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संतो के सामने पढ़ी गई स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की वसीयत, निज सचिव सुबोधानंद बोले- उत्तराधिकारियों पर कोई विवाद नहीं

जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की शुक्रवार को नरसिंहपुर में श्रद्धांजली सभा आयोजित की गई. इस सभा में संतो के सामने ब्रह्मलीन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की वसीयत पढ़ी गई. उनकी वसीयत के मुताबिक उनके अधीन दोनों पीठों के उत्तराधिकारी भी नियुक्त कर दिए गए हैं. श्रद्धांजली सभा में एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान, गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा समेत कई नेता शामिल हुए. sankrachary property, Swami Swaroopanand Saraswati legacy

Swami Swaroopanand Saraswati legacy
संतो के सामने पढ़ी गई स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की वसीयत,=
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Published : Sep 23, 2022, 10:36 PM IST

नरसिंहपुर। जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की शुक्रवार को नरसिंहपुर में श्रद्धांजली सभा आयोजित की गई. जिसमें संतो के सामने ब्रह्मलीन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की वसीयत पढ़ी गई. उनकी वसीयत के मुताबिक उनके दोनों पीठों के उत्तराधिकारी भी नियुक्त कर दिए गए हैं. श्रद्धांजलि सभा में सीएम शिवराज सिंह चौहान, गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा, केंद्रीय राज्य मंत्री प्रह्लाद पटेल, कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वी.डी. शर्मा शामिल हुए. उनकी वसीयत के मुताबिक उनके दोनों पीठों के उत्तराधिकारी भी नियुक्त कर दिए गए हैं. इसको लेकर विवाद भी खड़ा हो गया है.

वसीयत से बढ़ा विवाद: ब्रह्मलीन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की वसीयत को लेकर विवाद भी खड़ा हो गया है. दूसरे पीठाधीश्वरों का कहना है हिंदू सनातन धर्म में शंकराचार्य नियुक्त करने की ऐसी कोई परंपरा ही नहीं है. इस मुद्दे पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के निज सचिव रहे सुबोधानंद महाराज का कहना है की वसीयत और शंकराचार्यों की नियुक्ति पर सवाल उठाने वाले लोग नासमझ हैं उन्हें ना तो शास्त्रों का ज्ञान है और ना ही परंपरा का. जब एक पिता अपने बेटे को उत्तराधिकारी बना सकता है तो फिर एक गुरु अपने शिष्य को क्यों नहीं बना सकता और इसी परंपरा का पालन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने किया है. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने 8 साल पहले ही अपनी वसीयत लिख दी थी. इस वसीयत के मुताबिक द्वारकाधीश और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की नियुक्ति उन्होंने सदानंद सरस्वती महाराज और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज की कर दी थी. लिहाजा विवाद करने का कोई सवाल खड़ा नहीं होता है जो लोग इस तरह के विवाद खड़े कर रहे हैं वह खुद भी परंपराओं का पालन नहीं करते.

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती और स्वामी सदानंद सरस्वती होंगे शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी

कौन हैं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद: अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में हुआ. पूर्व नाम उमाकांत पांडे था. छात्र जीवन में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रनेता भी रहे. वह युवावस्था में शंकराचार्य आश्रम में आए. ब्रह्मचारी दीक्षा के साथ ही इनका नाम ब्रह्मचारी आनंद स्वरूप हो गया. बनारस में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा दंडी दीक्षा दिए जाने के बाद इन्हें दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के नाम से जाना जाने लगा. वह उत्तराखंड बद्रिकाश्रम में शंकराचार्य के प्रतिनिधि के रूप में ज्योतिषपीठ का कार्य संभाल रहे हैं. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती काशी में शंकराचार्य के मठ और आश्रमों की देखरेख के साथ उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. श्रीविद्या मठ में वो रहते हैं और इसके साथ ही ज्योतिर्मठ बद्रिका आश्रम भी उन्ही के हवाले हैं. यहां का संचालन और परंपरा को आगे ले जाने की जिम्मेदारी अविमुक्तेश्वरानंद के कंधों पर है.

कौन हैं स्वामी सदानंद सरस्वती: ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के प्रमुख शिष्य दंडी स्वामी सदानंद सरस्वती व अविमुक्तेश्वरानंद हैं. ऐसा माना जा रहा है कि इन्हें महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा जा सकता है. यह जानकारी शंकराचार्य आश्रम, परमहंसी गंगा क्षेत्र, झोतेश्वर के पंडित सोहन शास्त्री ने दी है. स्वामी सदानंद सरस्वती महाराज का जन्म नरसिंहपुर के बरगी नामक ग्राम में हुआ था. पूर्व नाम रमेश अवस्थी था. वह 18 वर्ष की आयु में शंकराचार्य आश्रम खिंचे चले आए. ब्रह्मचारी दीक्षा के साथ ही इनका नाम ब्रह्मचारी सदानंद हो गया. बनारस में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा दंडी दीक्षा दिए जाने के बाद इन्हें दंडी स्वामी सदानंद के नाम से जाना जाने लगा. सदानंद गुजरात में द्वारका शारदापीठ में शंकराचार्य के प्रतिनिधि के रूप में कार्य संभाल रहे हैं.

Swami Sadanand Saraswati Maharaj, Swami Avimukteshwarananda Saraswati, Swami Swaroopanand Saraswati died, New successor Announced today, kashi vidwat parishad shankaracharya, Swami Swaroopanand Saraswati legacy ,sankrachary property controversy

नरसिंहपुर। जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की शुक्रवार को नरसिंहपुर में श्रद्धांजली सभा आयोजित की गई. जिसमें संतो के सामने ब्रह्मलीन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की वसीयत पढ़ी गई. उनकी वसीयत के मुताबिक उनके दोनों पीठों के उत्तराधिकारी भी नियुक्त कर दिए गए हैं. श्रद्धांजलि सभा में सीएम शिवराज सिंह चौहान, गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा, केंद्रीय राज्य मंत्री प्रह्लाद पटेल, कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वी.डी. शर्मा शामिल हुए. उनकी वसीयत के मुताबिक उनके दोनों पीठों के उत्तराधिकारी भी नियुक्त कर दिए गए हैं. इसको लेकर विवाद भी खड़ा हो गया है.

वसीयत से बढ़ा विवाद: ब्रह्मलीन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की वसीयत को लेकर विवाद भी खड़ा हो गया है. दूसरे पीठाधीश्वरों का कहना है हिंदू सनातन धर्म में शंकराचार्य नियुक्त करने की ऐसी कोई परंपरा ही नहीं है. इस मुद्दे पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के निज सचिव रहे सुबोधानंद महाराज का कहना है की वसीयत और शंकराचार्यों की नियुक्ति पर सवाल उठाने वाले लोग नासमझ हैं उन्हें ना तो शास्त्रों का ज्ञान है और ना ही परंपरा का. जब एक पिता अपने बेटे को उत्तराधिकारी बना सकता है तो फिर एक गुरु अपने शिष्य को क्यों नहीं बना सकता और इसी परंपरा का पालन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने किया है. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने 8 साल पहले ही अपनी वसीयत लिख दी थी. इस वसीयत के मुताबिक द्वारकाधीश और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की नियुक्ति उन्होंने सदानंद सरस्वती महाराज और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज की कर दी थी. लिहाजा विवाद करने का कोई सवाल खड़ा नहीं होता है जो लोग इस तरह के विवाद खड़े कर रहे हैं वह खुद भी परंपराओं का पालन नहीं करते.

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती और स्वामी सदानंद सरस्वती होंगे शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी

कौन हैं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद: अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में हुआ. पूर्व नाम उमाकांत पांडे था. छात्र जीवन में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रनेता भी रहे. वह युवावस्था में शंकराचार्य आश्रम में आए. ब्रह्मचारी दीक्षा के साथ ही इनका नाम ब्रह्मचारी आनंद स्वरूप हो गया. बनारस में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा दंडी दीक्षा दिए जाने के बाद इन्हें दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के नाम से जाना जाने लगा. वह उत्तराखंड बद्रिकाश्रम में शंकराचार्य के प्रतिनिधि के रूप में ज्योतिषपीठ का कार्य संभाल रहे हैं. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती काशी में शंकराचार्य के मठ और आश्रमों की देखरेख के साथ उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. श्रीविद्या मठ में वो रहते हैं और इसके साथ ही ज्योतिर्मठ बद्रिका आश्रम भी उन्ही के हवाले हैं. यहां का संचालन और परंपरा को आगे ले जाने की जिम्मेदारी अविमुक्तेश्वरानंद के कंधों पर है.

कौन हैं स्वामी सदानंद सरस्वती: ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के प्रमुख शिष्य दंडी स्वामी सदानंद सरस्वती व अविमुक्तेश्वरानंद हैं. ऐसा माना जा रहा है कि इन्हें महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा जा सकता है. यह जानकारी शंकराचार्य आश्रम, परमहंसी गंगा क्षेत्र, झोतेश्वर के पंडित सोहन शास्त्री ने दी है. स्वामी सदानंद सरस्वती महाराज का जन्म नरसिंहपुर के बरगी नामक ग्राम में हुआ था. पूर्व नाम रमेश अवस्थी था. वह 18 वर्ष की आयु में शंकराचार्य आश्रम खिंचे चले आए. ब्रह्मचारी दीक्षा के साथ ही इनका नाम ब्रह्मचारी सदानंद हो गया. बनारस में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा दंडी दीक्षा दिए जाने के बाद इन्हें दंडी स्वामी सदानंद के नाम से जाना जाने लगा. सदानंद गुजरात में द्वारका शारदापीठ में शंकराचार्य के प्रतिनिधि के रूप में कार्य संभाल रहे हैं.

Swami Sadanand Saraswati Maharaj, Swami Avimukteshwarananda Saraswati, Swami Swaroopanand Saraswati died, New successor Announced today, kashi vidwat parishad shankaracharya, Swami Swaroopanand Saraswati legacy ,sankrachary property controversy

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