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विजयादशमी के दिन यहां ग्रामीण मनाते हैं शोक, सैनिक लिबास में मां दुर्गा से करते हैं सवाल - झारखंड समाचार

विजयदशमी के दिन चारों तरफ खुशी का माहौल होता है. लेकिन झारखंड के संथाल में आदिवासी इसका शोक मनाते हैं. इस रिपोर्ट में जानिए आखिर क्या है परंपरा. Santhali tribals mourn on Vijayadashami

Santhali tribals mourn on Vijayadashami
Santhali tribals mourn on Vijayadashami
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 24, 2023, 7:35 PM IST

विजयादशमी के दिन यहां ग्रामीण मनाते हैं शोक

गोड्डा: झारखंड के संथाल परगना प्रमंडल में आदिवासियों में एक अलग तरह की परंपरा है. जहां विजयदशमी के दिन अधर्म पर धर्म की विजय के प्रतीक के रूप में शक्ति की देवी मां दुर्गा की आराधना होती है. हर तरफ खुशियों का माहौल होता है. इस दिन अति बलशाली महिषासुर का वध मां दुर्गा के हाथों होता है.

ये भी पढ़ें: Vijayadashami 2023: झारखंड की धार्मिक-आध्यात्मिक राजधानी देवघर में नहीं होता है रावण दहन, जानिए क्यों

विजयदशमी के दिन आम लोगों में खुशी का माहौल होता है. लोग त्योहार मना रहे होते हैं. लेकिन दूसरी ओर संथाल परगना प्रमंडल में आदिवासी समाज इस दिन शोकाकुल रहते हैं. उनको लगता लगता है कि उनके पुरखे इष्ट और देवता तुल्य महिषासुर का वध छल से कर दिया गया. वे विजयादशमी के दिन पूरे सैन्य लिबास में आते हैं और परंपरागत तरीके से शस्त्र कला का प्रदर्शन करते हैं.

इस दौरान पूरे आक्रोशित भाव संथाली आदिवासी दुर्गा पूजा पंडाल जाकर बस एक ही सवाल करते है कि बता हमारे महिषा कहां हैं. ये शब्द बार पुकारते हुए आदिवासी पूजा पंडालों के अंदर घुसने का जबरन प्रयास करते हैं. इसके लिए पूर्व से ही विशेष तैयारी की जाती है. पंडाल परिसर को बांस-बल्ली से पूरी तरह से सुरक्षित कर लिया जाता है.

इसके बाद आदिवासियों का हुजूम जब पूजा पंडाल के अंदर घुसता है तो वहां मौजूद पुजारियों उन्हें समझा बुझाकर शांत कराया जाता है और वापस भेज दिया जाता है. उन्हें बताया जाता है कि ये अधर्म पर धर्म की जीत है. उनके इष्ट को मोक्ष की प्राप्ति हुई है. इसके बाद उन्हें प्रसाद के साथ ही शीतल जल और तुलसी से शांत किया जाता है. जिसके बाद वे शांत भाव से वापस लौट जाते हैं. ये सब कुछ एक प्रतीकात्मक रूप में किया जाता है.

ये परंपरा गोड्डा जिले के प्राचीनतम मेला बलबड्डा में कई सौ सालों से चली आ रही है. इस मेले में विजयादशमी के दिन काफी संख्या में आदिवासी की टोली में गाजे बाजे के साथ आती है. इन टोलियों को मेला प्रबंधन द्वारा सम्मानित भी किया जाता है. ऐसे नजारे ग्रामीण क्षेत्र के पूजा पंडालों में विजयादशमी को संथाल परगना में देखे जाते हैं.

विजयादशमी के दिन यहां ग्रामीण मनाते हैं शोक

गोड्डा: झारखंड के संथाल परगना प्रमंडल में आदिवासियों में एक अलग तरह की परंपरा है. जहां विजयदशमी के दिन अधर्म पर धर्म की विजय के प्रतीक के रूप में शक्ति की देवी मां दुर्गा की आराधना होती है. हर तरफ खुशियों का माहौल होता है. इस दिन अति बलशाली महिषासुर का वध मां दुर्गा के हाथों होता है.

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विजयदशमी के दिन आम लोगों में खुशी का माहौल होता है. लोग त्योहार मना रहे होते हैं. लेकिन दूसरी ओर संथाल परगना प्रमंडल में आदिवासी समाज इस दिन शोकाकुल रहते हैं. उनको लगता लगता है कि उनके पुरखे इष्ट और देवता तुल्य महिषासुर का वध छल से कर दिया गया. वे विजयादशमी के दिन पूरे सैन्य लिबास में आते हैं और परंपरागत तरीके से शस्त्र कला का प्रदर्शन करते हैं.

इस दौरान पूरे आक्रोशित भाव संथाली आदिवासी दुर्गा पूजा पंडाल जाकर बस एक ही सवाल करते है कि बता हमारे महिषा कहां हैं. ये शब्द बार पुकारते हुए आदिवासी पूजा पंडालों के अंदर घुसने का जबरन प्रयास करते हैं. इसके लिए पूर्व से ही विशेष तैयारी की जाती है. पंडाल परिसर को बांस-बल्ली से पूरी तरह से सुरक्षित कर लिया जाता है.

इसके बाद आदिवासियों का हुजूम जब पूजा पंडाल के अंदर घुसता है तो वहां मौजूद पुजारियों उन्हें समझा बुझाकर शांत कराया जाता है और वापस भेज दिया जाता है. उन्हें बताया जाता है कि ये अधर्म पर धर्म की जीत है. उनके इष्ट को मोक्ष की प्राप्ति हुई है. इसके बाद उन्हें प्रसाद के साथ ही शीतल जल और तुलसी से शांत किया जाता है. जिसके बाद वे शांत भाव से वापस लौट जाते हैं. ये सब कुछ एक प्रतीकात्मक रूप में किया जाता है.

ये परंपरा गोड्डा जिले के प्राचीनतम मेला बलबड्डा में कई सौ सालों से चली आ रही है. इस मेले में विजयादशमी के दिन काफी संख्या में आदिवासी की टोली में गाजे बाजे के साथ आती है. इन टोलियों को मेला प्रबंधन द्वारा सम्मानित भी किया जाता है. ऐसे नजारे ग्रामीण क्षेत्र के पूजा पंडालों में विजयादशमी को संथाल परगना में देखे जाते हैं.

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