ETV Bharat / bharat

डीएनए रिपोर्ट में जैविक पिता साबित न होने पर भी क्या भरण-पोषण देना चाहिए? सुप्रीम कोर्ट विचार करने को राजी - सुप्रीम कोर्ट

डीएनए रिपोर्ट में जैविक पिता साबित न होने पर भी क्या किसी व्यक्ति को बच्चे के भरण पोषण के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए राजी हो गया है. DNA report, Supreme Court, maintenance to child.

SC
सुप्रीम कोर्ट
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 9, 2023, 8:25 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट इस बात पर विचार करने को राजी हो गया है कि डीएनए रिपोर्ट में जैविक पिता साबित नहीं होने पर भी क्या कोई पुरुष बच्चे को भरण-पोषण देने के लिए उत्तरदायी होगा.

न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने एक महिला की ओर से दायर विशेष अनुमति याचिका पर पुरुष को नोटिस जारी किया. शीर्ष अदालत ने शख्स से चार हफ्ते के भीतर जवाब मांगा है.

शीर्ष अदालत ने 4 दिसंबर को दिए अपने आदेश में कहा, 'आंशिक चुनौती उच्च न्यायालय के 17 अक्टूबर, 2023 के आक्षेपित फैसले के पैराग्राफ 26 को है, जहां न्यायाधीश ने कहा कि डीएनए रिपोर्ट के मद्देनजर, बच्चा भरण-पोषण का दावा करने का हकदार नहीं है, हालांकि बच्चे का जन्म निर्वाह के दौरान हुआ था. याचिकाकर्ता (मां) और प्रतिवादी (पुरुष) के बीच विवाह का मामला.'

महिला ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था, जिसके तहत उसके बच्चे को भरण-पोषण देने से इनकार कर दिया गया था.

उच्च न्यायालय ने कहा था कि रिकॉर्ड में मौजूद डीएनए रिपोर्ट के मद्देनजर, व्यक्ति को बच्चे को भरण-पोषण का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है. हाई कोर्ट ने कहा था कि इस संबंध में कानून भी तय है कि जैविक पिता अपने बच्चे के भरण-पोषण के लिए जिम्मेदार है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि पुरुष और महिला शादी से पहले एक साथ रहते थे और इसलिए यह तथ्य कि शादी के कुछ महीनों के भीतर बच्चे का जन्म हुआ, इस मामले पर कोई असर नहीं डाल सकता.

पीठ ने कहा कि 'इस तरह के विवाद के समर्थन में विद्वान वकील 2023 में रिपोर्ट किए गए अपर्णा अजिंकिया फिरोदिया बनाम अजिंक्य अरुण फिरोदिया के फैसले पर भरोसा करेंगे, जिसमें तर्क दिया गया कि अगर शादी से पहले एक पुरुष और महिला एक साथ रहते थे लेकिन डीएनए टेस्ट से पता चला कि पति से बच्चा पैदा नहीं हुआ. ऐसे में जब तक पुरुष द्वारा महिला तक पहुंच न होने का सबूत न हो, बच्चे के भरण-पोषण से इनकार करने के लिए डीएनए परीक्षण निर्णायक नहीं होगा.'

व्यक्ति ने दावा किया कि शादी के समय वह नाबालिग था और शादी की वैधता का सवाल अलग से लंबित है. महिला ने दावा किया था कि उस पर शादी की शर्त के तहत पुरुष ने अपने दो दोस्तों के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करने के लिए दबाव डाला था.

ये भी पढ़ें

शादी के बाद पैदा हुए बच्चे से मैच नहीं हुआ पिता का DNA, हाईकोर्ट ने कहा जैविक पिता ही बच्चे के भरण पोषण का जिम्मेदार

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट इस बात पर विचार करने को राजी हो गया है कि डीएनए रिपोर्ट में जैविक पिता साबित नहीं होने पर भी क्या कोई पुरुष बच्चे को भरण-पोषण देने के लिए उत्तरदायी होगा.

न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने एक महिला की ओर से दायर विशेष अनुमति याचिका पर पुरुष को नोटिस जारी किया. शीर्ष अदालत ने शख्स से चार हफ्ते के भीतर जवाब मांगा है.

शीर्ष अदालत ने 4 दिसंबर को दिए अपने आदेश में कहा, 'आंशिक चुनौती उच्च न्यायालय के 17 अक्टूबर, 2023 के आक्षेपित फैसले के पैराग्राफ 26 को है, जहां न्यायाधीश ने कहा कि डीएनए रिपोर्ट के मद्देनजर, बच्चा भरण-पोषण का दावा करने का हकदार नहीं है, हालांकि बच्चे का जन्म निर्वाह के दौरान हुआ था. याचिकाकर्ता (मां) और प्रतिवादी (पुरुष) के बीच विवाह का मामला.'

महिला ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था, जिसके तहत उसके बच्चे को भरण-पोषण देने से इनकार कर दिया गया था.

उच्च न्यायालय ने कहा था कि रिकॉर्ड में मौजूद डीएनए रिपोर्ट के मद्देनजर, व्यक्ति को बच्चे को भरण-पोषण का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है. हाई कोर्ट ने कहा था कि इस संबंध में कानून भी तय है कि जैविक पिता अपने बच्चे के भरण-पोषण के लिए जिम्मेदार है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि पुरुष और महिला शादी से पहले एक साथ रहते थे और इसलिए यह तथ्य कि शादी के कुछ महीनों के भीतर बच्चे का जन्म हुआ, इस मामले पर कोई असर नहीं डाल सकता.

पीठ ने कहा कि 'इस तरह के विवाद के समर्थन में विद्वान वकील 2023 में रिपोर्ट किए गए अपर्णा अजिंकिया फिरोदिया बनाम अजिंक्य अरुण फिरोदिया के फैसले पर भरोसा करेंगे, जिसमें तर्क दिया गया कि अगर शादी से पहले एक पुरुष और महिला एक साथ रहते थे लेकिन डीएनए टेस्ट से पता चला कि पति से बच्चा पैदा नहीं हुआ. ऐसे में जब तक पुरुष द्वारा महिला तक पहुंच न होने का सबूत न हो, बच्चे के भरण-पोषण से इनकार करने के लिए डीएनए परीक्षण निर्णायक नहीं होगा.'

व्यक्ति ने दावा किया कि शादी के समय वह नाबालिग था और शादी की वैधता का सवाल अलग से लंबित है. महिला ने दावा किया था कि उस पर शादी की शर्त के तहत पुरुष ने अपने दो दोस्तों के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करने के लिए दबाव डाला था.

ये भी पढ़ें

शादी के बाद पैदा हुए बच्चे से मैच नहीं हुआ पिता का DNA, हाईकोर्ट ने कहा जैविक पिता ही बच्चे के भरण पोषण का जिम्मेदार

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.