल सुनिश्चित करेगी.

फैक्ट फाइंडिंग की आवश्यकता : शीर्ष अदालत ने कहा कि हिंसा के पीड़ितों को उनके समुदाय की परवाह किए बिना उपचारात्मक उपाय प्राप्त होने चाहिए. इसके साथ ही हिंसा के लिए जिम्मेदार अपराधियों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए. अदालत ने कहा कि कुछ गंभीर मामलों में जिनमें गवाहों के बयान लिये गये हैं दर्शाते हैं कि कानून को लागू करने वाली संस्थाएं हिंसा को नियंत्रित करने में विफल रहीं बल्कि कुछ स्थितियों में, उनकी अपराधियों के साथ मिलीभगत का संदेह भी होता है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे आरोपों के लिए ऑब्जेक्टिव फैक्ट फाइंडिंग की है.

न्याय का वादा : अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि राज्य का प्रत्येक अधिकारी या राज्य का अन्य कर्मचारी जो न केवल अपने संवैधानिक और आधिकारिक कर्तव्यों की उपेक्षा का दोषी है, बल्कि अपराधियों के साथ मिलकर स्वयं अपराधी बनने का भी दोषी है, उसे जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए. यह संविधान से इस न्यायालय का किया गया न्याय का वादा है.

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