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सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग और केंद्र से पूछा- फ्री रेवड़ी पर कैसे लगे रोक एक सप्ताह में बताएं - election commission

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अगले सात दिनों में चुनाव से पहले बांटे जाने वाले मुफ्त के गिफ्ट (रेवड़ियों) को नियंत्रित करने के लिए एक रिपोर्ट मांगी है. इस संबंध में कोर्ट ने केंद्र सरकार, चुनाव आयोग, सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल सहित कई याचिकाकर्ताओं के विशेषज्ञ समूह के गठन को लेकर सुझाव भी मांगा है.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
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Published : Aug 3, 2022, 3:14 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र सरकार, चुनाव आयोग, सीनियर एडवोकेट और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) के अलावा कई याचिकाकर्ताओं के एक विशेषज्ञ समूह के गठन पर अपना सुझाव मांगा है. सुप्रीम कोर्ट ने ये सुझाव अगले 7 दिनों के भीतर देने को कहा है. ये समूह इस बात की भी जांच करेगा कि चुनाव से पहले बांटे जाने वाले मुफ्त के गिफ्ट (रेवड़ियों) को कैसे नियंत्रित किया जाए इस पर सुप्रीम कोर्ट ने एक रिपोर्ट मांगी है. मामले की फिर से 8 अगस्त को सुनवाई होगी.

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त में दी जाने वाली चीजों को कैसे नियंत्रित किया जाए. इस पर सुझाव देने के लिए नीति आयोग, वित्त आयोग, सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों, आरबीआई और अन्य हितधारकों से मिलकर एक शीर्ष निकाय की आवश्यकता है.

सीजेआई एनवी रमना (CJI NV Ramana), न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी (Justice Krishna Murari) और न्यायमूर्ति हिमा कोहली (Justice Hima Kohli) की पीठ भाजपा सदस्य और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय (advocate Ashwini Upadhyay) की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने अपने चुनावी घोषणापत्र में मुफ्त की पेशकश करने वाले राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए कहा कि इससे राज्य कर्ज में डूबे हैं.

वहीं सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का समर्थन करते हुए कहा कि इसका मतदाताओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और बाईं जेब से कुछ प्राप्त करने वाली दाहिनी जेब की तरह है. उन्होंने कहा कि इस तरह हम आर्थिक आपदाओं की ओर बढ़ते हैं. सीजेआई ने कहा कि मामले की जांच की आवश्यकता है लेकिन बेहतर होगा कि सभी हितधारक एक साथ आएं, इस मुद्दे पर बहस करें और एक रिपोर्ट बनाएं. वहीं कपिल सिब्बल के संसद में बहस करने के सुझाव पर, सीजेआई ने कहा कि कोई भी राजनीतिक दल ऐसा नहीं करेगा और बेहतर होगा कि केंद्र, विपक्ष, सीएम, चुनाव आयोग, नीति आयोग, आरबीआई आदि जैसे संगठन शामिल हों और मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जाए.

अदालत ने कहा कि उनके द्वारा एक रिपोर्ट तैयार की जा सकती है और उस पर अदालत विचार कर सकती है क्योंकि अंततः चुनाव आयोग और सरकार को ही इसे लागू करना होता है. कोर्ट ने सभी पक्षों को अगली सुनवाई पर चर्चा करने और अपने सुझाव पेश करने का निर्देश दिया.

ये भी पढ़ें - रामसेतु को राष्ट्रीय विरासत स्थल घोषित करने संबंधी याचिका पर होगी सुनवाई

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र सरकार, चुनाव आयोग, सीनियर एडवोकेट और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) के अलावा कई याचिकाकर्ताओं के एक विशेषज्ञ समूह के गठन पर अपना सुझाव मांगा है. सुप्रीम कोर्ट ने ये सुझाव अगले 7 दिनों के भीतर देने को कहा है. ये समूह इस बात की भी जांच करेगा कि चुनाव से पहले बांटे जाने वाले मुफ्त के गिफ्ट (रेवड़ियों) को कैसे नियंत्रित किया जाए इस पर सुप्रीम कोर्ट ने एक रिपोर्ट मांगी है. मामले की फिर से 8 अगस्त को सुनवाई होगी.

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त में दी जाने वाली चीजों को कैसे नियंत्रित किया जाए. इस पर सुझाव देने के लिए नीति आयोग, वित्त आयोग, सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों, आरबीआई और अन्य हितधारकों से मिलकर एक शीर्ष निकाय की आवश्यकता है.

सीजेआई एनवी रमना (CJI NV Ramana), न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी (Justice Krishna Murari) और न्यायमूर्ति हिमा कोहली (Justice Hima Kohli) की पीठ भाजपा सदस्य और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय (advocate Ashwini Upadhyay) की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने अपने चुनावी घोषणापत्र में मुफ्त की पेशकश करने वाले राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए कहा कि इससे राज्य कर्ज में डूबे हैं.

वहीं सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का समर्थन करते हुए कहा कि इसका मतदाताओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और बाईं जेब से कुछ प्राप्त करने वाली दाहिनी जेब की तरह है. उन्होंने कहा कि इस तरह हम आर्थिक आपदाओं की ओर बढ़ते हैं. सीजेआई ने कहा कि मामले की जांच की आवश्यकता है लेकिन बेहतर होगा कि सभी हितधारक एक साथ आएं, इस मुद्दे पर बहस करें और एक रिपोर्ट बनाएं. वहीं कपिल सिब्बल के संसद में बहस करने के सुझाव पर, सीजेआई ने कहा कि कोई भी राजनीतिक दल ऐसा नहीं करेगा और बेहतर होगा कि केंद्र, विपक्ष, सीएम, चुनाव आयोग, नीति आयोग, आरबीआई आदि जैसे संगठन शामिल हों और मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जाए.

अदालत ने कहा कि उनके द्वारा एक रिपोर्ट तैयार की जा सकती है और उस पर अदालत विचार कर सकती है क्योंकि अंततः चुनाव आयोग और सरकार को ही इसे लागू करना होता है. कोर्ट ने सभी पक्षों को अगली सुनवाई पर चर्चा करने और अपने सुझाव पेश करने का निर्देश दिया.

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