नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को यह बात कही कि यह मीडिया पर पूर्व-सेंसरशिप या पोस्ट-सेंसरशिप लागू नहीं करना चाहता है और टेलीविजन चैनलों का स्व-नियमन प्रभावी होना चाहिए. सर्वोच्च कोर्ट ने इंगित किया कि सुशांत सिंह राजपूत मामले के दौरान मीडिया पागल हो गया था और सुझाव दिया कि टीवी चैनलों के खिलाफ दंड मुनाफे के अनुपात में होना चाहिए.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने संकेत दिया कि वह टीवी चैनलों के विनियमन को मजबूत करेगी. न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा के साथ वाली पीठ ने कहा कि जब तक नियमों को सख्त नहीं बनाया जाता, तब तक टीवी चैनलों पर इसका पालन करने की कोई बाध्यता नहीं है. मुख्य न्यायाधीश ने सवाल किया कि क्या किसी चैनल पर एक लाख रुपये का जुर्माना वास्तव में प्रभावी होगा?
उन्होंने एक वकील से कहा कि आपका जुर्माना उस शो से होने वाले मुनाफ़े के अनुपात में होना चाहिए. हम मीडिया पर पूर्व सेंसरशिप या पोस्ट सेंसरशिप नहीं लगाना चाहते...लेकिन स्व-नियामक तंत्र को प्रभावी होना चाहिए. सुशांत सिंह राजपूत मामले में मीडिया उन्माद के संदर्भ में पीठ ने कहा कि हर कोई पागल हो गया है और कुछ टीवी चैनल ऐसे मामलों में आपराधिक जांच शुरू कर देते हैं और स्व-नियामक तंत्र को प्रभावी बनाना होगा.
पीठ ने ढांचे को मजबूत करने का प्रस्ताव दिया और कहा कि उसने अप-लिंकिंग और डाउनलिंकिंग दिशानिर्देश देखे हैं. एनबीडीए (पूर्व में न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन) दिशानिर्देशों के उल्लंघन के लिए समाचार चैनलों पर लगाए गए 1 लाख रुपये के मौजूदा जुर्माने पर सुझाव मांगते हुए पीठ ने कहा कि वह बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले में बदलाव करेगी और अब नियमों को भी मजबूत करेगी.
पीठ ने न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील अरविंद दातार से टीवी चैनलों के स्व-नियमन पर शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीशों एके सीकरी और आरवी रवींद्रन से सुझाव मांगने को भी कहा. शीर्ष अदालत बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें टीवी चैनलों के स्व-नियमन में कमी के बारे में प्रतिकूल टिप्पणियां की गई थीं.
सुनवाई के दौरान दातार ने दलील दी थी कि अगर किसी चैनल के खिलाफ प्रतिकूल आदेश पारित किया जाता है, तो उनका लाइसेंस नवीनीकृत नहीं किया जाएगा. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि स्व-नियामक तंत्र को प्रभावी होना चाहिए और वह इस बात से सहमत हैं कि इसमें सरकारी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए.
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि तीन स्तरीय व्यवस्था है और अन्य चैनलों का प्रतिनिधित्व करने वाले अन्य संघ भी हैं और सरकार इस मामले में उन्हें भी रिकॉर्ड में रखेगी. विस्तृत दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन की याचिका पर नोटिस जारी किया.