नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को पश्चिम बंगाल की मंत्री बीरबाहा हंसदा की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें अदालत की पूर्व अनुमति के बिना भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ नए सिरे से प्राथमिकी दर्ज करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने तृणमूल कांग्रेस के नेता को कलकत्ता उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने को कहा. पीठ ने कहा, 'उच्च न्यायालय में 10 जनवरी को इस मामले की सुनवाई होनी है. इस अदालत के लिए इस मामले में अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करना उचित नहीं है. हम याचिकाकर्ताओं को उच्च न्यायालय जाने और वहां मामले को आगे बढ़ाने की स्वतंत्रता देते हैं.'
शुरुआत में हांसदा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अदालत को राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता अधिकारी के खिलाफ कोई नई प्राथमिकी दर्ज नहीं करने के उच्च न्यायालय के आदेश के बारे में बताया.
सिब्बल ने कहा, 'राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ एक अलग अपील दायर की है और इसलिए हम अनुरोध करते हैं कि इस मामले को राज्य सरकार की अपील के साथ लिया जाए.' भाजपा नेता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस पटवालिया ने कहा कि अधिकारी के खिलाफ हर दिन प्राथमिकी दर्ज की जा रही है और इस पृष्ठभूमि में उच्च न्यायालय ने आदेश पारित किया था.
उन्होंने कहा कि एक दिन अधिकारी के प्रतिद्वंद्वी एक सार्वजनिक कार्यक्रम में भगदड़ को लेकर प्राथमिकी दर्ज कराना चाहते थे और दूसरे दिन कुछ अन्य कारणों से. यह सब राजनीतिक है. याचिकाकर्ता ने यह खुलासा नहीं किया है कि वह तृणमूल कांग्रेस की एक सक्रिय सदस्य और पश्चिम बंगाल सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं.
पटवालिया ने कहा कि शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार से कलकत्ता उच्च न्यायालय का रुख करने को कहा था जिसने अब मामले की सुनवाई 10 जनवरी के लिए सूचीबद्ध कर दी है. पीठ ने कहा कि वह याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय में जाने की अनुमति देगी, खासकर तब जब मामला उच्च न्यायालय के संज्ञान में हो.
पिछले साल 15 दिसंबर को शीर्ष अदालत ने पश्चिम बंगाल सरकार की उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था, जिसमें अधिकारी और अन्य के खिलाफ पश्चिम बर्धमान जिले में एक कंबल वितरण कार्यक्रम में भगदड़ के संबंध में प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई थी.
शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार से कहा था कि अधिकारी के खिलाफ किसी भी प्राथमिकी के पंजीकरण पर 'पूर्ण रोक' लगाने वाले उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश पीठ के पहले के आदेश में संशोधन की मांग करने वाली अपनी याचिका के बजाय कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से संपर्क करें.
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