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SC ने सीआईएसएफ कांस्टेबल की बर्खास्तगी पर मुहर लगायी, ईमानदारी एवं अनुशासन को सर्वोपरि बताया - High Court Of Odisha

सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने सीआईएसएफ (CISF) के एक कांस्टेबल की बर्खास्तगी से जुड़े आदेश को इसलिए बरकरार रखा क्यों कि बल में ईमानदारी, अनुशासन के साथ विश्वास का प्रमुख स्थान है. वहीं कांस्टेबल ड्यूटी के दौरान सोता हुआ पाया गया था, इस पर अधिकारी के द्वारा डांटे जाने पर उसने हमला कर दिया था.

Supreme court
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
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Published : Mar 6, 2022, 6:12 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme court) ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) के एक कांस्टेबल की बर्खास्तगी से संबंधित आदेश को यह कहते हुए बरकरार रखा कि इस बल की प्रकृति को देखते हुए ईमानदारी, अनुशासन एवं परस्पर विश्वास 'सर्वोपरि' है. गश्त ड्यूटी के दौरान यह कांस्टेबल सोता हुआ पाया गया था और जब उसे इस बात के लिए एक अधिकारी ने डांटा था तब उसने उसपर कथित रूप से हमला कर दिया था.

शीर्ष अदालत ने कहा कि जब कदाचार का आरोप साबित हो जाता है तो सजा की मात्रा निर्णय लेने वाले प्राधिकार के विवेक पर निर्भर करती है और यह उसके अधिकार क्षेत्र में आता है. न्यायमूर्ति संजीव खन्ना (Justice Sanjiv Khanna) और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी (Justice Bela M Trivedi) की खंडपीठ ने कहा, 'ऐसी विवेकाधीन शक्तियों में तभी न्यायिक हस्तक्षेप किया जाता है जब उनका गलती के मुकाबले अत्यधिक इस्तेमाल किया गया हो, क्योंकि संवैधानिक अदालतें न्यायिक समीक्षा की शक्ति का इस्तेमाल करते हुए अपीलीय प्राधिकरण की भूमिका नहीं अपना सकती हैं.'

शीर्ष अदालत ने केंद्र एवं अन्य की अपील पर यह फैसला सुनाया. अपीलकर्ताओं ने ओडिशा उच्च न्यायालय (High Court Of Odisha) की एक खंडपीठ के जनवरी 2018 के फैसले को चुनौती दी थी. उच्च न्यायालय ने बर्खास्तगी की सजा को दरकिनार करने के एकल पीठ के फैसले पर मुहर लगायी थी. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सुनायी गयी सजा की मात्रा के गुण-दोष पर अदालतें तब तक हस्तक्षेप नही कर सकती हैं जब तक सजा सुनाने में विवेक का इस्तेमाल इस भावना के बिल्कुल विपरीत हो कि यह बिल्कुल गैर आनुपातिक है.

ये भी पढ़ें - बलात्कार-हत्या मामला : उच्चतम न्यायालय ने मौत की सजा के क्रियान्वयन पर रोक लगाई

शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा कि यह व्यक्ति केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल का कांस्टेबल है और यह अंतरिक्ष विभाग, परमाणु ऊर्जा विभाग जैसे रणनीतिक महत्व के प्रतिष्ठानों एवं भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मूलाधार प्रतिष्ठानों के परिसरों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए जिम्मेदार विशेष पुलिस बल है. शीर्ष अदालत ने 24 फरवरी को अपने फैसले में कहा, 'इस अपीलकर्ता बल की प्रकृति को देखते हुए ईमानदारी, अनुशासन एवं परस्पर विश्वास सर्वोपरि है.'

उसने कहा कि जब मामला, जांच करने और फटकार लगाने वाले अधिकारी पर हिंसा और हमले का हो तो कोई उदारता या छूट नहीं दी जा सकती. शीर्ष अदालत ने कहा कि उक्त कांस्टेबल 2000 में तीन और चार जनवरी की रात को कनिहा में राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम संयंत्र के दो वाच टॉवरों के बीच गश्ती के लिए पाली ड्यूटी में था और उसे एक अधिकारी ने सोते हुए पाया था.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme court) ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) के एक कांस्टेबल की बर्खास्तगी से संबंधित आदेश को यह कहते हुए बरकरार रखा कि इस बल की प्रकृति को देखते हुए ईमानदारी, अनुशासन एवं परस्पर विश्वास 'सर्वोपरि' है. गश्त ड्यूटी के दौरान यह कांस्टेबल सोता हुआ पाया गया था और जब उसे इस बात के लिए एक अधिकारी ने डांटा था तब उसने उसपर कथित रूप से हमला कर दिया था.

शीर्ष अदालत ने कहा कि जब कदाचार का आरोप साबित हो जाता है तो सजा की मात्रा निर्णय लेने वाले प्राधिकार के विवेक पर निर्भर करती है और यह उसके अधिकार क्षेत्र में आता है. न्यायमूर्ति संजीव खन्ना (Justice Sanjiv Khanna) और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी (Justice Bela M Trivedi) की खंडपीठ ने कहा, 'ऐसी विवेकाधीन शक्तियों में तभी न्यायिक हस्तक्षेप किया जाता है जब उनका गलती के मुकाबले अत्यधिक इस्तेमाल किया गया हो, क्योंकि संवैधानिक अदालतें न्यायिक समीक्षा की शक्ति का इस्तेमाल करते हुए अपीलीय प्राधिकरण की भूमिका नहीं अपना सकती हैं.'

शीर्ष अदालत ने केंद्र एवं अन्य की अपील पर यह फैसला सुनाया. अपीलकर्ताओं ने ओडिशा उच्च न्यायालय (High Court Of Odisha) की एक खंडपीठ के जनवरी 2018 के फैसले को चुनौती दी थी. उच्च न्यायालय ने बर्खास्तगी की सजा को दरकिनार करने के एकल पीठ के फैसले पर मुहर लगायी थी. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सुनायी गयी सजा की मात्रा के गुण-दोष पर अदालतें तब तक हस्तक्षेप नही कर सकती हैं जब तक सजा सुनाने में विवेक का इस्तेमाल इस भावना के बिल्कुल विपरीत हो कि यह बिल्कुल गैर आनुपातिक है.

ये भी पढ़ें - बलात्कार-हत्या मामला : उच्चतम न्यायालय ने मौत की सजा के क्रियान्वयन पर रोक लगाई

शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा कि यह व्यक्ति केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल का कांस्टेबल है और यह अंतरिक्ष विभाग, परमाणु ऊर्जा विभाग जैसे रणनीतिक महत्व के प्रतिष्ठानों एवं भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मूलाधार प्रतिष्ठानों के परिसरों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए जिम्मेदार विशेष पुलिस बल है. शीर्ष अदालत ने 24 फरवरी को अपने फैसले में कहा, 'इस अपीलकर्ता बल की प्रकृति को देखते हुए ईमानदारी, अनुशासन एवं परस्पर विश्वास सर्वोपरि है.'

उसने कहा कि जब मामला, जांच करने और फटकार लगाने वाले अधिकारी पर हिंसा और हमले का हो तो कोई उदारता या छूट नहीं दी जा सकती. शीर्ष अदालत ने कहा कि उक्त कांस्टेबल 2000 में तीन और चार जनवरी की रात को कनिहा में राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम संयंत्र के दो वाच टॉवरों के बीच गश्ती के लिए पाली ड्यूटी में था और उसे एक अधिकारी ने सोते हुए पाया था.

(पीटीआई-भाषा)

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