नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को उपभोक्ता आयोग में मध्यस्थता प्रकोष्ठ स्थापित करने और ई-फाइलिंग प्रणाली को संचालित करने का निर्देश दिया है. अदालत ने कहा, ' कभी-कभी विवादों के समाधान का बेहतर तरीका नहीं निकलता तो मध्यस्थता महत्वपूर्ण हो जाती है. ऐसे में सभी राज्यों के लिए मध्यस्थता प्रकोष्ठ स्थापित करना अनिवार्य है … इसी प्रकार ई-फाइलिंग प्रणाली को भी उक्त समयावधि में चालू करने का निर्देश दिया गया है.
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ पूरे भारत में जिला और राज्य, सदस्य और कर्मचारियों की नियुक्ति में सरकारों की निष्क्रियता के संबंध में एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. अदालत को बताया गया था कि राज्य आयोग और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के जिला आयोगों में अध्यक्ष और सदस्यों की रिक्तियां उपयुक्त उम्मीदवारों की कमी, मानदंडों के अनुसार योग्य व्यक्तियों की कमी के कारण हैं, जिन्हें केंद्र सरकार से छूट और वेतन और भत्ते की आवश्यकता हो सकती है. कुछ राज्यों ने यह भी कहा कि मामलों की संख्या इतनी सीमित है कि रिक्तियों को भरने की आवश्यकता नहीं है. ऐसी स्थिति के लिए अदालत ने राज्यों को मामले में न्याय मित्र को डेटा प्रस्तुत करने के लिए कहा है जो तब वास्तविकता का विश्लेषण करेगा. कुछ राज्यों में पद भी स्वीकृत नहीं हैं.
कोर्ट ने आदेश दिया कि 'जब तक छूट की अनुमति नहीं दी जाती है, हम पद की स्वीकृति के लिए नहीं कहते हैं. लेकिन मंजूरी की प्रक्रिया आज से एक महीने के भीतर पूरी की जानी चाहिए, ऐसा नहीं करने पर नामित सचिव को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होना होगा.' कोर्ट ने कहा कि जो राज्य पदों की मंजूरी से छूट चाहते हैं, उन्हें एमिकस क्यूरी को सूचित करना होगा और यदि उनका मानना है कि पदों की आवश्यकता है और कोई छूट नहीं हो सकती है तो राज्यों को तारीख से एक महीने के भीतर पदों को मंजूरी देनी होगी. धन की कमी के कारण बुनियादी ढांचे के मुद्दों को भी अदालत में रखा गया था. कोर्ट ने कहा कि अब चूंकि फंड उपलब्ध हो गया है, इसलिए राज्य एमिकस क्यूरी को प्रगति रिपोर्ट सौंपेंगे. इस मामले पर 26 जुलाई, 2022 को फिर से सुनवाई होगी.
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